ट्रेन
कटनी स्टेशन पर खड़ी है। चाय पीने को उतरे तो सामने ही सूरज भाई दिखे।
गुडमार्निंग हुई। चाय सात रूपये की है। पैसे टटोलते देख चाय-बच्चा
बोला-"फुटकर हों तो 6 ही चलेंगे।" लेकिन मिल गये पूरे पैसे। हमने और सूरज
भाई ने एक ही कप में चाय पी। मजेदार चाय।
"ट्रेन डेढ़ घंटा लेट है। मानिकपुर में समय के पहले थी। आगे जैतवारा में इसको साइड में रखकर तीन एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी निकाल दीं। जबलपुर जल्दी पहुंचने के लिए इसमें ड्युटी लगवाई थी। कुछ व्यक्तिगत काम था। लेकिन ट्रेन ने सब गड़बड़ा दिया।"- प्लेटफ़ार्म पर खड़े ट्रेन के डिब्बे पर पान मसाले की पीक लगातार थूकते हुए टीटी ने बताया।
"ट्रेन डेढ़ घंटा लेट है। मानिकपुर में समय के पहले थी। आगे जैतवारा में इसको साइड में रखकर तीन एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी निकाल दीं। जबलपुर जल्दी पहुंचने के लिए इसमें ड्युटी लगवाई थी। कुछ व्यक्तिगत काम था। लेकिन ट्रेन ने सब गड़बड़ा दिया।"- प्लेटफ़ार्म पर खड़े ट्रेन के डिब्बे पर पान मसाले की पीक लगातार थूकते हुए टीटी ने बताया।
हमारी सीट के पास का चार्जिंग प्वाइंट उखडा हुआ है। टीटी को बताया तो बोले-"पुरानी बोगी है। ठीक करा देंगे जबलपुर में।"
ट्रेन चल दी है। खिड़की के बाहर सूरज भाई पूरे जलवे के साथ चमक रहे हैं। धरती धूप को अपने चहरे पर रगड़-रगड़ के चेहरा चमका रही है। मुट्ठी में भर-भर कर बार-बार धूप के छींटे मार रही है अपने मुंह पर। धरती के चेहरे से छिटकी हुई धूप आसपास के पेड़,पौधों,फूल,पत्तियों, लता, वितानों पर चमक रही है। धरती पर धूप ऐसे चमक रही मानों समूची कायनात मुस्करा रही हैं।
एक खेत के दो छोरों पर दो कुत्ते एक दूसरे की तरफ पीठ किये बैठे हैं। लग रहा है दोनों में बोलचाल बंद है। या फिर हो सकता है इनके यहाँ भी चुनाव हुआ हो। सीटों का तालमेल न हो पाने के चलते एक-दूजे से रूठने का रियाज कर रहे हों।
एक चिड़िया अकेली आसमान पर उठती,गिरती, लहराती हुई उड़ने की कोशिश करती उड़ भी रही है।आसपास कोई पेड़ नहीं है न कोई चिड़ियों की डिस्पेंसरी कि चोट लगने पर फ़ौरन इलाज हो सके लेकिन चिड़िया उड़ रही है। पंख से ज्यादा शायद अपने हौसले से। रमानाथ अवस्थी जी की कविता है न:
ट्रेन अब स्पीड पकड़ ली है। मन लगाकर दौड़ रही है। उसकी सीटी की आवाज सुनते हुए आलोक धन्वा की कविता याद आ रही है:
http:/kabaadkhaana.blogspot.in/2013/01/blog-post_7.html?m=1
ट्रेन चल दी है। खिड़की के बाहर सूरज भाई पूरे जलवे के साथ चमक रहे हैं। धरती धूप को अपने चहरे पर रगड़-रगड़ के चेहरा चमका रही है। मुट्ठी में भर-भर कर बार-बार धूप के छींटे मार रही है अपने मुंह पर। धरती के चेहरे से छिटकी हुई धूप आसपास के पेड़,पौधों,फूल,पत्तियों, लता, वितानों पर चमक रही है। धरती पर धूप ऐसे चमक रही मानों समूची कायनात मुस्करा रही हैं।
एक खेत के दो छोरों पर दो कुत्ते एक दूसरे की तरफ पीठ किये बैठे हैं। लग रहा है दोनों में बोलचाल बंद है। या फिर हो सकता है इनके यहाँ भी चुनाव हुआ हो। सीटों का तालमेल न हो पाने के चलते एक-दूजे से रूठने का रियाज कर रहे हों।
एक चिड़िया अकेली आसमान पर उठती,गिरती, लहराती हुई उड़ने की कोशिश करती उड़ भी रही है।आसपास कोई पेड़ नहीं है न कोई चिड़ियों की डिस्पेंसरी कि चोट लगने पर फ़ौरन इलाज हो सके लेकिन चिड़िया उड़ रही है। पंख से ज्यादा शायद अपने हौसले से। रमानाथ अवस्थी जी की कविता है न:
"कुछ कर गुजरने के लिए
मौसम नहीं मन चाहिए।"
ट्रेन अब स्पीड पकड़ ली है। मन लगाकर दौड़ रही है। उसकी सीटी की आवाज सुनते हुए आलोक धन्वा की कविता याद आ रही है:
हर भले आदमी की एक रेल होती हैकविता आलोक धन्वा की आवाज में यहाँ सुनिए।
जो माँ के घर की ओर जाती है
सीटी बजाती हुई।
धुँआ उड़ाती हुई।
http:/kabaadkhaana.blogspot.in/2013/01/blog-post_7.html?m=1
- अजय कुमार झा, Sharad Mishra, Rekha Srivastava और 73 अन्य को यह पसंद है.
- ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान' वाह भाई वाह। सुबह का चित्रण मन तो ताजा कर गया। हालांकि घर से नहा कर चले थे बिलकुल फ्रेश मूड में। लेकिन 4 दिन की छुट्टी मनाकर ऑफिस में फाइलों का गट्ठर देखकर आलस सवार होने लगा था। आपका अपडेट पढ़कर आलस्य भाग गया, जैसे किसी कामचोर क्लर्क के सामने अचानक महाप्रबंधक आकर खड़े हो जाएँ। साधुवाद। शुभप्रभात।
- Vijay Sappatti kya baat hai anup ji , aapko padhkar man kho jaata hai, hamari bhi namaste boliye suraj bhayi ko
- मनबोध मास्टर · Ashish Rai और 33 others के मित्रसूरज से बतियाना रोचक लगा.
- Uttpal Mishra आप से निवेदन है की एक पुस्तक अविलम्ब प्रकाशित कराये ,आपकी प्रत्येक पोस्ट पसंद आती है I यह ईश्वर की विशेष कृपा आप पर है I
- Kiran Dixit सूरज की तपिश यहां तक महसूस हो रही थी। सूरज भाई के साथ चाय पीने में एक बात जरूर रही होगी , चाय ठंडी नहीं हुई होगी । यात्रा न होकर किसी की आवभगत, किसी पर राजनीति, किसी की बखिया उधेड़ना , तो किसी का काव्य पाठ करना हो गया हो ।बकिया सब अच्छा ही था।कुल मिलाकर यात्रा मनोरंजक ही रही क्योंकि जिनसे यारी है वे सब साथ ही थे ।।
- Gyan Dutt Pandey आप से निवेदन है की एक पुस्तक अविलम्ब प्रकाशित कराये ,आपकी प्रत्येक पोस्ट पसंद आती है I यह ईश्वर की विशेष कृपा आप पर है I
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