उस दिन प्लेटफार्म के बाहर फर्श पर बैठी महिला आलपिन से दांत खोद रही रही थी। बहुत दिन बाद आलपिन से दांत खुदाई दिखी। महिला तसल्ली से कुछ सोचती हुई, सामने जमीन ताकती हुई आलपिन दाँतों में टहला रही थी। बीच-बीच में आलपिन को देखती भी जा रही थी। देखकर फिर से दांत में घुसा देती। उसके चेहरे पर अनिर्वचनीय तसल्ली पसरी हुई थी।
उसकी तसल्ली देखकर मन के तार अनायास अफगानिस्तान में महिलाओं के हाल से जुड़ गए। वहां की नई हुकूमत ने महिलाओं को घर और पर्दे तक सीमित करने के फरमान जारी कर दिया है यह कहते हुए कि महिलाओं का काम घर में रहना है, बच्चे पैदा करना है।
महिलाओं की स्थिति से 'वोल्गा से गंगा' का 6000 ईसा पूर्व का इतिहास याद आ गया। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार उस समय परिवार की मुखिया स्त्रियां होती थीं। उस समय के एक परिवार का बयान :
"निशा की भांति ही दूसरे परिवारों पर भी उनकी माताओं का शासन था, पिता का नहीं। वस्तुत: वहां किसका पिता कौन है , यह बतलाना असम्भव था। निशा को आठ पुत्रियां और छह पुत्र पैदा हुए जिनमें चार लड़कियां और तीन पुत्र अब भी उसकी पचपन वर्ष की अवस्था में मौजूद हैं। इनके निशा सन्तान होने में संदेह नहीं, क्योंकि इसके लिए प्रसव का साक्ष्य मौजूद है; किंतु उनका बाप कौन है, इसे बताना सम्भव नहीं। निशा के पहले जब उसकी बूढ़ी दादी का राज्य था, तब बूढ़ी दादी-उस वक्त प्रौढ़ा -के कितने ही भाई पति, कितने ही पुत्र पति थे जिन्होंने कितनी ही बार निशा के साथ नाचकर, गाकर उसके प्रेम का पात्र बनने में सफलता पाई थी, फिर स्वयं रानी बन जाने पर निशा की निरन्तर बदलती प्रेमाकांक्षा को उसके भाई या सयाने पुत्र ठुकराने की हिम्मत नहीं रखते थे।"
3600 वर्ष पूर्व स्त्री वर्चस्व वाले से समाज से हालात यहां तक पहुंच गए कि उनको घर तक सीमित कर दिया जाए। अफ़ग़ानिस्तान में समाज हज्ज़ारों साल पीछे जाने को अभिशप्त होता दिख रहा है।
जब अफगानिस्तान में महिलाओं का बाहर निकलना बंद करने के फरमान जारी हो रहे हैं उसी समय हिन्दुतान में महिलाओं की फौज में भर्ती के रास्ते खुल रहे हैं। इस बार महिलाएं सेना में भर्ती के लिए कम्पटीशन देंगी इस आशय की सूचना आई पिछले दिनों अखबार में।
अगल-बगल के दो देश महिलाओं की स्थिति के बारे में हजारों साल के फासले की सोच रख सकते हैं। शायद आलपिन से दांत खोदती महिला इसी स्थिति पर विचार कर रही हो।
हाल में बगल के देश में घटी घटना दुनिया की सारे विकास की पोलपट्टी खोलती है। दुनिया के सबसे विकसित कहे जाने वाले देश और समाजों की कुल जमा कोशिश अपने फायदे के हिसाब से दूसरे देशों से सम्बंध रखने की होती है। इसके पहले सरकारें बनाने-गिरने में का पर्दे में होता था अब जरा खुलकर हो गया है। खुला खेल फरुक्खाबादी।
कितना भी आधुनिक हो गयी हो दुनिया लेकिन जोर आदिम प्रवृत्तियों का ही है। सब कुछ ताकत से तय होता है। फिलहाल तो यही दिख रहा है।
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