आज गंगापुल की तरफ निकले टहलने। रहने की जगह से लगभग 2500 कदम की दूरी पर शुरू होता है पुल। पुल की शुरुआत जहां होती है वहीं तमाम कूड़ा-कबाड़ पड़ा था। एक रिक्शेवाला उस कूड़े से अपने मतलब की चीजें खोजकर बोरे में भरता जा रहा था।
कूड़े में मतलब का सामान खोजता रिक्शावाला तीसरी दुनिया के देश की तरह लगा जो विकसित देशों की पुरानी/फेंकी हुई तकनीक और सामान बटोरकर अपना काम चलाते हैं।
सामने आसमान लाल बहुरंगी हो रहा था। अनेक तरह के रंगों का ख़ूबसूरत संयोजन। कोई रंग कहां खत्म और कहां शुरू , खोजना मुश्किल। लग रहा था कि आसमान सूरज की अगवानी में खिलखिला रहा था। आसमान की देखादेखी गंगा का पानी भी बहुरंगी हो रहा था। हर लहर इठलाती हुई आगे बढ़ रही थी। गोया नदी में 'हर लहर, जगर-मगर' अभियान चल रहा हो।
नदी का पानी आगे बढ़ते हुए दाएं-बाएं भी टहलता जा रहा था। पानी जैसे छोटे-छोटे मोहल्ले में बह रहा हो। आगे चलते हुए पानी शंकु के आकार में नदी में छिप जा रहा था। पानी के भंवर बन रहे थे। पानी आगे बढ़ रहा था।
सूरज भाई अब पूरी तरह ऊपर आ गए। पानी की टँकी के बगल में उनका कैंप नुमा लगा। सूरज भाई की फोटो पानी ने खींच ली। कविता याद आई:
भोर हुआ सूरज उग आया,
जल में पड़ी सुनहरी छाया।
उगने के कुछ ही पल बाद सूरज भाई फिर गोल हो गए। जैसे दफ्तर में कर्मचारी आकर अपना टिफिन मेज पर रखकर चाय पीने निकल लेता है उसी तरह बादलों की आड़ में चले गए। सूरज भाई निकल लिए तो बाकी लोग भी फूट लिए। आसमान फिर श्वेत-श्याम सा हो गया। नदी का पानी के रंग भी गायब हो गए।
पुल पर तमाम लोग टहल रहे थे। कुछ बुजुर्ग हर आते-जाते को' हरिओम' बोलते हुए खड़े बतिया रहे थे। जो परिचित आता-जाता दिखता उसको हरिओम बोलकर फिर आपस मे बतियाने लगते।
दो महिलाएं पुल के फुटपाथ पर पैर फैलाये बैठी बतिया रहीं थीं। ऐसे जैसे अपने घर के आंगन में बैठी हों। उनमें से एक अपने घुटने सहला रही थी। शायद दर्द हो उनमें।
कुछ बच्चे भी पुल जगह-जगह खड़े, बतियाते दिखे। कोई सेल्फी ले रहा था। कोई नदी को निहार रहा था। एक बच्चा पुल के सीमेंट के खम्भे को पकड़े वर्जिश कर रहा था।
पुल की रेलिंग पर कुछ लोग भजिया के पैकेट खोलकर भजिया फैलाते दिखे। आसपास की चिड़िया उड़कर आती, भजिया चुनकर चली जाती। चिड़ियां एक होर्डिंग की रेलिंग पर बैठी चहचहाती हुई बतिया रहीं थीं। क्या पता मंहगाई पर चर्चा कर रहीं हों। कह रहीं हों-'मंहगाई के चलते लोगों ने दाना डालना कम कर दिया है। बड़ा जमाना खराब आ गया है।' चिड़ियां जो मन आये कह सकती हैं। उनको कौन ED या सीबीआई का डर है।
एक लड़की मोटरसाइकिल की सीट पर टिकी एक लड़के से बतिया और शायद हड़का रही थी। शायद पास ही रहती हो। उसके पहनावे और अंदाज से लग रहा था कि उठते ही बिना मुंह धोए बतियाने और तदनुसार हड़काने चली आई। लड़का सुरक्षित दूरी पर खड़ा लड़की के अमृतवचन ग्रहण कर रहा था।
गंगा में लोग डुबकी लगाते हुए नहा रहे थे। कुछ लोग सीने तक पानी में डूबे आपस में बतिया रहे थे। एक बाबा जी सर पर बालों का मुकुट सा धारण किये गंगा के पानी को अपलक देख रहे थे। कुछ लोग घाट किनारे सोए हुए भी थे। नदी मां की तरह लोगों की हर जरूरत पूरी करती है।
पुल के ऊपर से देखा कि दो दूध वाले पैकेट में दूध बेच रहे थे। फुटकर ले जाने वालों के अलावा एक आदमी बोरे में दूध के पैकेट डलवाता दिखा। बोरे में दूध के पैकेट डलते देख स्कूल के जमाने का जुमला 'बोरे में तेल' याद आया।
यह भी लगा कि जैसे आज दूध और पानी बिकता है वैसे ही क्या पता कल को हवा और धूप भी पैकेट में बिके। हर शहर के हिसाब से अलग हवा मिले। कानपुर और दिल्ली वालों को साफ हवा मुफीद नहीं आएगी। एलर्जी हो जाएगी। आदत नहीं है न। साफ हवा में थोड़ा प्रदूषण मिलाकर ही यहाँ हवा बिकेगी।
पुल से उतरकर गंगा किनारे की तरफ चले। एक जगह ऑनलाइन फार्म भरने की दुकान पर हर तरह का ऑनलाइन काम का विवरण लगा था। बगल में आटा चक्की की दुकान थी जिसमें पते के विवरण में जिला पंचायत अध्यक्ष का विवरण भी था।
आगे दो बच्चे सड़क से कुछ बीनते दिखे। पूछने पर बताया कि गुट्टा बीन रहे हैं। लड़की ने बताया कि लड़का गुट्टा खेल नहीं पाता। वह उसके लिए गुट्टा बीन रहा है। लड़के ने बताया कि उसका दालमोठ का पैकेट लड़की ने ले लिया है और अब दे नहीं रही है। लड़का घर से पैसे लेकर लाया था पैकेट।
लड़की से पैकेट छिनवाकर उसके लिए गुट्टा बीनते हुए लड़का मजे से सब बता रहा था। कोई शिकायत नहीं थी उसको बच्ची से।
फोटो खींचने पर लड़का शरमा गया। लड़की ने उसको साथ आने को कहा और मिलकर फ़ोटो खिंचवाया। लड़की ने लड़के का पैकेट कब्जे में रखा। लड़के को हड़काते हुए उसके साथ खेलती रही। लड़के ने अपना नाम कृष्ण और लड़की का नाम कुसुम बताया।
एक चाय की दुकान पर कुछ लोग बैठे बतिया रहे थे। चाय का चूल्हा शान्त था। हमने उन लोगों से वहाँ बच्चों को पढ़ाने वालों के बारे में पूछा। जय हो फ्रेंड्स ग्रुप के लोग आसपास के छोटे बच्चों को पढ़ाते हैं।
उन लोगों से जय हो फ्रेंड्स ग्रुप के लोगों की खूब तारीफ की। बताया कि आसपास के बच्चे उनके कारण पढ़ने लगे। वो लोग बच्चों को किताब-कॉपी भी देते हैं। त्योहार भी मनवाते हैं। राष्ट्रीय पर्व भी मनाते हैं। अच्छा काम करते हैं। इतवार को सुबह पढ़ाते हैं। बाकी दिन शाम को।
आगे दो लोग एक सुअर को बांधकर ले जा रहे थे। मुंह बंधा होने के कारण सुअर बोल नहीं पा रहा था। चिंचिया रहा था। मोटरसाइकिल पर रखकर चले जाने के बाद एक महिला और वहां मौजूद कुछ बच्चियों में कहा-सुनी होने लगी। महिला ने अपने साथ खड़े आदमी से उन बच्चियों की तरफ देखते हुए कहा-'छुछूदरन के मुंह न लगय का चाही।'
बच्चियां भी जबाब में कुछ कहते हुई चली गईं। कहा-सुनी स्थगित हो गयी।
आगे नदी में नहाते लोग दिखे। बालू घाट नाम था इस घाट का। पक्का बनने के बाद आंनद घाट हो गया नाम। गंगा अलबत्ता वही हैं।
नदी में लोग नहा रहे थे। किनारे कुछ लोग योग कर रहे थे। महिलाएं ज्यादा थे, पुरुष कम। मंदिरों, सत्संत और धार्मिक आयोजनों में आमतौर पर महिलाएं ज्यादा दिखती हैं। घर से बाहर निकलने का जरिया बनते हैं ये स्थल। योगस्थल में भी यही ट्रेंड बन रहा है।
एक बच्ची अपनी छोटी बहन को बार-बार लंहगा पहना रही थी। बार-बार वह ढीला हो जा रहा था। बच्ची फिर-फिर उसको लंहगा पहना रही थी। कई बार की कोशिश के बाद उसको लंहगा पहनाकर उसको गोद में लेकर झूला झुलाने चली गयी।
कुछ देर पहले जिस कुर्सी पर बैठी महिला छूंछुदरों को मुंह न लगाने की बात कह रही थी , उस पर एक बुजुर्ग बैठे थे। एक बच्चे को मूंगा लगी अंगूठी दी उन्होंने। बच्चे ने पहन ली। उसी समय एक और बुजुर्ग आये वहां और कुर्सी पर बैठे बुजुर्ग से कहा-'हमहू का कुछ देव।'
बुजुर्ग ने जेब से कुछ सिक्के निकाल कर बढ़ाये उनकी तरफ। उन्होंने बिना लिए कहा -'ये तो लोहा है। यहिका लेकर का करब? कुछ और देव।'
इस पर बुजुर्ग ने हंसते हुए कहा-'आज के समय में लोहा मिल जाये यहै बहुत है।'
रास्ते में कृष्ण और कुसुम फिर मिले। वे आपस में छुपन-छुपाई जैसा कुछ खेल रहे थे। इस बार लड़का अकेले फोटो खिंचाने को तैयार था। लड़की ने मुंह छिपा लिया। हम लौट लिये।
लौटते में वापस आते समय दो महिलाएं दिखीं। वे टहलकर घर वापस जा रही थीं। विदा लेते हुए उनमें से एक ने कहा-'आज की सभा बर्खास्त।' सभा बर्खास्त करने के बाद वे हंसते हुए विदा हो गयीं।
एक बुजुर्ग पुल पर पान मसाले की दुकान सजा रहे थे। एक जगह तीन महिलाएं बैठी बतिया रहीं थीं। दो महिलाएं आपबीती सुना रहीं थीं। तीसरी महन्त मुद्रा में सुन रही थी।
एक आदमी साइकिल पर आता दिखा। साइकिल का एक पैडल लटक गया था। नट खुल गया था उसका। साइकिल के हैंडल पर तिरंगा झंडा फहरा रहा था। उसने रुक कर कुछ चने पुल पर पक्षियों के लिए और बाकी नदी में मछलियों के लिए डाले। ऐसा वह जब भी पुल से गुजरता है, नियमित करता है।
काम के बारे में पूछने पर बताया कि मसाज का काम करता है। लोग बुलाते हैं, वह उनके घर मसाज करता है। तिलक नगर, स्वरूप नगर। आज कई लोगों ने बुलाया है। एक बार के मसाज के तीन सौ रुपये मिलते हैं।
पुल पार करके हम कैंट की तरफ बढ़ लिए। नरेश सक्सेना जी की कविता याद करते हुए:
पुल पार करने से
पुल पार होता है
नदी पार नहीं होती
नदी में धँसे बिना।
पुल का अर्थ भी
समझ में नहीं आता नदी में धँसे बिना
पुल पार करने से पुल पार नहीं होता
सिर्फ़ लोहा-लंगड़ पार होता है
कुछ भी नहीं होता पार
नदी में धँसे बिना
न पुल पार होता है न नदी पार होती है।
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