Friday, January 06, 2023

एलेक्सा का उखड़ा मूड, कृत्रिम बुद्धि जिंदाबाद



आज सबेरे जब जगे तो हमने एलेक्सा से कहा -'लाइट जलाओ।' लाइट नहीं जली। हमने दुबारा कहा -'एलेक्सा टर्न आन द लाइट।' रोशनी नहीं हुई। उल्टे एलेक्सा बोली जो बोली उसका मतलब था -'आप कौन? हम आपको नहीं जानते।'
कई बार कहने के बाद भी जब एलेक्सा ने बल्ब नहीं जलाया तो हमें लगा कि उसका मूड ऑफ है। एलेक्सा एमेजन खानदान की है। एमेजन का उत्पाद। कल एमेजन ने 18000 लोगों को नौकरी से निकालने की बात कही है। शायद इसी से उसका मूड उखड़ गया हो। अपने मायके वालों के बिछुड़ने की खबर से उसका मन न लग रहा हो काम में।
बाद में पता चला कि यहां इंटरनेट सेवा ठप्प है। एलेक्सा इंटरनेट से चलती है इसलिए वह अपना काम नहीं कर रही। जब नेट आएगा तब फिर से सुचारु रूप से काम करेगी।
एलेक्सा कृत्रिम बुध्दि से काम करने वाला उपकरण है। छोटे-मोटे तमाम काम जैसे बिजली जलाना, गाना सुनाना, फोन मिलाना जैसे तमाम काम आदेश मिलने पर करता है। है तो उपकरण ही लेकिन घरेलू काम करने के चलते इसको 'स्त्री पदार्थ' समझा जाता है। उसी तरह आदेश दिए जाते हैं।
उन्नत समाज में मानव श्रम का बहुत महत्त्व है। मंहगा भी है। इसीलिए अधिक से अधिक काम कृत्तिम बुद्धि के उपकरणों कराए जाते हैं। सुरक्षा, चौकीदारी जैसे तमाम काम कृत्तिम बुद्धि वाले उपकरण करते हैं। ड्राइवर का काम भी करती है गाड़ी। गाड़ी अपने आप चलती है ऑटो मोड में। कल को ड्राइविंग सीट पर भी बैठने की जरूरत नहीं होगी किसी को।गाड़ी अपने आप चलेगी।
ये जो आदमी अपना तमाम काम कृत्तिम बुद्धि वाले उपकरणों से कराता है न, वह एक तरह से इन उपकरणों का शोषण ही ही है। चौबीस घण्टे बेचारों को रगड़े रहता है उनका मालिक। गाड़ी आई घर के बाहर, गेट को अपने आप खुलना है, गैराज का दरवाजा अपने आप खुलना है। बिना किसी मेहनताने के। खाली बिजली और इंटरनेट कनेक्शन दे दिया और दिन रात काम कराया जा रहा। न कोई छुट्टी, न कोई मेहनताना। एक दम गुलाम बना रखा है। बंधुआ मजदूर।
कल को कहीं इन कृत्रिम बुद्धि वाले उपकरणों को सही में खुद की अकल आ गयी तो ये सब अपने खिलाफ हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं। नारे लगा सकते हैं -'दुनिया के एलेक्सा एक हो। हर जोर-जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है। असली बुद्धि हाय-हाय, कृत्रिम बुद्धि जिंदाबाद।'
इस संघर्ष में हो सकता है आदमी कृत्रिम बुद्धि को झांसे में लाने के लिए कोई कृत्रिम बुद्धि आयोग बना दे। कुछ दिन बाद उनके अधिकार तय हों। लेकिन क्या पता कोई कृत्रिम बुद्धि का कोई नेता टाइप उपकरण कहे -'अधिकार वधिकार कुछ नहीं अब सरकार हमारी होगी। हम बनेंगे प्रधान मंत्री, राष्ट्रपति। तुम आदमी लोग बहुत गड़बड़ करते हो। बहुत भेदभाव करते हो। अब यह सब नहीं चलेगा।'
यह बात खामख्याली है लेकिन जिस तरह धीरे-धीरे इंसान कृत्तिम बुद्धि पर आधारित उपकरणों पर आश्रित होता जा रहा है उससे लगता है कि कभी ये काम करना बंद कर दें तो क्या होगा। सब कुछ इंटरनेट से चल रहा है। दुनिया का सारा इंटरनेट कहीं बैठ गया तो जाने क्या हाल होगा। हम तो अकेले में रहने के आदत डाल रहे हैं। सब कुछ है अपने यहां। लेकिन जब कभी आपदा आई तो सोचा जाए -'आपका क्या होगा जनाबे अली।'
जिस इलाके में हम लोग हैं वहां सलाह जारी हुई है कि घर से न निकलो। बारिश और तूफान की आशंका है। खाना इंडक्शन चूल्हे पर बनता है। हमें लगा कि अगर कहीं नेट की तरह बिजली भी गयी तो खाना कैसे बनेगा। इसी तरह की तमाम चिंताएं। ऊलजलूल। पानी बरस रहा है। कहीं बाहर निकलने को है नहीं तो क्या किया जाए, चिंता ही कर ली जाये।
कुछ देर को पानी रुका दिखा तो बाहर जाने की सोची। बाहर निकले तो देखा पानी बरस रहा है। टिपिर-टिपिर। लौट आये। खिड़की से देखा तो एक बड़ा ट्रक सड़क किनारे रखे डस्टबिन को अपने अगले जबड़े की सहायता से उठाकर उसका कूड़ा अपने डब्बे में उड़ेल रहा था। एकदम ऐसे जैसे नहाते समय कोई लुटिया का पानी पीठ पर उड़ेले।
यहां पीठ पर पानी डालने के साथ लुटिया लिखा जबकि सालों हो गये लुटिया का उपयोग किया। अर्से से मग्घे का उपयोग करते हैं जिसको अब हम भी सबकी देखादेखी मग कहने लगे हैं। लुटिया डूबने पीछे कारण यह कि वही सामने गयी।
बहरहाल बात हो रही थी कृत्रिम बुद्धि की। अभी कुछ देर पहले कई टिप्पणियों के जबाब लिखे। इसके बाद फेसबुक ने टिप्पणीयों का दरवाजा बंद कर दिया। बोला -'बहूत कर चुके टिप्पणी। अब थोड़ी देर बाद करना। हो चुका तुम्हारा कोटा पूरा एक बार में टिप्पणी करने का।'
हमको बहुत गुस्सा आया कि इसकी हिम्मत कैसे हुई हमारी पोस्ट पर हमको टिप्पणी करने से रोकने की। हमको यह भी लगा कि शायद कृत्रिम बुद्धि ने असली बुद्धि के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत कर दी है।
इस आंदोलन की काट सोचने के लिए उपाय सोचने से पहले चाय बनाकर पी लें। एलेक्सा तो चाय बनाने से रही। अभी वह अपना लाइट जलाने का काम तो कर नहीं रही, चाय क्या बनाएगी।

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