Friday, March 03, 2017

पंचबैंक-1

1. पालिटिक्स के साये में प्रतिक्रियाएं बदल जाती हैं। मुझे लगता है कि सच्चा नेता बचपन में फेल होने का जिम्मेदार अपनी लफंगई को ना ठहराता होगा, वह कहता होगा कि समाज उसके खिलाफ है।
1. भारतीय समाज में छोड़ने का महत्व बहुत अधिक है।इतना है कि देशहित और तमाम नागरिकों की चिंता का त्याग करने वाला युगप्रवर्तक माना जाता है।भले ही युगप्रवर्तक सबको ऐसा नाच नचाए कि पूरा मुल्क नर्तक बन जाए।
2. फ़कीर बनने के बाद त्याग को रागरुदन में प्रसारित करने का आनंद ही कुछ और है।
3. अच्छे नागरिक की पहचान यह है कि समाज में कोई भी असफल हो,सबकी ज़िम्मेदारी वही ले।
4. लोकतंत्र में उछलने और कूदने,सुलगाने और बुझाने का एक जैसा सम्मान है।
5. बाज़ार का आनंद लेने वाले लोग बाज़ार के ख़िलाफ़ लिखते बोलते रहते हैं।आनंद लेने से व्यक्ति के तौर पर रुतबा बनता है।ख़िलाफ़त करने से बुद्धिजीवी के तौर पर हनक बनती है।आदर्श भारतीय को रुतबा और हनक दोनों की चाहत रहती है।
1. औसत से ज्यादा प्रदर्शन राजनीति में व्यक्ति को अपच का शिकार बना देता है।
2. सत्ता की अपनी मजबूरियां होती हैं और महत्वाकांक्षाओं के अपने अजगर जो अन्दर ही अन्दर करवट लेते रहते हैं।
3. सियासत में किसी दृश्य में रूठना मनाना होता है तो कहीं चरण लोटन। कहीं बेशर्मी से समझौते भी करने पड़ते हैं। असल में यहां स्वाभिमान ताक पर रखने की चीज है और सिद्धान्त खूंटियों पर टंगे लोगों की तरह।
1. जिंदगी के खेल में जीत और हार से भी बढ़कर खिलाडियों की स्किल से इतर स्पोर्ट्समेन स्प्रिट होती है।स्प्रिट घाव पर चुपड़ी जाये या सिप की जाये,उसका मजा अन्तोत्ग्त्वा कमाल करता है।
2. देशभक्त टाइप के लोग दरअसल मूढमति होते हैं।ये हर जरूरी –गैर जरूरी विमर्श में बेवजह ‘भक्ति’ को केंद्र में ले आते हैं।कुछ क्रिकेटर भी अद्भुत प्राणी होते हैं हर तरह के बतंगड को लूज डिलीवरी मान कर अपना बल्ला भांज देते हैं या उसे गेंद समझते हुए डाइव मार देते हैं।
3.विचारक तटस्थ दृष्टा होते हैं।भूगोल की सीमा रेखा से परे विश्व नागरिक।वे गोले बारूद असॉल्ट राइफल मिसाइल आदि से सरकार और सरोकार के खिलाफ़ फ्रेंडली मैच इसलिए खेलते हैं ताकि विवाद की पिच पर उनका नाम बना रहे।
1. बड़ा ही भ्रमित संसार है | यहाँ परोपकार और धंधा दोनों आपस में गलबहियां कर साझा हित साधते हैं |
2.जिसके पास दांत है, उसके पास खाने को चने नहीं | और जिसके पास खाने को चने हैं, उसके पास अपने दांत नहीं | या जिसके पास कंघी है, उसके सिर पर बाल नहीं | और जिसके सिर पर बाल हैं, उसके पास कंधी भले ही हो मगर उसे संवारने के लिए वक्त की कमी है | मतलब यह कि, भाव है तो अभाव की अल्पता है | और अभाव है तो भाव का टोटा है | समय तो अपनी किफ़ायत को लेकर बेजा ही बदनाम है |
3.आज आदमी सरल इसलिए है क्योंकि कठिन होना उसका नैसर्गिक गुण नहीं है | और कठिन इसलिए है क्योंकि सरलता उसका सहज उपार्जित भाजन है |
1. तारीफ़ आदम-जात की जन्मजात कमज़ोरी होती है | ऐसा कोई इंसान नहीं जो तारीफ़ के झुनझुने से न बहलता हो |
2. आत्ममुग्धता के पेड़ पर चढ़े हुए अहंकारी मानव को पेड़ से नीचे उतारने के लिए कई बार पेड़ के नीचे प्रशंसा की एक निरीह बकरी बांधनी होती है | तो कभी-कभी उसे लुभाने के लिए आपको पेड़ के नीचे चापलूसी का अबोध गधा भी बांधना पड़ सकता है |
3.प्रशंसा और चापलूसी के बीच भेद करना बड़ा ही टेढ़ा काम है | दोनों के बीच अंतर की एक बड़ी ही महीन विभाजन रेखा होती है | कब कोई प्रशंसाकार पर-तारीफ़ करते-करते चापलूसी की सरहदों में प्रवेश कर जाता है, ये पता ही नहीं चलता |
4.चापलूसी का अपना निजी हित होता है | अपना स्व-अर्जित और स्वयं-भू हासिल होता है | अपना अ-लिखित वैभवी इतिहास होता है | चापलूसी अक्सर जीत जाती हैं | ‘चापलूसी सर्वत्र विजयेत’ रहती हैं !!!



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