साइकिल आ गई जबलपुर से। हवा पिछले पहिये में कुछ कम लगी। भरवाने निकले तो कई जगह हवा भरने की दुकाने बंद मिलीं। लौटने ही वाले थे कि एक ने कहा पीछे देख लो। पटरी के पास।
दुकान पहुंचे। हवा भरने के लिए कहा तो दुकान के पास बैठी चारपइया पर बैठे बालक ने उछलकर , जैसे संवाददाता लोग सवाल पूछने वाले श्रोता के मुंह से माइक सटा देते हैं, उसी तरह हवा भरने वाला पाइप लपककर साईकिल के पिछले पहिये की छुच्छी से सटा दिया। हवा भरते हुए मेरी तरफ देखता रहा। हमने उसकी फोटो खैंच ली।
बालक ने हवा कुछ ज्यादा ही भर दी। लेकिन हमने निकाली नहीं। फिर अगले पहिये में भी भरी हवा बालक ने। हमने पैसे पूछे तो बोला -'तीन रूपये।'
तीन रूपये का हिसाब पूछ्ते हुए बालक का नाम पूछा। जिस तेजी से बताया उससे ऐसा लगा जैसे पार्टी से निकाला गया कोई नेता अपनी पुरानी पार्टी के घपले उजागर कर रहा हो। समझ ही नहीं आया। बाद में पता चला बालक का नाम हसन अली है। वह कोई और नाम भी बताता तब भी हम मान लेते।
स्कूल जाते हो पूछने पर बालक ने सरपट बताया -'हाँ। अभी एलकेजी में हैं। फिर केजी में फिर एक में जाएंगे।'
लौटते हुए हमने सोचा कि हवा भरने की दुकान पर (जो कि घर भी है दुकान वाले का ) बैठे बालक का लपककर खुद हवा भरना बालश्रम की श्रेणी में आएगा कि नहीं।
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