आज बहुत दिन बाद सुबह टहलने निकले। लोग भी टहलते दिखे। कुछ फुर्ती से कुछ तसल्ली से। एक जगह बोर्ड में लिखा था -गति सीमा 40 । उसके नीचे लिखा था -ड्राइविंग सीखना मना है।
40 के नीचे किमी गोल था और ड्राइविंग के नीचे से 'यहां' नदारद था। लेकिन समझदार को इशारा काफी।
सड़क पर और इधर-उधर तमाम बन्दर भी 'मार्निंग वाक' करते दिखे। कुछ सीनियर टाइप बन्दर फुटपाथ पर अलसाये से लेते हुए थे। दो-चार जूनियर बन्दर उनकी 'शरीरपुर्सी' जैसी करते हुए जुएं जैसा कुछ निकाल रहे थे।
कैंट का ओवरब्रिज बन गया है। कई सालों के बाद पिछले साल चालू हुआ। पुराना गंगापुल बन्द हो गया। इस पुल से अनगिनत लोगों की यादें और किस्से जुड़े होंगे। इसी का नाम लेते हुए लोग कहते थे:
कानपुर कनकैया
जँह पर बहती गंगा मैया
ऊपर चले रेल का पहिया,
नीचे बहती गंगा मैया
चना जोर गरम।
शुक्ला गंज की तरफ जाने वाला रास्ता बंद हो गया है। सड़क पर गाड़ियां आना-जाना बन्द हो गया है। लोगों ने सड़क को घर के आंगन की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। तमाम चीजें सूखने को पड़ी हैं। सड़क के दोनों तरफ की दुकाने उजड़ गयी हैं। पहले यहां से गुजरने वाले लोग चना-चबेना खरीदते थे। अब दुकान वाले इधर-उधर घूमकर बेंचते हैं।
एक पुल बन्द हो जाने से कितनों के रोजगार पर फर्क पड़ता है। एक पुल बन जाने से भी न जाने कितने लोगों को रिजगर मिलता है।
रिक्शेवाले सुरेश अपने ठीहे पर, एक रिक्शे की सीट पर बदन उघारे लेटे हुए थे। 15-20 रिक्शे बचे हैं उनके पास। बैटरी रिक्शे के समय में पैर से चलाने वाले रिक्शे का चलन कम हो गया है।
सुरेश के बगल में बैठे एक बुजुर्ग कारीगर पहिये का रिम ठीक कर रहा था। रिम को गोल घुमाते हुए बोला -'ठीक हो गया न?'
सुरेश के हां बोलने पर बोला-'चलो एक पौवे भर का काम हो गया।'
पौवे भर का काम मतलब इतनी मजदूरी जिससे दारू का पौवा आ जाये। ठेका पास ही है। बस्ती उजड़ गयी तो वहां भी रौनक कम है लेकिन चल तो रहा ही है।
मजदूरी की इकाई हरेक के लिए अलग-अलग होती है। किसी के लिए कुछ रुपये, किसी के लिये आज के खाने का हिसाब, किसी के लिए पौवे का जुगाड़।
एक लड़का पतंग उड़ाने की कोशिश कर रहा था। बार-बार नाकाम होने के बाद सर झुका कर वापस घर की तरफ चल दिया।
नीचे पैदल पुल भी बन्द है। लेकिन लोग आते दिखे उससे। गेट बंद है तो क्या। बगल के गर्डर पर पैर रखकर पास की बस्ती में घर तक पहुंच जाएंगे।
गंगा जी में पानी खूब है। तसल्ली से बह रहा था। बीच-बीच में हरियाली के टापू जैसे बने दिखे। जैसे पानी के ठहरने के लिए स्टॉपेज बने हों।
सुबह-सुबह सूरज भाई गंगाजी में डुबकी लगाए नहाते दिखे। उनके नहाने से पूरा पानी भी चमकने लगा। संगत का असर। पानी के साथ-साथ दिशाएं भी सूरज भाई के समर्थन में रंग गयीं। पूरी कायनात में सूरज भाई के जलवे दिखने लगे
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