Tuesday, June 20, 2006

सितारों के आगे जहाँ और भी हैं…

http://web.archive.org/web/20110925224612/http://hindini.com/fursatiya/archives/146

सितारों के आगे जहाँ और भी हैं…

कल से यह खबर हवा में है:-
प्रवासी भारतीय हिंदी भूषण सम्मान मिला है ब्रिटेन के डॉक्टर कृष्ण कुमार को. जबकि हिंदी विदेश प्रसार सम्मान अनूप भार्गव और वॉयस ऑफ़ अमेरिका के डॉक्टर जगदीश सरीन मिला है.
हवायें हमारे पास देर से पहुंची। बधाईयों के बोझ से दुहरी-तिहरी होते हुये।

अनूप भार्गव
हमारे सम्मान की खबर लाने में इतनी देर क्यों की तुमने? हमने हवाओं को हड़काते हुये कहा।
साहब रास्ते में तमाम लोगों ने अपनी-अपनी बधाइयां नत्थी कर दीं । बोझ बढ़ गया था। लिहाजा कुछ देर हो गई। गुस्ताखी माफ हो।
हमने मुस्कराते हुये महानता का परिचय दिया और माफ कर दिया। तब तक किसी ने फुसफुसाते हुये कहा -लेकिन साहब सम्मानित तो अनूप भार्गव हुये हैं। अनूप भार्गव हसबैंन्ड आफ श्रीमती रजनी भार्गव ,अमेरिका वाले। आप काहे को उचक रहे हैं?
हमने डांट दिया-खामोश! गुस्ताखी की जुर्रत मत करो। हम अनूप हैं,हम सम्मानित हुये हैं। ज्यादा जवान मत लड़ाओ। अनूप माने होते हैं- जिसकी उपमा न दी जा सके। हमारे समान कोई दूसरा नहीं है।लिहाजा यह हमारा सम्मान है।जाओ कोई बढ़िया सा लेखक पकड़ के लाओ जो इस खुशी के मौके को कलमबंद कर सके।
खबरें चुहलबाजी करते हुये बोलीं-साहब जा तो रहें हैं। आप ऐंठ काहे रहे हैं!लेकिन ये कोई तरीका ठीक नहीं है कि अनूप भार्गव की माला आप लटकाये घूम रहे हैं। ये तो उसी तरह हुआ कि बिल्डिंग कोई बनवाये और बन जाने पर नारियल आप फोड़ दें।
हमने कहा- इसे इस तरह समझने का प्रयास करो कि उनको जो कुछ भी सम्मान मिला वो हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये मिला। हमारे लेखों का भी प्रचार-प्रसार वे समय-समय पर करते रहे।लिहाजा उनके इस सम्मान में हमारा भी कुछ योगदान है। और जब कुछ है तो बहुत कुछ मानने से कोई रोक नहीं सकता। जब बहुत कुछ हो गया तो सब कुछ कैसे पीछे रह सकता है। और जब सारा योगदान हमारा साबित हो गया तो फिर ये तो हमारा ही सम्मान हुआ न! ये मामला कुछ ‘टाइपो’ टाइप का हो गया है।
और अचानक हमें ख्याल आ गया सो हमने सच बयान कर ही दिया- अनूप भार्गव को जो प्रचार-प्रसार के लिये सम्मान मिला है वो हमारे लेख के चलते मिला। इसके कारण लोगों को अनूप भार्गव के बारे में पता चला । सम्मानित करने वाले भी हमारे ब्लाग पर इनका फोटो देखकर प्रभावित हुये बिना न रह सके।
फिर आगे हम पूछने लगे-
बहरहाल बताओ ई-कविता मे सारे संदेशों की दशा कैसी है? किस हालत में हैं वे?

रजनी -अनूप भार्गव
खबरें कमेंटरी मोड में आ गयीं। वर्णनातुर होकर बोलने लगीं- हर मेल में बधाई-बधाई बज रही है। जिस मेल को अनूप भार्गव ने टाइप किया है वह गर्व से दोहरी हुई जा रही है कि वे खासतौर अनूप भार्गव के पास आ रही हैं। अनूप भार्गव के उंगलियों के स्पर्श के अनुभव उनसे संभाले नहीं संभल रहा है। कवितायें अपने सृजनकर्ता की तरफ गर्व से ताक रहीं हैं।
और अनूप भार्गव के साथीगण क्या कर रहे हैं?
साथीगणों के बधाई सन्देश एक के बाद एक दनादन आते जा रहे हैं। कोई बता रहा है- इतना बड़ा सम्मान मिला ,बधाई! कोई बता रहा है कि सम्मान छोटा है काम बड़ा। मतलब फिटिंग गड़बड़ है। लेकिन बधाइयों के अम्बार लग रहे हैं। मेलबाक्स गुब्बारे की तरह फूलता जा रहा है।
लोग कवि के सम्मानित होने पर कविता नहीं लिख रहे हैं?
लिख काहे नहीं रहे हैं।ऐसा मौका भला कौन सुधी कवि चूकता है।बल भर लिख रहे हैं। कटारे जी लिखते हैं:-
न उपमा यस्य विश्वेस्मिन् भारं नीत्वानुगच्छति।
अन्तर्जालेन हिन्द्याः ननु सेवकः अनूप भार्गवः।।
उधर हमारे ललित गीतकार, कवि राकेश खण्डेलवालजी अपने गीतकलश से बधाईयाँ उड़ेल रहे हैं:-
हर्ष जितना हॄदय में उमड़ता मेरे
बाँध पाऊं मैं शब्दों में संभवनहीं
आपके कथ्य को, आपके कॄत्य को
प्रेरणा स्रोत मैने है माना सदा
शब्द को भाष्य को और सुघड़ काव्य को
आप देते बढ़ावा रहे हर घड़ी
आपके साथ जो भी मिला पग चले
वे भी सम्मान पाते रहे सर्वदा

शब्द क्षमता कहां पा सके हैं कहो
व्यक्त भाषा हॄदय की कभी कर सकें
तूलिका चित्र केवल बना पाई है
है न संभव कि सौरभ कभी भर सके
आपकी यह लगन, चाँद जैसे गगन
शुक्ल के पक्ष में, नित्य बढ़ती रहे
हम सभी हैं मुदित,आपकी कीर्ति के
सूर्य की रश्मियों से निरंतर जुड़ें
आपसे पात्र ज्यादा बधाई की हैं
शख्सियत प्रेरणा जो बनी है सदा
जिसके अनथक परिश्रम से यश नित्य ही
आपके द्वार आकर खड़ा है रहा
आप स्वीकार शुभकामनायें करें
आपको भी औ’ रजनी को भी अनगिनत
जिनके अनुराग से आपका नेह भी
अपनी भाषा के प्रति है निशादिन बढ़ा
.
राकेशजी ने तो बढ़िया लिखा है । लेकिन ये बताओ कि अनूप भार्गव को सबसे अच्छा दादा मानने वाली मानोशी क्या कहती हैं?
वो क्या कहेंगी सिवा असंख्य बधाइयाँ देने के! सो उन्होंने असंख्य बधाइयाँ भेज दीं। हर्र लगे न फिटकरी रंग चोखा।
लेकिन हमें तो कुछ मानोशी की खिलखिलाहट भी सुनाई दे रही है फिजाओं में। वे क्या कह रही हैं?
वे अपनी खिलखिलाहट से कोटगेट का विज्ञापन करते हुये कह रही हैं -अनूप दा! अब तो रजनी भाभी की कवितायें अपने नाम से छापना बंद कर दो तथा खुद लिखना शुरू कर दो।
और मानोशी की भाभी का क्या कहना है?
वे क्या कहेंगीं सिवाय मुस्कराने के जब तमाम लोग उनकी बातें उनसे ज्यादा कहने वाले मौजूद हैं।
इतनी सूचनायें देकर खबरों की पोटली ऊब सी गयी। बोली आप हमारा टाइम मत बरबाद करें।अभी हमें तमाम बधाइयाँ समेटनी हैं। ई-कविता ग्रुप के तमाम सदस्यों के पास जाना है। इन सबको अनूप भार्गव के पास पहुँचाना है।आपको भी कुछ कहना हो तो बताओ नहीं तो हम चलें।
हमने कहा कि हमारा भी बधाई सन्देश समेट लो इसी में।
खबर-पुटलिया बोली-ठीक है समेट लिया। और कुछ तारीफ सारीफ करोगे या खाली लख-लख बधाइयाँ ,कोटिश बधाइयाँ से निपटाओगे मामला!
हमें कुछ समझ में नहीं आया कि क्या कहें सिवाय इसके कि हमें अपने नामराशि अनूप भार्गव के सम्मानित होने का बहुत हर्ष है। उनको मिला सम्मान से हम खुद सम्मानित हुये हैं।
अभी बहुत दिन नहीं हुये कि हमने अनूपजी की गणितीय कवितायें ,जो कविता कम जोड़-तोड़ ज्यादा थीं , पढ़ीं। फिर हमने उनकी खिंचाईं की जिसे उन्होंने सहज भाव से लिया।
फिर कुछ दिन बाद मानोशी ने इतनी तारीफ की अपने दादा की कि लगा कौन से ऐसे सुर्खाब के पर लगे हैं अनूप भार्गव में जो ये अपने दादा की इतनी दीवानी हैं।
कुछ दिन बाद हमनें अनूप भार्गव की कविताओं से प्रभावित होकर या कहें प्रतिक्रिया मेंपूरा गणितीय कवि सम्मेलन लिखा। जिसकी अनूप भार्गव ने तारीफ की। इससे हमें लगा कि मानोशी के दादा वाकई कुछ-कुछ अच्छे होंगे।फिर भी हम लगातार मानोशी को चिढा़ते रहे कि अरे ऐसे ही हैं तुम्हारे दादा। तमाम प्रमाण देने के बाद भी हमने नहीं माना कि वो सबसे अच्छे हैं। कैसे मान लेते भाई ! सुनी-सनाई बातों पर यकीन नहीं न करना चाहिये।
फिर पिछले दिनों न्यूयार्क में हुये कवि सम्मेलन में अनूप भार्गव को भी भाग लेना था।तब कुछ जानकारी या कविता लेन-देन के सिलसिले में बातचीत का सिलसिला चला। कवि सम्मेलन के निमंत्रण पत्र भी दिखाये गये। निमंत्रण पत्र में अनूप भार्गव का परिचय भी था। परिचय ,जिसमें उनका जन्मविवरण भी था,
भेजने के तुरंत बाद अनूप भाई की हालत उस कुंवारी कन्या की तरह थी जो अपना जतन से छुपाया जन्मतिथि का प्रमाणपत्र अनजाने में ,गलती से किसी को दिखा दे।
तुरंत अनूप भाई ने हमारा जन्मभेद मांगा। हम उनके बाद की डिलीवरी पाये गये। हमारी मुसीबत बढ़ गयी। जिसे हम अपना हमउम्र या दायें-बायें की उमर का मानकर बेलौश खिंचाई में लगे रहे थे अभी तक अब उनकी खिंचाई में सावधानी का धागा भी जोड़ना पड़ता है। सावधानी अपने -आप में बहुत बोर चीज है। और फिर खिंचाईं मे सावधानी -करेला ऊपर से नीम चढ़ा।
बहरहाल,जानकारी के लिये बता दें कि अनूप भार्गव जी बचपन से ही कविता के मैदान में चहलकदमी करने लगे थे। जैसे-जैसे बड़े होते गये यह रुचि परवान चढ़ती गयी।कविता लिखने के अलावा तमाम साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न रहे। भारत में तथा अभी अमेरिका में भी। इसके बावजूद वे अपने बारे में बताते हुये लिखते हैं:-
न तो साहित्य का बड़ा ज्ञाता हूँ, न ही कविता की भाषा को जानता हूँ, लेकिन फ़िर भी मैं कवि हूँ, क्यों कि ज़िन्दगी के चन्द भोगे हुए तथ्यों और सुखद अनुभूतियों को, बिना तोड़े मरोड़े, ज्यों कि त्यों कह देना भर जानता हूं ।
अमेरिका में साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के सूत्रधार की नियमित भूमिका निभाते रहते हैं।बातचीत के दौरान तमाम साहित्यिकों,कलाकारों के अमेरिका प्रवास के किस्से सुनाते बताते रहते हैं।
श्रीमती रजनी भार्गव की कवितायें पढ़कर मानोशी की बात पर विश्वास करने का मन होता है कि अनूप भाई उनकी कवितायें हिंदी के प्रचार-प्रसार के नाम पर अपने नाम से छपा देते होगें ।आशा है कि जल्द ही अनूप भार्गव इस धारणा का खंडन करने के लिये अपनी श्रीमतीजी का ब्लाग बनवायेंगे ताकि दूध का दूध पानी का पानी हो सके ।
इंटरनेट पर ई-कविता के माध्यम से तमाम हिंदीप्रेमियों के बीच साहित्य का प्रचार-प्रसार करने का बेहद सराहनीय काम अनूप भार्गव अंजाम देते रहते हैं। सूत्रधार की भूमिका निभाते हुये सदस्यों के बीच संवाद कायम रखना बहुत मेहनत का काम है जिसे अनूप भाई बखूबी निभाते रहते हैं।
कई बार मैंने देखा कि कुछ सदस्यों के कारण कुछ असहज स्थितियाँ हुईं लेकिन बड़ी खूबसूरती से संयम रखते हुये मामले सहज बनाये रखे। यह उनका कुशल संचालन ही है कि ई-कविता आज के समय का सबसे लोकप्रिय नेटमंच है।
विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि अनूप भार्गव के पुत्र, अनुभव, भी साहित्य में रुचि रखते हैं तथा पिछले दिनों नाट्‌य लेखन के लिये
ईनाम से नवाजे गये हैं। यह देखकर लगता है कि इनके खानदान के कुयें में ही साहित्य की भांग पड़ी है।
जिन लोगों को उ.प्र. हिंदी संस्थान द्वारा सम्मानित किया गया है उनमें अनूप भार्गव का नाम सबसे आखिर में है। सबसे ऊपर नामवार सिंह हैं जो वर्षों पहले लिखना बंद कर चुके हैं। नीव की ईंट के रूप में अनूप भार्गव हैं जो शायद सम्मानित होने वालों में सबसे अधिक सक्रिय हैं। अभी तो ये शुरूआत है। कामना है कि आगे के जीवन में अनूप भाई नींव से शिखर तक पहुंचे।
प्रचार-प्रसार के साथ-साथ नियमित लेखन-प्रकाशन भी चलता रहे। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता आपके चरण चूमे। साथ ही हर चुंबन के बाद सफलता आपके कान में फुसफुसाती रहे-
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं,अभी इश्क के इम्तहाँ और भी हैं।
मेरी पसन्द
ख्वाबों को ऐसे सजाया है मैंने
हथेली पे सूरज उगाया है मैंने ।
आओ न तुम , तो मर्जी तुम्हारी
बड़े प्यार से पर बुलाया है मैंनें ।
लिखा ओस से जो तेरा नाम ले के
वही गीत तुम को सुनाया है मैंने ।
जीवन की सरगम तुम्ही से बनी है
तुझे नींद में गुनगुनाया है मैंने ।
मेरे आँसुओं का सबब पूछते हो
कतरा था यूँ ही बहाया है मेंने ।

-अनूप भार्गव

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

10 responses to “सितारों के आगे जहाँ और भी हैं…”

  1. राकेश खंडेलवाल
    आपके साथ जो भी मिला पग चले
    वे ही सम्मान पाते रहे सर्वदा
    अब यह पंक्तियां मैने अनूप भाई के लिये लिखी थीं पर हवाओं ने कहा के आपने उनमें एक और विशेषण जोड़ दिया है तो फिर ही को हटा कर भी करना पड़ा. अन्यथा सम्मान तो बहरहाल अनूप(जी) को ही मिला है और हमारे लिये तो हर अनूप सम्मानित है. फिर भी एक अलंकरण और सही
  2. अनूप भार्गव
    सुना है गालिब नें एक बार मोमिन से कहा था ‘मुझे अपना ये एक शेर दे दो, चाहे मेरा पूरा ‘दीवान’ ले लो । कुछ ऐसा ही आप के लेख को पढनें के बाद कहनें की इच्छा हो रही है । मेरा पूरा ‘दीवान-ए-गालिब’ ले लीजिये ……। अब इस को ‘ऐप्रीशियेट’ करनें के लिये आप को एक सच्चा ‘वाकया’ सुनाना पड़ेगा । एक मुशायरे के बाद ‘नये नये श्रोता’ एक शायर के पास पहुँचे और तारीफ़ों के पुल बाँधनें शुरू कर दिये । ‘वाह क्या लिखते हैं आप , मज़ा आ गया , ये बताइये आप का ‘दीवान-ए-गालिब’ कब आ रहा है ? सुना है ‘चचा गालिब’ उस दिन देर रात तक कब्र में करवटें बदलते रहे ।
    खैर मज़ा आ गया लेख पढ कर । तस्वीर भी अच्छी लगी । कम से एक पात्र तो खूबसूरत लग रहा था । पता नहीं ‘अमेरिका के कैमरे का कमाल’ दोनों पात्रों पर एक सा क्यों नहीं दिखता ? इस विषय में ज़रा सोचियेगा । वैसे अगर आप ऐसे ही लिखते रहे तो अगले सम्मान के लिये अभी से तैयारी शुरू करनी होगी ।
    आप ने कहा कि “सावधानी अपने -आप में बहुत बोर चीज है। और फिर खिंचाईं मे सावधानी -करेला ऊपर से नीम चढ़ा। ” बिल्कुल सही बात है । तो अपनी इस सावधानी को ज़िन्दगी में कहीं और ‘बरत’ लीजियेगा । सावधानी के साथ की हुई खिंचाई भी कोई खिंचाई हुई …..
    आप ने ‘ईकविता’ के बारे में लिखा तो हम भी ज़रा ‘कमर्शियल ब्रेक’ ले लें । अगर आप की कविता में रुची है (लिखना ज़रूरी नहीं ) तो http://launch.groups.yahoo.com/group/ekavita/ पर जायें और ईकविता से जुड़ें । ekavita-owner@yahoogroups.com पर मुझे लिख भी सकते हैं । ईकविता सिर्फ़ कविता के बारे में है , धर्म , राजनीति और अन्य सब बातों से परे ।
    सम्मान के लिये दी गई बधाइयों का धन्यवाद । ईमानदारी से कहूँ तो इस सम्मान का ‘निजी रूप से’मेरे लिये बहुत ज्यादा अर्थ नही है मेरी पत्नी आज भी मुझ से उतना ही प्यार करती है जितना सम्मान से पहले :-) ) लेकिन खुशी इस बात की है कि पिछले कुछ वर्षों से जो प्रयास हिन्दी के प्रसार के लिये सम्भव हो पाये , उन्हें मान्यता मिली । मुझे यह कहनें में भी शर्म नही है कि इस ‘सम्मान’ का लाभ उठाते हुए अगर हम हिन्दी के लिये कुछ ‘और’ कर पायें तो मुझे ज़्यादा खुशी होगी ।
    अरे ये टिप्पणी तो लेख से ज्यादा लम्बी होनी लगी …..
    यहीं रुकता हूँ …
    अनूप (भार्गव)
  3. e-shadow
    अनूप जी को पूरे हिन्दी चिठ्ठा परिवार की बधाइयाँ।
    फुरसतिया जी, शानदार लेख के लिये कितने भी शब्द कम हैं।
  4. Hindi Blogger
    अनूप भार्गव जी को असीम शुभकामनाएँ!…धन्यवाद अनूप शुक्ला जी आपको भी, इतना बढ़िया आयोजन करने के लिए.
  5. प्रत्यक्षा
    बडा शानदार लेख लिखा.
    अनूप जी ( भार्गव ) को बधाईयाँ पहले दे चुके थे लेकिन इस लेख को पढकर एकबार फिर बहुत सारी बधाई और शुभ कामनायें. अब तो आप मानेंगे कि आप ‘सेलेब्रिटी ‘ हैं :-)
  6. अनूप भार्गव
    प्रत्यक्षा !
    फ़ुरसतिया जी लेख लिखें और तुम टिप्पणी तो ‘सेलेब्रिटी’ तो हो ही जायेंगे ना …
  7. sangeeta manral
    बहुत खूब अनूप जी,
    बङा ही शानदार लेख लिख डाला| वैसे भी हम तो आपके क्रिटिक्स के फैन हैं|
    अनूप जी (भार्गव) को एक बार फिर ढेरों बधाईयाँ|
  8. फ़ुरसतिया » अनूप भार्गव सम्मानित
    [...] सम्मान के बारे में विस्तार से यहां पढे़.समीरलाल जी को सूचनार्थ निवेदित है कि उनकी ई-झप्पी हमने अनूप भार्गव तक पहुंचा दी थी.जीतू के लिये समाचार है कि नारद के लिये चंदा -चर्चा भी हुयी थी और अनूप जी अपने हिस्से की राशि अमेरिका पहुंच कर दे देंगे. [...]
  9. फ़ुरसतिया » …अथ लखनऊ भेंटवार्ता कथा
    [...] खबर उड़ना सम्मानित होने की:- बात उन दिनों की है जब प्लूटो का ग्रह होने का दर्जा छिना नहीं था न ही नारद जी पैदल हुये थे और न ही सचिन तेंदुलकर ने अभी बनाया शतक बनाया था। यहां तक कि लगे रहो मुन्ना भाई या ऒंकारा पिक्चरें रिलीज हुईं थी। गरज यह कि सब कुछ सामान्य था। लेकिन तभी कुछ असामान्य घटनाक्रम हुआ ।बी.बी.सी. ने खबर उड़ा दी कि अमेरिका में रहने वाले अनूप भार्गव को विदेशों में हिंदी प्रचार के लिये जिम्मेदार ठहरा दिया गया। जब तक खबर का मतलब समझा जाये तब तक कानपुर में अनूप शुक्ल के यहां १२० रुपये किलो वाली मिठाई के दो डिब्बे खप गये। बाद में लोगों ने पेडे़ के ऊपर पानी पीते हुये कहा कि भाई नामराशि के सम्मानित होने की इतनी खुशी तो कम से कम होनी ही चाहिये। हम मजबूर थे खुश होने के सिवा क्या कर सकते थे! सो हुये। लेकिन उसका फायदा भी अनूप भार्गव को ही मिला। सम्मानित तो होना था सितम्बर में लेकिन हमारी खुशी के चलते ‘सेलेब्रिटी’ बन गये जून में ही। हमने राकेश खंडेलवाल की कविता पंक्तियां:- [...]
  10. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] नाम होता… 9.मौसम बड़ा बेईमान है… 10.सितारों के आगे जहाँ और भी हैं… 11.अमरीकी और उनके मिथक 12.अमेरिका-कुछ [...]

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