रोज की तरह कैमरा लिए खड़े थे अपन कल दोपहर को चौराहे में कि ये बच्ची दिखी।शायद धूप के कहर से बचने के लिए पूरा चेहरा ढंके । एक हाथ में साईकिल का हैंडल थामे और दूसरे में कान से मोबाईल सटाए बतियाती जा रही बच्ची को देखकर हमको फिर Mukesh Tiwari कविता की आखिरी पंक्तियाँ याद आ गयीं:
"लड़कियां अपने आप में मुकम्मल जहाँ होती हैं"।
- Krishn Adhar वच्चियों के जिक्र में आप इतने निर्दोष शव्द तथा साहित्य -पंक्तियां कहां से ढूंढ लाते हैं,आप के शोधऔर संतुलन को वधाई ।
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