1. संस्कृति की हड्डी को अब कुत्ते चबाते घूम रहे हैं। संस्कृति की हड्डी कुत्ते का जबड़ा फ़ोडकर उसके खून को उसी को स्वाद से चटवा रही है। हां, हम विश्वबन्धुत्व भी मानते हैं, यानी अपने भाई के सिवा बाकी दुनिया-भर को भाई मानते हैं।
2. इस देश का आदमी लगातार अच्छी बातों से मारा गया है।
3. मैं अगर अपने मुख कमल से कोरी अच्छी बातें करूं तो सामने बैठे लोग मुझे फ़ौरन जूता मार दें। मगर बहुतों के पैर में जूते नहीं हैं, ये क्या मारेंगे? संविधान में जूते मारने का बुनियादी अधिकार तो होना चाहिये।
4. सफ़लता के महल का प्रवेश द्वार बन्द है। इसमें पीछे के नाबदान से ही घुसा जा सकता है। जिन्हें घुसना है, नाक पर रुमाल रखकर घुस जाते हैं। पास ही इत्र-सने रूमालों के ठेले खड़े हैं। रूमाल खरीदो, नाक पर रखो और नबदान मे से घुस जाओ, सफ़लता और सुख के महल में।
5. संकट में तो शत्रु भी मदद कर देते हैं। मित्रता की सच्ची परीक्षा संकट में नहीं, उत्कर्ष में होती है। जो मित्र के उत्कर्ष को बर्दाश्त कर सके, वही सच्चा मित्र होता है।
6. ग्रीटिंग कार्डों के ढेर लगे हैं, मगर राशन कार्ड छोटा होता जाता है।
7. सरकार को ठगना सबसे आसान है। नाबालिग है। मैंने नये बने हुये मकान मालिक से पूछा – कितना किराया है एक खण्ड का? उसने कहा – ये तो हमने सरकार के लिये बनवाये हैं। तुम लोग ज्यादा से ज्यादा 125 रुपये दोगे एक खण्ड का। सरकार हर खण्ड का 250 रुपये दे रही है। बेचारी सरकार की तरफ़ से कोई मोल-भाव करने वाला नहीं है। कोई भी ठग लेता है।
8. पवित्रता का मुंह दूसरों की अपवित्रता के गन्दे पानी से धुलने पर ही उजला होता है।
9. भोजन के बाद कलंक-चर्चा का चूर्ण फ़ांकना जरूरी होता है। हाजमा अच्छा होता है।
10. भगवान अगर औरत भगाये तो यह बात भजन में आ जाती है। साधारण आदमी ऐसा करे तो यह काम अनैतिक हो जाता है।
11. झूठे विश्वास का भी बड़ा बल होता है। उसके टूटने का भी सुख नहीं, दुख होता है।
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