65 पार के भैयालाल का एक बेटा था। फाइनेंस का काम करता था। पांच महीने पहले ' शांत' हो गया।गुजर जाने के लिए कुछ दिन पहले जबलपुर में सुना था-बराबर हो गये।
शांत हो चुके बेटे की बहू 32 की है। मायके भेज दिया उसको। पुनर्विवाह की बात करने पर बोले भैयालाल-"ठीक लड़का मिलेगा तो शादी कर देंगे।"
अपने समाज में महिलाओं का पुनर्विवाह विरल घटना है। जिस उम्र में लोग अपनी जिन्दगी शुरू करते हैं उस उम्र में विधवा हुई महिला की व्यक्तिगत जिंदगी " शांत" हो जाती है। अभी अस्पताल में एक महिला की तीमारदारी करती उनकी माँ से मुलाकात हुई जो खुद 30 साल की उम्र में विधवा हो गयीं थीं। उसके बाद जिन्दगी बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा करने में खप जाती है।
अपने-अपने वर्चस्व के लिए ताल ठोकते पहलवान अपने धर्म की आधी आबादी के विधवा होने की स्थिति में फिर से विवाह की व्यवस्था कुछ बना पाते तो बेहतर होता। बाकी तो "होइहै सोई जो राम रचि राखा" हइये है।
- Dinesh Duggad भाई अनूप जी हमे इसकी चिंता है की साईं को पूजना चाहिए या नहीं अभी हमारे समाज को इससे निजात मिले तभी तो विधवाओ का सोचेंगे न...!!!!
- Dheeraj Gupta सर हम आपके इस सुझाव से पूरी तरह सहमत हैं और उम्मीद करते हैं की समाज के बाकी लोग भी आपके इस सुझाव का स्वागत करेंगे |
No comments:
Post a Comment