Friday, December 03, 2021

सुबह की सैर के बहाने



आज सबसे पहले मुलाकात हुई सुबह की सैर के साथियों से। रोज सुबह शहर से सैर के लिए निकलकर रामलीला मैदान पर मुलाकात होती है सबकी। साथियों के जन्मदिन, शादी की सालगिरह मनाई जाती है। राष्ट्रीय पर्व और अन्य त्योहार भी मनाए जाते हैं। केक भी कटते हैं, मिठाई भी बंटती है। हर्ष और उल्लास का आयोजन स्थल है रामलीला मैदान की वह बेंच जो इस समूह की मिलन स्थली है।
डॉ त्रेहन संस्थापक संचालक हैं इस समूह के। इंद्रजीत जी बाद में जुड़े। करीब 50 साल से जारी है सुबह की सैर के बहाने मुलाकात का सिलसिला। सदस्य आते, जाते, जुड़ते, बिछुडते गए होंगे। लेकिन समूह चल रहा है। सुबह 6 से 7 सामान्य समय है मिलने का। कभी देर-सबेर भी हो जाती होगी। लेकिन सिलसिला बदस्तूर जारी है।
पहले अंदर कैंट तक भी जाते थे। पास बना था। फीस पड़ती थी। कोरोना काल में अंदर जाना बंद हो गया। अब कोरोना का प्रकोप कम हुआ। अंदर सैर का सिलसिला फिर शुरू हो सकता है। लेकिन अब यहीं मजा आता है। यहां फोटो , आनन्द मनाने की जो आजादी है वह कैंट के अंदर कहां। इसलिए यहीं तक सही।
आज सुबह पहुंचते ही ग्रीन टी भी मिली पीने को। रोज बंटती होगी।
अनेक वर्षों से चल रहे समूह के साथ अनगिनत कहानियां-किस्से जुड़े होंगे। लोगों की यादें जुड़ी होंगी। यह बेंच भी आने वाले समय में पुलिया की तरह यादगार होगी शायद।
आगे निकलने पर लोग टहलते हुए, सांस लेते हुए, छोड़ते हुए और कसरत करते दिखे।
स्कूल जाते बच्चे साइकिलों पर आते दिखे। एक बच्चा साइकिल के हैंडल पर अपनी नोटबुक पढ़ते साइकिल चलाते दिखा। शायद उसका टेस्ट होगा आज। आखिरी क्षण तक पढ़ाई में तल्लीन बालक।
सीतापुर वाले मुंशी जी बेंच पर बैठे दिखे। हमको देखते ही बताने लगे -' आज 95% लोग बेवकूफ हैं।'
हमारी तरफ देखकर ही कह रहे थे इसलिए साफ है कि हमको 95% में शामिल करते हुए कह रहे थे अपनी बात। मुंशी जी का मानना और कहना है कि आजकल लोग शादी व्याह में अनाप-शनाप पैसा खर्च करते हैं। फिजूलखर्ची करते हैं। इससे अच्छा लड़का-लड़की के नाम पैसा जमा कर दें। हजार पन्द्रह सौ रुपया प्लेट खाना मिलता है। हजार पांच सौ बराती बुलाये जाते हैं। इससे बड़ी बेवकूफी और क्या हो सकती है।
मुंशी जी आजकल के लड़के-लड़कियों, जो दस-दस, पन्द्रह-पन्द्रह हजार के मोबाइल लिए घूमते हैं, पर भी काम भर के नाराज दिखे। आजकल शादी-ब्याह पर फिजूल खर्ची को कोसते हुए मुंशी जी अपने जमाने में चले गये जब बारातें चार-चार, पांच-पांच दिन की होती थीं। शादी-ब्याह में 'गारी' गाई जातीं थीं। इस बात से जबरदस्त शिकायत है मुंशी जी को कि आजकल के लोगों को यह पता ही नहीं कि शादी-ब्याह में गारी होती क्या थीं?
मुंशी जी का मानना है कि कोरोना काल की पांच-पच्चीस लोगों की पाबंदी शादी व्याह में हमेशा के लिए लागू हो जानी चाहिए।
आगे अपने घर के सामने एक तसले में लकड़ियां जलाते, आग तापते चाय पीते बुजुर्गा दिखीं। उनके सामने उनके घर का बच्चा तसल्ली से फुटपाथ पर ही निपटते दिखा। सुलभ शौचालय और स्वच्छता अभियान के सारे नारे आत्मसमर्पण करते हुए कहीं मुंह छिपा रहे होंगे। बच्चा बिना किसी संकोच के हल्का हो रहा था।
पोस्ट करते हुए याद आया कि आज दो साल हो गये शाहजहांपुर आये। इन दो सालों में अनेकानेक खुशनुमा एहसास हुए। सब एक-एक करके सामने से गुजर रहे हैं। सूरज भाई भी मेरे साथ उनको देखते हुए मुस्करा रहे हैं।

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