फ़िराक़ गोरखपुरी जी की पत्नी एक बार गोरखपुर से इलाहाबाद आईं तो घर पहुँचते ही फ़िराक़ साहब ने पूँछा -'मिर्च का अचार लाई हो? उन्होंने जबाब दिया -'नहीं।' यह सुनते ही फ़िराक़ साहब अपनी पत्नी पर बहुत ख़फ़ा हुए। उनको खरी-खोंटी सुनाई।
फ़िराक़ साहब के बारे में बहुत पहले कहीं पढ़ा यह संस्मरण अनायास दो दिन पहले बहुत तेज़ी से याद आया। बहुत तेज़ी से याद आने का मतलब अचानक याद आना। अचानक मतलब भड़ से याद आना मतलब याद की सर्जिकल स्ट्राइक होना।बहुत तेज याद आया तो कल्पना भी की कि कैसे उन्होंने पूछा होगा, कैसे उनकी पत्नी ने बताया होगा और कैसे फ़िराक़ साहब ग़ुस्सा हुए होंगे। मिर्च का आचार फ़िराक़ साहब को बहुत पसंद रहा होगा। उनकी इच्छा रही होगी कि उनकी पत्नी आएँ तो अचार लेती आएँ। भूल जाने पर उनके मुँह का स्वाद गड़बड़ा गया होगा। वे झल्लाए होंगे।
फ़िराक़ साहब से जुड़ा संस्मरण सैनहोजे के सिख गुरुद्वारे से लौटते समय याद आया। जो लोग दूसरे देशों से यहाँ आए हैं वे अपने देश के सामान के लिए हुड़कते होंगे । जहां मिल जाता होता वहाँ बार-बार जाते होंगे। न मिलने पर दुखी हो जाते होंगे और इंतज़ार करते होंगे कि कोई आएगा तो लाएगा।
गुरुद्वारे जाते समय तय हुआ था कि लौटते समय किसी भारतीय स्टोर से जाएँगे। जो सामान कम हो गए हैं उनको लेते आएँगे। सामान ख़रीदना भी यहाँ एक ज़िम्मेदारी है, काम है।
अपने यहाँ तो सब्ज़ी और तमाम सामान फुटकर दुकानों में चलते फिरते ख़रीद लिए जाते हैं। आधा से ज़्यादा बाज़ार तो सड़क और फुटपाथ पर लगता है। लेकिन अमेरिका में ख़रीदारी के लिए शापिंग माल्स की शरण में ही जाना होता है। न्यूयार्क में अलबत्ता कुछ दुकाने फुटपाथ में लगी देखीं हमने। शायद न्यूयार्क जैसे कुछ इलाक़ों का स्वरूप वहाँ आए लोगों ने कुछ-कुछ अपने देश के हिसाब से कर लिया है।
शापिंग माल्स भी अलग-अलग देश के हिसाब से होते हैं। दूध, चाय, फल, सब्ज़ी जैसे सामान तो लगभग हर माल्स में मिल जाते हैं। लेकिन और अपने देश के हिसाब से और सामान लेने के लिए ख़ास माल्स में ही जाना होता है।
पास का शापिंग मॉल में चीनी सामानों की बहुतायत है। विवरण अंग्रेज़ी के अलावा शायद चीनी भाषा में ही होते हैं। कुछ में केवल चीनी भाषा में। एक ही सामान तरह-तरह की विविधता में। केवल देखकर समझना मुश्किल कि यह हमारे मतलब का है कि नहीं। एक दिन दूध लाए तो पता लगा पतला वाला उठा लाए। जब तक ख़त्म नहीं हो गया, सुनते रहे -'दूध पतला वाला है। पूरा दूध वाला लाना चाहिए था।'
एक दिन ब्रेड खोजते रहे। आटा ब्रेड के हर तरह के पैकेट में सामान का विवरण देखा तो ब्रेड में अंडा मिला पाया । पता लगा कि बिना अंडे की ब्रेड तो भारतीय स्टोर में ही मिलेगी।
भारतीयों की बहुतायत होने के चलते यहाँ जगह-जगह भारतीय स्टोर हैं। उनमें भारतीय लोगों की ज़रूरत के हिसाब से लगभग हर सामान मिलता है। चकला, बेलन, पापड़, सौंफ़, हींग, हल्दी जैसी चीजें तो मिलती ही हैं वो चीजें भी मिल जाती हैं जो आमतौर पर भारत में शापिंग माल्स वाले नहीं रखते। यहाँ एक स्टोर में ' कम्पट' देखकर मेरा यह अन्दाज़ पुख़्ता हुआ।
जहां बेटा रहता है वहाँ पास में, क़रीब पंद्रह-बीस मिनट की पैदल दूरी पर एक भारतीय स्टोर है। लेकिन वहाँ एक ही बार जा पाए। उस दिन सिख गुरुद्वारे से लौटते पता चला कि सनीवेल में भारतीय स्टोर है। बड़ा स्टोर। वहाँ सब भारतीय सामान मिल जाता है।
लंगर छकने के बाद नींद का हल्का हमला शुरू हो गया था लेकिन रास्ते में पढ़ने के कारण भारतीय स्टोर का आकर्षण भी ज़बरदस्त था। नींद और बाज़ार की कुश्ती में जीत बाज़ार की हुई और हम भारतीय स्टोर की तरफ़ गमयमान हुए।
भारतीय स्टोर का नाम था -अपना बाज़ार। नाम में ही बाज़ार की सुगंध। अपना बाज़ार बताकर ही सबका बाज़ार बना जा सकता है। बाज़ार इसी तरह लोगों लोगों को आकर्षित करता है। लोगों पर क़ब्ज़ा करता है।
अपना बाज़ार की ख़ासियत यह है कि यह चौबीस घंटे खुला रहता है। मतलब कभी भी कोई भी सामान चाहिए यहाँ मिल सकता है।
अपना बाज़ार के आसपास एकदम भारतीय माहौल है। यहाँ पान की दुकान भी है और चाट का ठेला भी। चाट की दुकान को बम्बईया रूप देने के लिए ठेले पर जूहू चौपाटी और गोलगप्पे लिखा था। रोमन में, देवनागरी में और अन्य भारतीय भाषाओं की लिपि में।
हमतो लंगर खाकर आए थे लिहाज़ा न हमको चाट खानी थी न गोलगप्पे। हम सीधे अपना बाज़ार में घुसे। जो सामान लेना था वह और इसके अलावा और तमाम सामान लेकर झोले में भरकर काउंटर पर बिल बनवाने के लिए लाइन में खड़े हो गए।
काउंटर-बालिका की 'हाँ जी', 'हं जी' अपना स्टोर को एकदम 'अपना' भारतीय बना रही थी। हर काउंटर की तरह उसने भी पूछा -'बैग लेना है?' हम लोगों ने कहा -'नहीं।'
सामान ले जाने के लिए बैग लेने पर उसकी क़ीमत चालीस-पचास सेंट (35-40 रूपये) लगती है। इसलिए अधिकतर भारतीय अपना झोला साथ लेकर जाते हैं।
सामान लेकर और बिल भुगतान करके हम लोग बाहर आए। बाहर आने से पहले हम लोगों ने अपना-बाज़ार में सभी ग्राहकों के लिए मुफ़्त में उपलब्ध करायी जाने वाली चाय कप में डाली और बाहर निकल आए। बाहर कुर्सियों में बैठकर चाय पी गयी। सामने फ़ोल्डिंग चारपाई पालिथीन में बंधी रखी थी। जिसको चाहिये ले जाए।
अब हमको चारपाई तो चाहिए नहीं थी। हम उसको और आसपास के नज़ारे देखते हुए चाय पीते रहे। चाय पीकर उसका कप चाट वाले डस्टबिन को समर्पित करके हम कार में जमा हुए और घर वापस आ गए। अपना बाज़ार से अपने घर।
https://www.facebook.com/share/p/w2BfGkXCcMyrRpsZ/
No comments:
Post a Comment