Wednesday, September 15, 2021

मैं रोज मील के पत्थर शुमार (गिनती) करता था

 मैं रोज मील के पत्थर शुमार (गिनती) करता था
मगर सफ़र न कभी एख़्तियार (शुरू)करता था।

तमाम काम अधूरे पड़े रहे मेरे
मैँ जिंदगी पे बहुत एतबार (भरोसा)करता था।
तमाम उम्र सच पूछिये तो मुझ पर
न खुल सका कि मैं क्या कारोबार करता था।
मुझे जबाब की मोहलत कभी न मिल पायी
सवाल मुझसे कोई बार-बार करता था।
मैं खो गया वहीँ रास्तों के मनाजिर (मंजर) में
उदास रह के कोई इंतजार करता था।
-वाली असी
यह गजल सौजन्य से हमारे मित्र Shree Krishna Datt Dhoundiyal जो कि उन्होंने याद के आधार पर साझा की। यह मुझे अपनी कहानी लगती है। शायद आपको भी लगे:
तमाम काम अधूरे पड़े रहे मेरे
मैं जिंदगी पे बहुत एतबार करता था।

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