Sunday, July 20, 2014

धुंधला चेहरा हो तो आईना भी धुंधला चाहिए

साफ़ आइनों में चेहरे भी नजर आते हैं साफ़,
धुंधला चेहरा हो तो आईना भी धुंधला चाहिए।

कौन जाने कब ये बरकी कुमकुमे(बल्ब)दम तोड़ दें,
इसलिए कुछ घर में मिट्टी के दिए भी चाहिए।

रोग बन जाती है अक्सर मुस्तकिल(लगातार)संजीदगी,
कुछ जराफत(मजाक)कुछ हंसी,कुछ कहकहे भी चाहिए।

एक मरकज पर हों सब कायम,ये अच्छा है मगर,
इफ्तला फाते नजर के जाविये(कोण) भी चाहिए।





सिर्फ-ए-शायर मताये बालों पर काफी नहीं,
कुब्ब्ते परवाज भी हो, और हौसले भी चाहिए।

शाह राहों से गुजर जाता है हर एक राह रौ(राहगीर)
पेचोख़म हो जिसमें ऐसे रास्ते भी चाहिए।

हर गली कूचे में है 'वासिफ' शनासाओं(पहचान)की भीड़,
हमको कुछ अनजान लोगों के पते भी चाहिए।

-वासिफ़ शाहजहाँपुरी

*आज कानपुर से जबलपुर आने की तैयारी करते हुये वासिफ़ साहब की बहुत दिन पहले नोट की यह गजल दिखी तो सोचा इसके खोने के पहले इसे टाईप ही कर लिया जाए। बरसते पानी में गोविन्दपुरी स्टेशन पर 'पैदल पार पथ' के शेड के नीचे टाइप किया गया इसे।




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