काउंटर पर लिखा था -'फोटोकॉपी डाउनलोडिंग होती है।' हमको लगा है कि समाज आदमी के पतन से बेकार-बेफालतू हलकान है। हमको समझना चाहिए कि समाज, आदमी पतित नहीं हो रहा है। वास्तव में वह डाउनलोड हो रहा है। तकनीक का समाज के विकास में योगदान किया जाना चाहिए। आदमी को पतित नहीं डाउनलोड होता बताया जाना चाहिए। पतन से लगता है कुछ गड़बड़ हो रहा है। डाउनलोड होने से उन्नति का एहसास होता है। एक बार फिर लगा कि तकनीक के सहारे विकास कितना आसान काम है।
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