Thursday, July 10, 2014

अम्मा तुममें, हममें, सबमें समां गयीं हैं


समय के साथ अम्मा के साथ हम लोगों के सम्बन्ध दोस्ताना होते गये। हमारा छोटा बच्चा उनके बगल से गुजरते हुए उनकी बाल/चोटी बिगाड़ देता। वो हवा में अपने हाथ हिलाती उसकी पिटाई के लिए। हम अक्सर उनके गाल नोच लेते। वे अरॆऎऎ कहते हुए अपना सबसे जरूरी काम उसी समय बता देतीं।कभी चूकती नहीं थीं।

एक दिन वे बगल से लड़खड़ाती हुई सी गुजर रहीं थीं। हमने मजे लेने के लिए उनको बगल से धकिया दिया। वे सँभलते-संभलते फर्श पर गिर गयीं। दर्द से कराहने लगीं। हम फ़ौरन उनको उठाकर डाक्टर के पास ले गए। फ्रैक्चर तो नहीं था लेकिन पूरी तरह ठीक होने में महिना लग गया। उस दिन मुझे पहली बार एहसास हुआ कि अम्मा कितनी कमजोर हो गयीं हैं। तबसे हमारे लिए एकदम छुईमुई सी सहेजने वालीं अम्मा हो गयीं। अपने निजी काम और पूजा पाठ के अलावा और कोई काम के लिये एकदम पाबंदी सी लग गयी। लेकिन वे हमेशा चुपके से कोई न कोई काम करने लगती। कभी चादर भिगो देतीं। कभी रसोई में। कभी कुछ बीनने,सफाई करने में। यह सब वे चोरी-चोरी,चुपके-चुपके करतीं। जैसे ही कोई टोकता तो वे ऐसे 'पोज' करतीं जैसे बस अभी काम को हाथ लगाया है।

अपना होना सार्थक करतीं रहतीं थीं अम्मा। हरदम किसी न किसी तरह अपनी मौजूदगी का एहसास करातीं रहतीं थीं अम्मा।

जब उनकी बीमारी की खबर आई तो हम उनके पास गये। पत्नी,भाई,भतीजे सबको रोक दिया। डाक्टर ने जबाब दे दिया था लेकिन मुझे भरोसा था कि वे जियेंगी। इंदौर में तबियत ठीक होने लगी तो मुझे अपना भरोसा सही साबित होता लगा। लेकिन हुआ कुछ अलग ही। अम्मा चलीं गयीं।

अब सोचते हैं तो लगता है कि अम्मा शायद अपनी तैयारी से आईं थीं। मेरा भाई नन्हें उनके साथ सालों रहा था। वे उसको सेवा का मौका देने गयीं थीं। बहू उनके बिना रह सके इसका अभ्यास करने का एक महीने का समय दिया। वे शायद बुरहानपुर में ही विदा होने वालीं थीं लेकिन उनको याद आया होगा कि इस बार मैं उनसे दो महीने से मिला नहीं इसलिए हमको अपने पास बुलाकर एक हफ्ते अपने पास मौका दिया साथ रहने का।

कानपुर लाये अम्मा को तो पत्नी ने मुझे झकझोरते हुए कहा-"तुम उनसे मुझे मिलवाया क्यों नहीं।"

पता नहीं कैसे मुझे उस समय हंसी सी आई।मैंने कहा-"अम्मा तुममें, हममें, सबमें समां गयीं हैं।"

बाद में मैंने घर में लोगों से कहा- "अम्मा को चलने फिरने में तकलीफ होने लगी थी। इसलिए उन्होंने हवा की सवारी कर ली है। अम्मा पहले हाई-फाई थीं। अब वाई-फाई हो गयीं हैं। सबके नेटवर्क उनसे जुड़े हुए हैं।"

अम्मा का दाह संस्कार करने के बाद हम अपने भाई के साथ वह कमरा देखने गये जहां अम्मा ने हमलोगों को पाल-पोस कर बड़ा किया। एक कमरे के उस घर का एक-एक कोना देखा जिसमें अम्मा की हुकुमत थी। एक खिड़की वाले कमरे का वह कोना निहारा जिसके पास बैठकर अम्मा जाड़े के दिनों में खाना बनाती थीं। मुझे ताज्जुब हुआ कैसी कलाकारी और हौसले से हमारी अम्मा ने बड़ा किया होगा अपने सब बच्चों को।

हमारी अम्मा दुनिया की अनगिनत माँओं की तरह ,एक आम माँ होते हुए भी , हर आम माँ की तरह एक खास, सबसे खास, माँ थीं जो अपने बच्चों को चाँद की तरह पालती है।कविता पंक्तियाँ याद आ गयीं:

राजा का जन्म हुआ तो
उसकी माता ने चाँद कहा,
एक भिखमंगे की माँ ने भी,
अपने बेटे को चाँद कहा।

दुनिया भर की माताओं से
आशीषें लेकर जिया चाँद।

अम्मा की स्मृतियाँ हमारे साथ हमेशा रहेंगी। वे जब गयीं थीं तो घर से दूर थीं। हमें लगता है कि वे धीरे से दरवाजा खोलकर कमरे में घुसेंगी और जहाँ से आयीं हैं वहां के किस्से सुनाना शुरू कर देंगी।

काश ऐसा संभव होता।

ऊपर उस कमरे का लेटेस्ट फोटो जहाँ हमारा बचपन गुजरा। हम बड़े हुए।


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