इतवार को शहर कुछ दूर पैदल टहले। मरियमपुर क्रासिंग से विजयनगर उर्फ़ गन्दा नाला चौराहा। भद्दर दोपहरिया में सड़क नापने को 'नून वाक' कहेंगे कि 'भून वाक'। आदमी पूरा भुने भले न पर सिंक तो जाता ही है। सड़क चटाई की तरह बिछी थी उस पर सूरज भाई गर्मी की कार्पेट बांबिग सी कर रहे थे।
अमर उजाला अख़बार के दफ्तर के पास वाले मोड़ पर देखा कुछ लोग चारपाई पर, कुछ लोग सड़क पर पसरे और बाकी बैठे हुए थे। पहली नजर में देखने पर लगा कोई बारात किसी अमराई में आरामफर्मा है। लेकिन ऐसा था नहीं।
एक नौजवान अपनी एक टांग पर कच्चा प्लास्टर बांधे दिगम्बरवदन सबके बीच में बैठा था। टूटी टांग को जमीन से थोड़ा ऊपर उठाये था या फिर पैर चोट के प्रताप से खुद उठ गया होगा। उसको घेरे हुए लोग उसके हाल पूछ रहे थे। जिनको हाल पता चल रहे थे वो दूसरों को हाल 'फारवर्ड' कर रहे थे। 30 किलोमीटर दूर से पैर टूटने पर हाल पूछने आये लोग रिश्तों में बची संवेदना की मिशाल लगे।
हम ठहर कर बतियाने लगे उनसे। पता चला कि नौजवान शोभन के पास के गाँव टिगरा का रहने वाला है। रिक्शा चलाता है। बताया कि दारू के नशे में एक मोटरसाईकल वाले ने उसको ठोंक दिया। घुटने की कटोरी निकल गयी। शहर आया है इलाज के लिए। इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। एक डाक्टर ने मुफ़्त में प्लास्टर चढ़ाने की बात कही है। पता नहीं कितना सही था यह लेकिन लगा कि डॉक्टर गरीब परवर है।
जब तक प्लास्टर नहीं चढ़ जाता तब तक शहर में ही रहना है। जगह नहीं है तो पेड़ के नीचे डेरा है। शाम को सामने अहाते के बाहर ठिकाना। जिस गर्मी में सड़क पर पैदल चलने को हम बहादुरी मान रहे उसी मौसम में ये भाई जी आराम से बतिया रहे थे।
गाँव से देखने आये लोग रिश्ते के लिहाज से व्यवस्थित थे। बुजुर्ग लोग खटिया पर। बच्चे और महिलाएं सड़क पर। कुछ महिलाएं घूँघट में थी। एक महिला की एक आँख कंचे की तरह सफेद थी। एक बुजुर्ग महिला एक बच्चे को खिला रही थी। बच्चा अचानक रोने लगा। महिला ने चुप कराने की कोशिश की। बच्चा माना नहीं। महिला न थोड़ी और कोशिश की चुप कराने की। बच्चा जिद पर अड़ गया। माना नहीं। महिला का धैर्य शायद खर्च हो गया था। हाथ खाली। उसने बच्चे को थपड़िया दिया। बच्चा थोड़ी देर जोर से रोया। फिर रोते-रोते थककर सो गया।
घायल नौजवान का नाम सोनू था। तीन बिटिया हैं उसके। सबसे बड़ी बिटिया पारो पापा के पीछे से आकर गर्दन के पास चिपक गयी। पांच में पढ़ने वाली पारो की हमने फोटो खींची तो शर्मा सी गयी। जब फोटो दिखाई तो बिना देखे और ज्यादा शर्माकर दूर भाग गयी। खेलने लगी।
कल शाम को लौटते हुए देखा तो पेड़ के नीचे जमावड़ा उखड़ गया था। सामने कुछ लोग बैठे ताश खेल रहे थे। सब युवा लोग। पता किया तो बताया गया कि सोनू तो प्लास्टर चढ़वाकर गाँव चला गया। बताने वाली सोनू की मौसी थी। बोली -'मेरी बहन का बेटा है।'
डॉक्टर के मुफ़्त इलाज की बात पर बोली-'आजकल बिना पैसे कौन डॉक्टर इलाज करता है?' मतलब पैसा लगा होगा कुछ।
सोनू की मौसी फिर अपना बताने लगी। बोली -'विधवा हूँ। छह साल पहले आदमी खत्म हो गया। बच्ची की शादी कर दी। पहले गोबर के कण्डे पाथ कर गुजारा हो जाता था। अब उस पर भी पाबन्दी लग गयी। सड़क पक्की हो गयी। कण्डे पाथने का जुगाड़ बन्द। कुछ समझ नहीं आता कैसे गुजर होगी। गरीब आदमी की मरन है।
हमसे कोई जबाब नहीं देते बना। हम चुपचाप घर चले आये। अँधेरा हो रहा था। सब तरफ अँधेरा सा ही लग रहा था। दिन भी हुआ अगले दिन, हमेंशा की तरह।
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