कल यहां बारिश का पूर्वानुमान था। निकले नहीं बाहर। घर बैठे ही इधर-उधर खबरें देखते रहे।
मोबाइल के नोटिफिकेशन में खबर देखी भारत के एक चैनल पर। खबर के हिसाब से कैलिफॉर्निया में भीषण बाढ़ आई है। सैनफ्रांसिस्को की सड़कों पर नावें चल रही हैं। लाखों घरों की बिजली गुल है।
एक फटाफट खबर चैनल के अनुसार सैन फ्रांसिस्को में 5.46 इंच बारिश हुई जो कि 170 सालों में दूसरी सबसे अधिक है। चैनल के अनुसार आने वाले दिनों में बारिश आने की संभावना है।
बचाव के लिहाज से बताया गया :
1.घरों के आसपास पत्तियां और कूड़ा करकट न जमने दें।
2.अगर आपको लगता है कि आपके घर या ऑफिस में बाढ़ का खतरा है तो आपको दस बालू के बैग मुफ्त में मिल सकते हैं। सुबह आठ बजे से शाम 5 बजे तक।
3. सूचना के अनुसार शनिवार से अब तक 8500 बैग बंटे हैं। मतलब 850 लोग ही ले गए हैं बैग।
खबरों से खतरे का अंदाज नहीं लगता। अभी तो चुपचाप घर में बैठे हैं।
घर में बैठे-बैठे यहां पिक्चर देखी जा रही हैं। पिछले दिनों कोटा फैक्ट्री देखी। इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन के लिए मारा-मारी का गजब आख्यान। वापस आने तक दस-बारह पिक्चरें और देख डालेंगे। कई बातचीत सुनने को बकाया हैं। सुन डालेंगे।
यहां टहलते हुए देखा सड़क पर जगह-जगह साइकिल लेन बने हुए हैं। सड़क पर हरी पट्टी और साइकिल के निशान। लेकिन साइकिल चलाते इक्का-दुक्का ही दिखे। एक साइकिल सवार दिखे तो पता चला कि 17 मील मतलब लगभग 27 किलोमीटर चला चुके थे। लगभग डेढ़ घण्टे में। बात की ,फोटो खींची लेकिन बातचीत हो तब तक वो अपनी साइकिल स्टार्ट करके आगे बढ़ चुके थे। हम भी लौट लिए।
सड़क पर गाड़ियां इतनी तेज भागती दिखती हैं जैसे कोई आफत आई हो। इतनी तेज गाड़ियां भागते हुए अपने यहां नहीं दिखीं। सड़कें इतनी ख़ाली दिखती कि लगता है इनका उपयोग भारत में जाम की स्थिति में किया जा सके तो कितना अच्छा हो। झकरकटी पुल पर जैसे ही जाम लगे वैसे ही एकाध किलोमीटर ख़ाली सड़क अमेरिका से डाउनलोड कर ली जाये या फिर गाड़ी घूमाकर इधर से निकाल ली जाये।
भारत के शहरों में आबादी का सिलसिला कहीं नहीं टूटता। एक मोहल्ला खत्म नहीं हुआ, दूसरा शुरू हो गया। कहीं-कहीं तो मोहल्ले एक-दूसरे में घुसे हुए दिखते। यहां ऐसा लगता है मोहल्लों में आपस में बातचीत ही नहीं। सब चुपचाप एक-दूसरे से बिना बातचीत किये खड़े हैं अगल-बगल। लगता है किसी को किसी से कोई सम्बन्ध ही नहीं।
सामान लेने के लिए यहां मॉल ही जाना होता है। मॉल पहुंचते ही अपना डॉलर से रुपये वाला कैलकुलेटर चालू हो जाता है। एक डालर मतलब 84-85 रुपये। सब्जियां-फल साइज में बड़े-बड़े। कीमत भी कई गुना। अकसर हमारे हाल उदयप्रकाश की कहानी रामसजीवन की प्रेमकथा के नायक रामसजीवन की तरह होते हैं जो पहली बार गांव से शहर आता है तो किसी के जूते की कीमत सुनकर अनायास कहता है-'अरे बाप रे, बीस बोरा गेंहू पांव में पहने घूम रहा है।'
रोजमर्रा के सामान की खरीद के लिए मॉल की शरण में जाना होता है। भारतीय स्टोर थोड़ा दूरी पर है। कानपुर की तरह नहीं कि चाय का पानी चढ़ाकर पत्ती लेने के लिए किसी को दौड़ा दो और पानी खौलने तक पत्ती हाजिर।
काम चलाने के लिए एक चाइनीज़ स्टोर बगल में है। फल, सब्जी दूध तो ले आते हैं। बाकी के सामान लेने के लिए इंडियन स्टोर ही जाना होता है। चाइनीज़ स्टोर में टहलते हुए देखा कि मछली, केकड़े मिल रहे थे। जिंदा केकड़े और मछलियां भी निकले के लिये तैयार थे। बिकने के पहले पानी में खूब अठखेलियाँ कर रहे थे।
चीनी स्टोर में कुछ पूछने के लिए हमने वहां सामानों के बीच काम करने वाले से कुछ पूछा तो वह बोला -'नो इंगलिश।' मतलब अंग्रेजी नहीं आती। अब हम सामान खरीदने के लिए अंग्रेजी कहाँ से सीखें।
सर्दी के बड़े हल्ले है अमेरिका के। लेकिन यहाँ मौसम अलग-अलग जगह अलग-अलग है। कैलिफोर्निया का मौसम कानपुर की ही तरह है। बल्कि कानपुर से भी कम ठंडा। कोहरा भी नहीं होता। अलबत्ता शाम होते ही अंधेरा हो जाता है।
जब हम यहाँ अमेरिका में अपने बड़े बेटे के साथ हैं तब हमारे छोटे साहब जाड़े कश्मीर में अपने ग्रुप के साथ मज़े कर रहे हैं।
बहरहाल अभी तो यहां सुबह हुई है। दिन शुरू हुआ है। आप जहां भी हों मजे से रहिए। देखिए नए साल में जो संकल्प लिए हैं वो पूरे हो रहे हैं कि होमवर्क पिछड़ रहा है। हमने इसी डर से कोई संकल्प लिया ही नहीं। बेफालतू में हिसाब रखना। जो हो गया वही संकल्प । ठीक है न
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