एक दिन हम
टीवी देख रहे थे। रिमोट का बटन दबा-दबाकर चैनल बदलने की कोशिश कर रहे थे।
लेकिन आगे नहीं बढ रहा था। रिमोट को पटक के देख लिया। बैटरी निकाल कर फ़िर
से लगाई। स्थिति यथावत रही। तय कर लिया कि बैटरी खल्लास हो गयी है। मेस में
बच्चे को बुलाया -बैटरी लेकर आओ। रिमोट काम नहीं कर रहा है।
बच्चा आया। उसने पीछे रखे सैट टॉप बक्से को पीछे से सरकाकर आगे कर दिया। रिमोट फ़टाफ़ट काम कर लगा। चैनल सरपट सरकने लगे।
पता चला कि हम रिमोट को टीवी की तरफ़ मुंह करके चला रहे थे। सेट टॉप बक्सा पीछे था। चैनल बदले कैसे?
अपने
आसपास की चीजों कैसे काम करती हैं इससे अनजान होते जा रहे हैं हम। हमको
पता है कि टीवी का चैनल सेट टॉप बक्से से चलता है। लेकिन चैनल बदलते समय यह
बात गोल हो गयी दिमाग से।
तकनीकी जहालत के फ़ूल जगह-जगह खिले दिखते हैं।
दो
महीने पहले या कुछ और पहले अपने मोबाइल पर ’व्हाटस एप’ उतारा। दोस्तों से
बात होती रही। पिछले हफ़्ते एक दोस्त ने कहा-” अपनी फ़ोटो तो लगा लो ’व्हाटस
एप’ पर। हम मोबाइल का चप्पा-चप्पा छान मारे जैसे कभी अमेरिका ओसामा को
खोजने में दुनिया का कोना-कोना खंगाल मारा था। लेकिन कोई जुगाड़ न दिखा फ़ोटू
सटाने का। हमारे कई दोस्त दिन में कई-कई बार अपने चित्र लगा रहे थे। हम एक
लगाने के लिये तरसे जा रहे थे।
फ़िर एक दोस्त से पूछा। उसने मोबाइल की बायीं तरफ़ दबाया। सेटिंग्स आई। हमने फोटो लगाई। उसने कहा बधाई!
जिस
बात के लिये हम मोबाइल की नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे डोल रहे थे वह उसी बटन
के एकदम बगल में थी जिसको हम दिन में सैकड़ो बार दबाते थे। इसी को कहते
हैं–”गोदी लड़का गांव गोहार।”
जबसे
मोबाइल में कैमरे का चल बढा है तबसे फोटू खींचने के काम में बेतहाशा
बढोत्तरी हुई है। हाल ये है कि अब कोई मोबाइलधारी मानव किसी चीज को देखता
बाद में है फ़ोटू पहले खींचता है। मोबाइल खरीद में उसके कैमरे का महत्व बढ
गया है। पहले लगता था मोबाइल में कैमरा होता था अब लगता है कि कैमरे में
मोबाइल आने लगा है।
मोबाइल में एक ठो और फ़ंक्शन होता है -’सेल्फ़ी’।
’सेल्फ़ी’ सुनने में लगता है- सेल्फ़िश! माने की ’सेल्फ़ी’ मतलबी घराने का कोई शब्द है।
’सेल्फ़ी’
माने खुद का फोटो खीचने की सुविधा। अब आप अपना फोटो खींचने के लिेये किसी
के मोहताज नहीं रहे। सामने का फोटो खींचते-खींचते अपना भी खींच लीजिये।
हंसते हुये, मुस्कराते हुये, मुंह बनाते हुये, बिराते हुये। माने जिस तरह
का चाहे उस तरह का। बतियाते हुये भेज दीजिये दोस्त को। सटा दीजिये सोशल
मीडिया पर। फ़ेसबुक, ट्विटर, ब्लॉग जहां मन आये तहां।
सेल्फ़ी
खुद की फोटो खैंचने की सुविधा मुहैया कराता है। इस चक्कर में आदमी अक्सर
मुग्धा नायिका बन जाता है। खुद की फ़ोटो खींचता है। अपने पर रीझता है।
मुस्कराता है। अच्छी आती है तो दुनिया भर को दिखाता है। खराब आती है तो
’डिलीट’ का बटन दबाता है।
इस
चक्कर में कभी-कभी बवाल मच जाता है। किसी का सेल्फ़ी से अपने ’चुनाव चिन्ह’
के साथ लिये फोटो पर हल्ला मच जाता है। आचार संहिता का उल्लंघन हो जाता
है।
बहरहाल ये सब तो आधुनिक तकनीक के जगर-मगर हैं। आदमी पता नहीं इन सबमें कितना खो जाता है।
दुनिया से इतना ज्यादा जुड़ता है अक्सर अपने आसपास से कट जाता है।
सारे जहां की खबर लेने वाला खुद को भूल जाता है।
वाकई मै बहुत सौभाग्यशाली हूँ जो आपका सानिध्य प्राप्त हुआ.....आज तो लोग जगमगाने के लिये ही जगर मगर करते हैं लेकिन आप जैसे लोग अभी भी जगमगाने से डरते हैं... हालाँ कि ये भी सही है कि आज के परिवेश में तकनीकि ज्ञान बहुत महत्वपूर्ण है ...
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