बाब-ए-सिकंदर बेगम |
भोपाल के ताल के सामने एक बड़ी इमारत दिखी। दिखी तो गए साल भी थी लेकिन तब केवल बाहर से देख लिए। इस बार मन किया अंदर से भी देखा जाए।
इमारत की सीढ़ियां चढ़ते हुए लगा कि कोई मस्जिद है। मन मे आया कि कहीं गलत तरीके से घुसने के नाम पर दौड़ा न लिए जाएं। घुसने के पहले पूछना बेहतर।
संयोग से एक बुज़ुर्गबार मोटर साइकिल की पिछली सीट पर बैठे उस इमारत को माशूका की तरह बड़ी तसल्ली से निहार रहे थे। घूंट-घूंट भरकर देखने जैसा। हमने उनसे पूछा तो बोले -'देख रहा हूँ इस इमारत को जहां मैं तीस साल रहा।'
इसके बाद तो साहब उन्होंने उस इमारत के किस्से सुनाने जो शुरू किए तो फिर तो लगा समय को स्टेच्यू बोल दिए हैं। खड़ा हो गया टाइम वहीं अटेंशन होकर। बेग साहब हां हाजी बेग नाम है उनका हमको सन 1930 से लेकर अब तक के इतिहास में टहलाते रहे। किस्सा गोई जबरदस्त। उन्होंने बताया कि कैसे उनके खानादान के लोग नरसिंहपुर से भोपाल आये। भोपाल के नबाब से पनाह मांगी। नबाब साहब ने एक महल नुमा घर खुलवा दिया जहां मिट्टी और चमगादड़ कब्जा किये हुए थे। एक के बाद एक किस्से विन्जिप्ड फाइलों की तरह हमारे सामने खुलते गए।
इस इमारत का नाम बताया उन्होंने बाब-ए-सिकंदरमहल। जिसे लोग बाबे सिकंदरी कहते हैं। इस नाम की बेगम यहां रहती होंगी कभी। बाद में सालों बेग साहब रहे।
आलोक पुराणिक संग हाजी बेग। सबसे बड़ा रिश्ता इंसानियत का होता है। |
बेग साहब अपने किस्से सुनाते हुए अपनी बात भी कहते गए। बोले -'इंसान जिन लोगों बीच रहता है उनसे ही तौर तरीका सीखता है। इसलिए अपने से अलग कोई अगर व्यवहार करता है तो यह नहीं समझना चाहिए कि वह गलत ही है। उसका नजरिया भी समझना चाहिए। '
बेग साहब ने एक और बड़ी बात कही। बोले -'सबसे बड़ा रिश्ता इंसानियत का होता है।' यह बात तो तमाम लोग कहते आये हैं। रोज इंसानियत का अंतिम संस्कार करने वाले तक इंसानियत की बात करते रहते हैं। लेकिन बेग साहब ने इसको एक उदाहरण से समझाया । बोले -' आप किसी जंगल मे अकेले फंस गए हों। जंगल का डर, हौवा आपके जेहन में हावी हो जाएगा। ऐसे में कोई इंसान आपको वहां दिख जाए तो आपका डर फौरन खत्म हो जाता है। भले ही वह आदमी गूंगा-बहरा हो। वह अपने इशारों से आपको जंगल से बाहर ले आएगा। उस समय यह फर्क नहीं पड़ता कि अगला हिन्दू है कि मुसलमान कि ईसाई।
बेग साहब की किस्सा गोई वाली गुफ्तगू सुनकर लगा कि भाषा भी कितनी खूबसूरत हो सकती है। किसी खूबसूरती को देखकर जैसे उसको देखते, निहारते रहने का मन करता है ऐसे ही उनको सुनते हुए भी लगा कि बस सुनते चले जाएं।
एक और मजेदार बात कही बेग साहब ने। ऊपर आसमान में उड़ते जहाज की ओर देखकर। बोले ये हवाई जहाज में उड़ने वाले लोग सदियों से मुल्क पर कब्जा किया हैं। इन चार-पांच लाख लोगों को वोट देकर अपनी रहनुमाई सौंपना ही बाकी की रियाया का काम है। इससे ज्यादा का काम और अधिकार रियाया के जिम्मे नहीं है।
आलोक पुराणिक इसी बात को आंकड़ों में कहते हैं कि अपने यहां तीन इंडिया हैं। एक हिस्सा अमेरिका है जिसके पास सब कुछ है। दूसरा हम आप जैसे लोगों को मिलाकर मलेशिया बनता है जिसके पास खाने-पीने - जीने की सुविधा है।तीसरा सबसे बड़ा हिस्सा युगांडा की तरह है जिसके पास जीने की मूलभूत जरूरतें पूरी करने के भी साधन नहीं।
बहरहाल बेग साहब से मिलकर फिर से यह यकीन पुख्ता हुआ कि सबसे बड़ा रिश्ता इंसानियत का होता है।
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