Friday, August 19, 2016

आक्रामकता आज की जरूरत हो गयी है

सुबह निकलने के लिये कार स्टार्ट की तो गाड़ी के नीचे बैठा कुत्ता कुंकुआता हुआ बाहर निकला। निकलते समय तो पूंछ दबाये हुये था क्योंकि उस समय तो जान बचाने की जल्दी थी लेकिन सुरक्षित दूरी तक पहुंचकर पूंछ को झंडे की तरह तेजी से दांये-बांये लहराने लगा। मानो बता रहो कि कार वाले को परास्त कर दिया। हिम्मत नहीं हुई कि कुचलकर निकल जायें।

जीवन की हर सामान्य घटना को भी युद्ध की तरह देखना और उसमें विजयी होने का एहसास  पालना आज आदमी की ही नहीं कुत्ते तक की मजबूरी हो गयी है। आक्रामकता आज की जरूरत हो गयी है।

निकलते समय अखबार वाले राजेश मिश्रा जी मिले। पिछले साल उनपर जो लेख लिखा था वह आज के ही दिन प्रभात खबर में छपा था। उनसे अखबार लिया और घर में ताला मारकर निकल लिये।
http://fursatiya.blogspot.in/2015/08/blog-post_16.html

घर के बाहर एक बच्ची साइकिल पर स्कूल जाती दिखी। उसको देखकर कल ओलम्पिक में साक्षी मलिक और सिंधु की जीतें याद आ गयीं। कल मैंने पहली बार सिंधु का मैच देखा। उसको जीतते देखना सुखद अनुभव था। आज फ़ाइनल है शाम साढे बजे देखना है यह तय किया है।

सिंधु के बारे में सोचते हुये गोपीचंद के बारे में सोचने लगे। गोपीचंद ने कई बैडमिंटन खिलाडियों को अपनी एकाडमी में तैयार किया है। यह भी याद आया कि उन्होंने कोला का विज्ञापन ठुकरा दिया था इस सोच के साथ कि कोला स्वास्थ्य के लिये अच्छा नहीं। अच्छा खिलाड़ी होने के साथ बेहतर इंसान भी है गोपीचंद।


सोचते-सोचते विजयनगर क्रासिंग पार कर गये। सड़क किनारे एक ट्रक की आड़ में एक बुजुर्ग खड़े-खड़े धरती सींचे रहे थे। धार नीचे की तरफ़ गिराते हुये सर ऊपर उठाये आंख मींचे कुछ सोच रहे थे। शायद सूरज भाई से आंख बचा रहे हों।

जरीब चौकी क्रासिंग के पहले एक बच्चा पतंग उड़ाने की तैयारी कर रहा था। शायद स्कूल के झांसे में आने से रह गया था बच्चा।

क्रासिंग के आगे एक बस बीच सड़क पर खड़ी होकर सवारी भरने लगी। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बस जहां खड़ी हो जाये वहीं स्टाप। सवारी भरने के बाद बस चली फ़िर हम भी चल दिये। इस बीच ढेर सारी कार्बन डाई आक्साइड छोड़ते रहे वहीं खड़े-खड़े।

चले तो याद आया कि यहीं आगे पंकज बाजपेयी डिवाइडर पर बैठते हैं। याद आते ही कार का एसी बंद करके दायीं तरफ़ की खिड़की खोल ली। आगे मिले पंकज बाजपेयी बैठे हुये। हमने कार रोककर नमस्ते किया तो बोले- " कहां जा रहे हो? तुम हमारी रक्षा की चिंता करते हो। हमारी चिंता मत करो। हम ठीक हैं।"

हम बोले - "दफ़्तर जा रहे हैं। शाम को लौटेंगे। शाम को कहां रहते हो आप?"

वे बोले- " शाम को कभी-कभी मिलते हैं। इधर ही रहते हैं।"

खड़े होकर बात कर रहे थे पंकज। हम कार पर। उनका पैंट नीचे से नुचकर बरमूडा टाइप घुटन्ना बन गया तथा। बदन पर केवल जैकेट धारण किए झोला बगल में धरे बैठे थे।

अफ़ीमकोठी चौराहे के आगे एक कुत्ते का जोड़ा एक दूसरे से दो फ़ीट की दूरी पर बैठा था। दोनों आपस में कुछ बोल नहीं रहे थे। इससे लगा कि दोनों आपस में पार्टनर हैं और किसी बात पर सुबह-सुबह दोनों में खटपट हो गयी है। इसीलिये भन्नाये, मुंह फ़ुलाये बैठे हैं। दोनों में कोई भौंक इसलिये नहीं रहा है शायद कि जो बोलेगा उसकी गलती साबित होगी। मन किया रुककर उनको अंसार कंबरी की कविता सुना दें:

पढ सको तो मेरे मन की भाषा पढो
मौन रहने से अच्छा है झुंझला पडो।

लेकिन एक तो दफ़्तर की देरी और दूसरे यह सोचकर कि फ़िर दोनों हमारे ऊपर भौंक पड़ेंगे -’ तुम कौन होते हो हम पार्टनरों के बीचे में बोलने वाले’ हम आगे बढ गये।

पंकज जी हाथ मिलाकर हम आगे निकल आये। झकरकटी पुल पर एक महिला स्कूटर के पीछे बैठी जा रही थी। स्कूटर चालक सड़क पर स्कूटर लहराते हुये ऐसे चला रहा था मानो साइन वेव बना रहा हो।

टाटमिल के पुल के आगे सड़क की बायीं तरफ़ बच्चयियां कड़क्को खेल रहीं थीं। कुछ महिलायें खटिया पर बैठी बतिया रहीं थीं। बच्चियों को स्कूल नहीं जाना था और महिलाओं को दफ़्तर नहीं इसलिये वे मजे से बैठीं थीं लेकिन हमको तो समय पर पहुंचना था इसलिये निकल लिये आगे।

आज विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस है। इस मौके पर पेश है आज से पांच साल पहले खींची गयी यह फ़ोटो। हुमायूं का मकबरा देखने गये थे। दो बच्चे हाथों में फ़ूल लिये भागते दिखे। उनकी तस्वीर खैंच ली हमने। सामने से खैंचने के चक्कर में बहुत देर कैमरा साधे रहे लेकिन वो पोज न मिला। विश्व फ़ोटोग्राफ़ी दिवस के बहाने दिखा दिये आपको फ़िर से।

https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10208843163849863

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