Friday, December 31, 2021

विदा लेते साल की सुबह



आज सुबह जगे तो रोज की तरह टहलना टालने के बहानों ने घेर लिया। बड़े हसीन बहाने होते हैं ये। थोड़ी देर में चलते, जरा देर और, अभी अंधेरा है, बस अब निकल लेंगे अगले पांच मिनट में। इसी तरह करते घड़ी आगे हो जाती है और निकलना स्थगित हो जाता है।
आज सब बहानों को झटक के निकल लिए तो बाहर एक बड़े बहाने से मुलाकात हुई। लगा बूंदाबांदी हो रही है। लगा लौट लिया जाए, भीग जाएंगे। लेकिन फिर बूंदाबन्दी की शिनाख्त कोहरे की बूंदों के रूप में हुई।।प्रकृति भी सरकारों से कम रागिया थोड़ी होती है।
सड़क पर फौजी जवान दौड़ते हुए कसरतिया रहे थे। उनको दौड़ते देख मुझे जबलपुर में ढोलक बनाने बनाकर साइकिल से 50-100 किलोमीटर दूर तक बेंचने जाने वाले हिकमत अली की बात याद आई जिन्होंने जवानों को सड़क पर दौडते देख पूछा था -'ये लोग दौड़ते किसलिए हैं?'
मार्निंग वॉकर क्लब के लोगों की बेंच पर कम्बल बिछा था। कोई मौजूद नहीं था वहां। बाद में पता चला कि डॉक्टर त्रेहन सुबह आकर कम्बल बिछा जाते हैं। जैसे लोग रेल के जनरल डिब्बों पर अपना सामान रखकर अपना कब्जा पक्का करते हैं। यहां तो खैर यह बेंच स्थाई रूप से मार्निंग वाकर की है।
आगे एक बेंच पर एक महिला बैठकर योग मुद्रा में सांस लेते , छोड़ते हुए ॐ का उच्चारण कर रहीं थी। वहीं बगल में खड़े आदमी ने थैले से सोंटे जैसा कुछ निकाला जो कि रस्सी के रूप में बरामद हुआ। वह रस्सी कूदने लगा।
सड़क पर कोहरा गिर रहा था। रास्ते पर अंधेरे और उजाले की गठबंधन सरकार हावी थी। उजाले का बहुमत होने के नाते अंधेरा सिमटता जा रहा था। चने बेंचने वाला लड़का चने ले लो की आवाज लगाते हुए टहल रहा था। इतनी सुबह उसको ग्राहक की आशा थी। देखकर ताज्जुब लगा।
लड़का साथ चलते हुए अपने बारे में बताता जा रहा था। उसका तिमंजिला मकान है जिससे उसके पड़ोसी जलते हैं। थानेदार ने 500 रुपये दिए और कहा कि कोई गड़बड़ बात देखना तो बताना। इसी तरह की और बातें सम्बद्ध और असम्बद्ध।
साथ चलते हुए काफी दूर निकल आये तो हमने उससे कहा -'तुम रुको यहीं चने बेचो।'
इसपर वह बोला -'नहीं, हमको आगे ट्वायलेट जाना है।'
हम समझ रहे थे कि वह हमसे बतियाने के लिए साथ चल रहा था लेकिन अगला निपटान घर तक साथ चलने के लिए साथ था।इसी तरह के भरम में दुनिया चलती रहती है।
आगे आग तापती बुढ़िया मिली, अपनी चाय की दुकान पर अकेले चाय पीते हुए चाय वाला मिला। पता नहीं उसने चाय के पैसे चार्ज किये खुद से या नहीं।
गोविंदगंज क्रासिंग पर ट्रेनों का आवागमन जारी था। ट्रेन थोड़ा ठहरकर आगे बढ़ गयी।
लौटते में बीच सड़क पर तीन बंदर एक दूसरे से सटकर सर्दी का मुकाबला करते दिखे। हमने दूर से फ़ोटो लिया। फिर लालच में पास से लेने लगे तो बंदर दूर हो गये। उनको खराब लगा होगा। उनकी निजता में दखल देने का अफसोस हुआ।
लौटते हुए मार्निंग वाकर ग्रुप के साथी मिले। डॉक्टर त्रेहन ने खूब फोटो लिए। आज इंद्रजीत जी नहीं आये थे। पता चला वो दिल्ली गये हैं।
बीतते साल को सुनाते हुए गाना गाते हुए -'कभी अलविदा न कहना' के नारे के साथ फ़ोटो हुए। तीन बच्चियों को भी शामिल किया गया फ़ोटो में। एक एस आई की तैयारी कर रही है, दूसरी जज बनने की कोशिश में है, तीसरी अभी पढ़ाई कर रही है।
वहीं दो बच्चियां कसरत कर रहीं थीं। उनकी चीटियां हिल रहीं थीं। बाद में पता चला कि उनको कसरत कराते हुए शख्स उनके पिताजी हैं। बच्चियों की मां नहीं हैं। पिता ही उनकी मां का दायित्व भी निभाते हैं। पेशे से शिक्षक। प्राइवेट स्कूल में। उनका संकल्प अपनी दोनों बच्चियों को डॉक्टर बनाने का है।
संकल्प तो हमारा भी रोज टहलने का है लेकिन अक्सर गड़बड़ा जाता है। देखते हैं आगे कितना सफल होता है।
साल जा रहा है। आप सभी को नए साल की शुभकामनाएं। हम सभी बेहतर मनुष्य बने यही कामना है।

https://www.facebook.com/share/p/Pn1XCzgRSch5h4nE/

No comments:

Post a Comment