Monday, May 12, 2014

गर्मी में गर्मी न पड़ेगी तो क्या जाड़ा पड़ेगा?



सुबह कमरे का दरवज्जा खोलते ही बरामदा उसके बाद मेस का लान और उसके आगे सड़क दिखती है। अशोक का जवान होता पेड़ अपने सर पर रौशनी की टोपी लगाये दीखता है। पेड़-पौधे शांत अपनी जगह खड़े दीखते है। सज्जन पड़ोसियों की तरह वे आपस में बात नहीं करते। कभी-कभी हवा चलती है तो पत्तियाँ जरा हिलडुल कर आपस में हेल्लो,हाउ डू यू डू टाइप कुछ कर लेती हैं।

युकिलिप्टस का पेड़ सीधा तना खड़ा रहता है। आसपास के पेड़ों से बहुत ऊँचा है। जहां दूसरे पेड़ों की फुनगी ख़तम होती है उससे और ऊपर तक तो इसका तना जाता है। दलदली जमीन पर लगाया जाने वाला यह पेड़ तमाम अतिथिगृहों में लगा दीखता है। खूब पानी सोखते हुए जल्दी बढ़ जाना इसकी खासियत है। खजहा टाइप के तने वाले युकिलिप्टस को लगाने का निर्णय लगाने वालों की सोच देश के विकास की नीतियाँ बनाने वालों जैसी रही होंगी। देश का विकास मतलब जीडीपी,विदेशी पैसा, अलाय-बलाय भले ही आम जनता भाड़ में जाए।

गर्मी में सूरज भाई रोशनी और धूप इफरात में बांटते हैं। लोग लेने में हिचकते हैं। भरे पेट वाला जैसे थाली के ऊपर हाथ की कैची बनाकर और पूड़ी लेने के लिए मना करता है वैसे ही लोग छाता लगाकर,मुंह ढककर सूरज की रौशनी से बचने की कोशिश करते हैं। लेकिन जैसे शातिर परसवैया किनारे से पूरी थाली में सरका देता है वैसे ही सूरज भाई भी दायें-बाएं से गर्मी ठेल ही देते हैं।

आज सुबह कह रहे थे सूरज भाई कि लोग कहते हैं-"गर्मी बहुत पड़ रही है।
अरे भाई गर्मी में गर्मी न पड़ेगी तो क्या जाड़ा पड़ेगा?
चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप न होगा तो क्या वसुधैव कुटुम्बकम होगा?"

हम चुप रहे। सूरज भाई चाय पीते रहे, बोलते रहे।
(फोटो पहली मंजिल पर स्थित हमारे कमरे से)




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