Saturday, July 01, 2017

ब्लॉगिंग दिवस बरस्ते जीएसटी

तख़्त पर गप्पाष्टक योग
सबेरे उठे तो पता लगा जीएसटी लागू हो गया था। सूरज भाई वैसे ही चमक रहे थे। नमस्ते किया तो थोड़ा और चमक गए। हमने कहा -'शुक्र है भाई जी आपने उजाले और किरणों पर टैक्स नहीँ लगाया अभी तक।'

सूरज भाई हमको चमकाते हुए बोले-'हमेशा लेटलतीफ रहते हो। शनीचर के दिन शुक्र मानते हो।'

घरैतिन को स्कूल छोड़ना था। घर का नेट कल से ही गोल। लगता है जीएसटी की लागू होने की खबर से घबरा गया। घर से बाहर निकलकर मोबाईल वाले नेट की शरण में आये। नेट 'कंचनमृग' हो गया। कहीं मिला और फिर वहीँ नहीं मिला। अभी था और अभी-अभी गोल। फाटक के बाहर सड़क पर जाकर मिला। उससे ओला गाड़ियां बुक कराने की कोशिश की। सब फेल। सुबह-सुबह पांच बार माफ़ करना पड़ा ओला वालों को।

'सैंट्रो सुंदरी' की शरण में गए। हमेशा की तरह सेवा में हाजिर सुंदरी की बन्दरों ने भी खूब सेवा कर रखी है। जो भी पार्ट ज़रा सा बाहर निकला उसको नोचकर एकदम बाहर निकाल दिया है।

चाय की दूकान पर लोग
सड़क पर जिंदगी गुलजार दिखी। लोग उंघते हुए टहलते दिखे। एक कूड़ेदान में तमाम सूअर गन्दगी का बंटवारा और छीना-झपटी करते दिखे। वहीं एक सूअर जोड़ा बिना 'सूअर काम पर लगे हैं' का बोर्ड लगाए ' कामरत' थे। सूअरों में कोई 'एंट्री रोमियो पुलिस' की व्यवस्था का अभाव साफ़ दिखा। शायद इसीलिए वे अभी तक सूअर बने हुए हैं।

परेड चौराहे के पास एक रिक्शा ठेला पर चार मजदूर सरिया लादे जा रहे थे। सुबह-सुबह पसीने से भीगे थे। चौराहे पर कुछ बुजुर्ग एक तख़्त पर बैठे चाय पीते हुए गपिया रहे थे। बगल में दो रिक्शेवाले गम्भीर बातों में मशगूल थे गोया कंफर्म कर रहे हों कि यार ये हमको भी जीएसटी में रजिस्ट्रेशन करना होगा क्या। एक जागरूक नागरिक बीच सड़क से कुछ फ़ीट किनारे हटकर सड़क पर खड़े-खड़े अख़बार बांच रहा था। अखबार को किसी पक्षी के डैनों की तरह फैलाये हुए अखबार पढ़ते आदमी को देखकर लगा कि शायद सड़क पर खड़े होकर 'अखबार योग' करने पर कोई टैक्स नहीँ लगा जीएसटी में।

मेस्टन रोड चौराहे पर एक चाय की दूकान पर लोग चाय पी रहे थे। हम भी रुक गए। खम्बे के पीछे सैयद इब्राहिम रोड का बोर्ड इस तरह लगा था कि सड़क से किसी को दिख न जाए। एक आदमी सड़क पर बैठे चाय पी रहा था।

सड़क पर बिकती सब्जी को दुपहिया पर झुककर खरीदते लोग।

वही एक महिला भी सड़क किनारे फसक्का मारे बैठी चाय पी रही थी। उसके अंदाज-ए-बैठकी से लगा मानो अपने घर के आँगन में बैठी हो। बैठे-बैठे सड़क पर झाड़ू लगाते एक आदमी पर चिल्लाते हुए कूड़ा गाड़ी में भरने का निर्देश दिया। सड़क पार खड़े दूसरे आदमी को बुलाया-'आओ मुन्ना चाय पी लो।'

मुन्ना ने एक बार मना करने के लिए मना किया । दूसरी बार बुलाने पर आ गया। महिला ने अपनी चाय से आधी चाय निकाल कर मुन्ना को दी। मुन्ना ने उस आधी चाय में से ज़रा सी चाय को सड़क पर छिड़ककर 'सड़क भोग' लगाया। बाकी चाय पीते हुए महिला से बतियाने के बाद चाय पीकर प्लास्टिक का ग्लास वहीँ सड़क पर फेंक दिया जहाँ चाय का भोग लगाया था। चाय पीकर महिला झाड़ू उठाकर काम पर लग गयी। सड़क झाड़ने लगी। मुन्ना फिर सड़क पर टहलने लगे।

सड़क पर सब्जी की और दूध की दुकाने गुलजार हो गयीं थीं।एक आदमी स्कूटी पर बैठे-बैठे झुककर सब्जी खरीदते दिखे। शायद उसको डर हो कि उतरते ही सब्जी के भाव बढ़ जाएंगे।

हमने चाय वाले से पूछा -'चाय पर जीएसटी लगा कि नहीं?'

चाय वाले ने मेरे मजाक का बुरा नहीं माना। बोला-'लगेगा तब देखा जायेगा।'

बड़े चौराहे पर आज रिक्शे की जगह ऑटो वालों का कब्ज़ा था। लोग लालबत्ती होने पर भी धड़ल्ले से चौराहा पार कर रहे थे। स्मार्ट शहर है भाई कानपुर । कोई मजाक थोड़ी है। हमने आहिस्ते से पार की सड़क। इतना ध्यान से पार किये सड़क कि देख ही नहीं पाये कि उस समय बत्ती हरी थी कि लाल या पीली।

आज जीएसटी शुरू हो गया। लोग बता रहे थे कि लिखने पर भी जीएसटी लगेगा। हमें कुछ पता नहीँ इस बारे में। आपको पता हो तो बताना। चूके तो 'पेलानटी' पड़ेगी।

आज ही ब्लॉग दिवस मनाने की घोषणा भी हुई है। ब्लॉगिंग ने हमारे लिखने-पढ़ने के लिए अवसर दिया। 2004 में शुरू की थी ब्लॉगिंग। मजाक-मजाक में 13 साल गुजर गए और लगता है कल की बात है जब हमने लिखना शुरू किया था।

चलिए आप मजे करिये। आपको आज का मुबारक हो। जीएसटी मुबारक हो। ब्लागिंग दिवस मुबारक हो। वीकेंड वालों को वीकेंड मुबारक हो। मंगलमय हो।

मस्त रहा जाए। और कुछ धरा नहीँ है दुनिया में। 

3 comments:

  1. और कुछ धरा नहीँ है दुनिया में।
    ओह! मैं तो, अरसे से और कुछ की तलाश में लगा हुआ था. :(

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  2. वही पुराना अंदाज़... वही धार!! शानदार!!!

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  3. इस शैली में आपसे बेहतर कोई और नहीं लिख सकता प्रभु | शानदार जबरजस्त

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