बैसरन घाटी से वापस लौटते समय हमारा घोड़ा बदल गया। बताया कि जिस घोड़े से आए थे उसकी तबियत नासाज है। दूसरे घोड़े पर बैठे तो उसकी काठी में आगे पकड़ने वाली लोहे की राड नदारद थी। राड को पकड़ने से संतुलन बना रहता था। अब काठी के अगले हिस्से को ही पकड़ कर संतुलन बनाना पड़ रहा था। काफी देर तक पुराने घोड़े की याद आती रही। कुछ देर में इस नई काठी से भी सहज हो गए। बदलती परिस्थियों से तालमेल बिठाने में ही समझदारी है।
अब अधिकतर रास्ता उतार का ही था। घोड़े में पीछे की तरफ होकर बैठने के लिए बार-बार संकेत टोकता रहा बालक। घोड़े तेजी से नीचे की तरफ चलते तो हिल-डुल होती। कई जगह लगता कहीं गिर न जाएँ। घोड़े नीचे उतरने को बेताब थे शायद। जल्दी-जल्दी उतर रहे थे। एक ही दल के थे घोड़े। एक भागता तो बाकी भी भागने लगते। एकाध जगह पर तो साथ में चलने वालों में शामिल लड़की डर के मारे बड़ी तेज चिल्लाने लगी। आगे बढ़कर घोड़े को रोकने पर उसकी चीख थमी।
उन लोगों में एक लड़का हीरो टाइप था। घोड़े को तेज चलाते हुए बाकी घोड़ों को भी तेज चलने के लिए उकसा रहा था। एक जगह रुके थोड़ी देर को तो घोड़े से उतर कर एक घास को तोड़कर साथ में चल रही लड़की के हाथ में दिया। घास की चुभन बड़ी तेज थी। लड़की चीखने लगी। घोड़े वाले ने बताया कि इस घास के छूने से बुखार फौरन उतर जाता है। पता नहीं कितना सही है यह लेकिन हमको तो उस लड़की की घास की चुभन के कारण चीख याद आ रही हैं।
एक जगह घोडा रोककर मंजूर ने बताया – ‘यह दूल्हन वैली है। चरवाहों के परिवार में शादी होने पर यहाँ दूल्हन को सजाया जाता। लड़का-लड़की अपने परिवार के साथ यहाँ आते हैं और उत्सव मनाते हैं। इसलिए इसको दुल्हन घाटी या दूनों वैली कहते हैं। ‘ इससे अधिक इसके बारे में उसको नहीं पता था। नेट पर भी नहीं मिला।
चरवाहों के परिवार की बात चली तो बताते चले कि पहलगाम का नाम भी चरवाहों के नाम पर ही है। पहल (Puheyl) मतलब चरवाहा और गाम (Goam) मतलब गांव। इसको मिलकर नाम बना पहलगाम मतलब चरवाहों का गांव। पहलगाम घाटी मतलब –चरवाहों की घाटी। हिन्दू परंपरा की माने तो पहलगाम को पहले बैलगाम Bail Gaon कहते थे। बैल मतलब शिव वाहन नंदी। कहते हैं कि अमरनाथ गुफा में प्रवेश करते समय भगवान शिव ने अपने वाहन नंदी को यहाँ छोड़ दिया था इसलिए इसका नाम बैलगांव पड़ा जो बाद में पहलगाम हो गया।
रास्ते में मंजूर से उसके परिवार के बारे में बात हुई। छह भाई-बहन हैं वे लोग। पिता भी यही काम करते हैं। पढ़ाई ज्यादा नहीं हुई। एक ट्रिप का 300 रुपया मिलता है। इसके अलावा जो बख्शीस मिल जाए वो अलग। कभी-कभी ट्रिप नहीं भी मिलती है। हमारे घोड़े पर बैठे चलते हाल खराब हो गए। पैदल इतनी कठिन चढ़ाई चढ़ते हुए उसके हाल का अंदाज ही लगा सकते हैं। बहुत कठिन है जिंदगी। आगे भी इसी तरह जीना है।
थोड़ी देर में हम नीचे उतर आए। एक जगह रोक लगी थी। शायद जिस रास्ते से हमको वापस लाए थे वह आम रास्ता नहीं था। उन घोड़े वालों में से एक ने रोक हटाई और घोड़े आगे बढ़े। आगे सड़क थी। हम सड़क पर टप-टप सुनते हुए वहीं पहुंचे जहां से गए थे। जितने प्वाइंट देखने के पैसे तय हुए थे उसके बारे में अंदाज नहीं था मुझे कि देखे कि नहीं लेकिन जो पैसे तय किए थे वो दे दिए मैंने। आरिफ़ को।
आरिफ़ का पूरा नाम आरिफ़ खाँड़े था। उनके पास पाँच घोड़े हैं। तीन-चार दिन में एक बार नंबर लगता है उनके घोड़ों का। कभी-कभी कोई सवारी नहीं भी मिलती है। उस दिन भी हमारे घोड़े तक केवल तीन घोड़ों की बुकिंग हुई थी।
4700 रुपये हुए थे टूर प्वाइंट के हिसाब से। भुगतान गूगल पे से किया। हमको आगे अरु वैली और बेताब वैली जाना था। टैक्सी स्टैंड थोड़ा दूर था। आरिफ़ ने मुझे अपनी मोटर साइकिल पर टैक्सी स्टैंड तक छोड़ दिया। टैक्सी स्टैंड पर सेल्फ़ी लेकर हमने उनको विदा किया और आगे के लिए गाड़ी तय करने के लिए बढ़ गए।
टैक्सी स्टैंड पर जगह और घूमने की जगह के हिसाब से रेट लगे हुए थे। कई तरह की गाड़ियां थीं। अरु और बेताब वैली के लिए एटियास एस गाड़ी का दाम 1950 रुपए था। हमने सोचा इसी गाड़ी से जाएंगे। एटियास गाड़ी तय करने के पीछे कारण यह था कि कुछ दिन पहले तक यही गाड़ी घर से दफ्तर जाने-आने के लिए प्रयोग करते थे। गाड़ी के बाद गाड़ी के ड्राइवर विनोद की भी याद आई। विनोद घर से निकलते समय गाड़ी में बैठने तक हमारा फटाफट वाला स्कैन कर लेते। उनको लगता कोई चीज छूट गई है तो पूछ लेते –‘मोबाइल ले लिया, पेन रख लिया, जूते का फीता खुला है, जिप बंद कर लीजिए।‘
इस यादों के साथ जुड़ी और तमाम बातें भी याद आईं। यादें जब आती हैं पूरे कुनबे के साथ आती हैं- भड़भड़ाती हुई। उनको यह फिक्र नहीं होती कि उनको रखा कहाँ जाएगा।
गाड़ी तय कर लेने के बाद टैक्सी स्टैंड पर ही मौजूद चाय की दुकान में चाय पीने गए। एक छोटे कमरे में स्थित चाय की दुकान में तमाम ड्राइवर बैठे चाय पी रहे थे। कुछ मोबाइल पर कोई गेम भी खेल रहे थे। हमने एक चाय और कश्मीरी रोटी जिसमे मक्खन लगा था। रोटी ठंडी थी। उसको गरम करने के बारे में पूछा तो बताया ऐसे ही बिकती है। चाय के साथ रोटी खाने के बाद एक चाय और पी। उसके बाद टैक्सी स्टैंड के काउंटर पर आ गए। अब आगे अरु वैली और बेताब वैली जाना था।
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