Nirmal Gupta के 'इस बहुरूपिया समय में' व्यंग्य संग्रह के इसी शीर्षक वाले लेख से।
1.यह समय बहुरूपियों का है। जिसके पास जितने अधिक मुखौटे और उन्हें समयानुसार ओढ़ने का सलीका है, वह उतना ही कामयाब दुनियादार है।
2.खांटी ईमानदार होना आत्महंता होने का पर्याय है।
3.गधा भी चाहता है कि जहां तक सम्भव हो उसकी मूरत घोड़े जैसी दिख जाये।
4.हमारे मुल्क की जनता सचमुच बड़ी भावुक है।वह ग़ुरबत में रहकर भी या तो किसी आकाशी चमत्कार का इंतजार करती है या अपने प्रारब्ध को कोसती है।
5.राजनेता वही अच्छा होता है जो अपना काम चाहे जैसा करे, जनता को उसकी कमियों के लिए समय असमय डांटता फटकारता रहे।
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