Monday, January 02, 2023

अमेरिका की सड़को पर टहलाईं



कल धूप निकली थी। बहुत दिनों के बाद।धूप अभी भी यहां मुफ्त है। कोई क्रेडिट कार्ड नहीं लगाना पड़ता है धूप सेंकने के लिये। लिहाजा सुबह बाहर आ गए धूप का मजा लेने।
बाहर जगह-जगह बेंच लगीं थीं। कुछ देर खड़े-खड़े धूप सेंकी। बढिया क्वालिटी की धूप थी। कोई मिलावट नहीं।
लैगून के किनारे भी बेंच लगी थीं। कुछ देर एक बेंच पर बैठकर धूप सेंकते रहे। सामने लैगून में लोगों को वोटिंग करते भी देखते रहे। लोग अपनी-अपनी नाव लेकर आते, पानी में उतारते और चप्पू चलाने लगते। कुछ लोग साथ में आये और अगल-बगल नाव चलाते रहे।
एक आदमी नाव चलाते-चलाते नाव पर ही पेट के बल लेट गया। दूर से देखकर लगा कि पेट के बल लेटकर कुछ पढ़ रहा है। कुछ देर बाद वह हाथ को चप्पू की तरह पानी में चलाने लगा। कुछ देर तक हाथ-चप्पू के सहारे ही किनारे आया और नाव उठाकर कार की छत पर रखी और कार स्टार्टकरके चल दिया।
हमारा भी मन किया हम भी पानी में कुछ देर चप्पू बाजी करें। लेकिन यहां नाव कहाँ। किसी ने पूछा भी नहीं कि आओ थोड़ा तुम भी नौका विहार कर लो। कानपुर होता तो किसी घाट पर दस-पंद्रह मिनट बैठ लिए होते नाव में।
कुछ देर नाव बाजी देखने के बाद टहलने निकले। यह सोचकर कि नाव न सही पांव तो हैं।
सड़क पर इक्का-दुक्का लोगों के अलावा और कोई आता-जाता नहीं दिखा। कारें अलबत्ता बहुत तेजी से निकलती दिखीं।
सड़क किनारे फुटपाथ पर बहुत देर तक चलते रहे। अगल-बगल से गुजरते लोगों को देखकर मन किया कि पूंछे कि यह कौन मोहल्ला है? आसपास कोई चाय की दुकान है यहाँ? आप कहाँ रहते हैं? क्या करते हैं? लेकिन नहीं पूछे। क्या पता कोई बुरा मान जाए।
अमेरिका में सबसे बड़ी कमी हमको जो खली वो यह कि यहां चाय की दुकानें नहीं दिखती। कानपुर होता तो न जाने कितनी ठेलिया चाय की दिख जाती इतनी दूर में। अमेरिका इस मसले में बहुत कमजोर है।
अलबत्ता अगल-बगल से गुज़रते लोग अपनी तरफ से कुछ-कुछ बोलते दिखे। एक महिला अपने छुटके कुत्ते के साथ आ रही थी। कुत्ता पूरी तरह कपड़े पहने था। महिला उसको बड़े प्यार से साथ लिए चली आ रही थी। हम उनको रास्ता देने से ज्यादा देखने के लिहाज से रुककर खड़े हो गए। महिला ने बगल से गुज़रते हुए हमको थैंक्यू बोला। हम कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करते तब तक महिला कुत्ते सहित आगे निकल चुकी थी। अब कोई चिल्लाकर वेलकम तो बोला नहीं जायेगा।
आगे एक जगह बोर्ड लगा था जिसका मतलब यह था कि संदिग्ध लोगों को देखते उनकी रिपोर्ट पुलिस को की जाएगी। 911 नम्बर पर। हमको लगा कि ठहरकर बोर्ड पढ़ने को भी संदिग्ध न मान लिया जाए, हम आगे लपक लिए।
आगे एक छुटके पार्क में एक नौजवान खुले जिम में नंगे बदन कसरत कर रहा था। उसकी मोटर साइकिल बग़ल में खड़ी थी। कुछ देर पसीना बहाने के बाद वह मोटरसाइकिल पर बैठ कर चला गया। अब पार्क में हमारे अलावा दो आपस मे बात करते हुई महिलाएं बचीं थी। महिलाएं इतनी तेज और इतनी टेढ़ी-मेढ़ी अंग्रेजी में बतिया रहीं थीं कि उनका बोला कुछ समझ नहीं आया।
कुछ देर पार्क में टहलने के बाद हम बाहर निकल आये। फुटपाथ पर टहलते हुए फोन पर अपने अमेरिका के कुछ ब्लॉगर दोस्तों से बतियाये। बतियाते हुए चलते रहे। एक जगह ठोकर लगी। लगा मुंह के बल गिर जाएंगे। लेकिन गिरे नहीं। हमें लगा कि कहीं स्पीड ब्रेकर तो नहीं था। पीछे मुड़कर देखे तो फुटपाथ की एक टाइल उभरी हुई थी। उसी पर पांव पड़ा था। मतलब अमेरिका में भी ठेकेदार लोग उल्टा-पुल्टा काम करके निकल लेते हैं।
घर से काफी दूर मतलब पांच किलोमीटर करीब आ गए थे। ऊपर लगातार जहाज उड़ते दिख रहे थे। मन किया कि वापस लौट लें। लेकिन फौरन मन पलट भी गया, बोला आगे चलो।
आगे चलते हुए सड़क मुड़ती गयी। हम भी सड़क के साथ चलते गए। दूर हाई वे दिख रहा था। मुझे लगा कि यह हाइवे वहीं कहीं मिलेगा जहां से हमारे घर का रास्ता है।
आगे जगह-जगह मजेदार नोटिस बोर्ड भी लगे दिखे। एक जगह फुटपाथ पर छुटकी पट्टी पर लिखा था -please do not let your dog pee on the plants. कृपया अपने कुत्ते को पौधों पर पेशाब न करने दें। पौधे के नाम पर जो लगे थे वे बहुत छोटे-छोटे जंगली टाइप के फूल थे।
पौधों की देखभाल की बात तो ठीक। लेकिन वह किस कीमत पर। कुत्तों का सहज व्यवहार होता है कि जहां कहीं कोई खम्भा या पेड़ दिखा वहां टांग उठाकर हल्के हो लेना। उस पर भी पाबन्दी। लेकिन हमें क्या करना हमारी गिनती पौधे, कुत्ते और अमेरिकन किसी में नहीं होती इसलिए आगे बढ़ गए।
आगे एक जगह फव्वारा दिखा। पहला फव्वारा। उसे देखकर शाहजहांपुर फैक्ट्री का गेट के सामने का फव्वारा याद आ गया।
सड़क किनारे एक जानवरो का अस्पताल भी दिखा। 1940 से चल रहा है। अमेरिकी अपने पालतू जानवरों के प्रति कितने जागरूक हैं। अपने पालतू जानवरों तक के लिए चिंतित रहने वाले अमेरिकी दूसरे देशों में बमबाजी करके तबाही मचा देते हैं यह अलग बात। 1940 में जब यह अस्पताल बना उसके पांच साल बाद अमेरिका ने जापान के दो शहर तबाह कर दिए बम गिराकर।
अब तक जितना टहल चुके थे उससे थकान महसूस होने लगी थी। संयोग से टहलते हुए घर के पास वाले हाई वे के नज़दीक आ गए थे। कुछ देर में कुत्ता पार्क के पास पहुंच गए। वहां लोग अपने कुत्ते टहला-खिला रहे थे।
पार्क के पास रेस्टरूम दिखा। सोचा उसका उपयोग किया जाए। लेकिन रेस्टरूम पर ताला लगा था। बगल में सूचना थी कि 25 दिसम्बर और एक जनवरी को रेस्ट रूम बन्द रहेगा। अपना इंतजाम खुद करें। अब इंतजाम क्या करते परदेश में। कोई दीवाल उठाके तो लाये नहीं थे साथ मे। वापस हो लिए।
लौटते हुए एक कुत्ता एक लड़की को जंजीर के सहारे घसीटकर ले जाते दिखा। भारी भरकम डील डॉल वाला कुत्ता आगे-आगे जा रहा था। लड़की उसकी जंजीर थामे उसके पीछे-पीछे। ऐसा लग रहा था कोई मल्टीनेशनल कारपोरेट अपने गले में जंजीर बांधे अपनी सरकार को घसीटे लिए चला जा रहा हो।
पुल पर से हमारे बगल से गुजरते हुये एक अमेरिकन दम्पति ने हमको हौले से हैप्पी न्यू ईयर बोला। इतने धीमे कि हमारे पास से गुजरते आदमी ने शायद ही सुना हो। इस बार हमने देरी नहीं की। फौरन उनको भी नए साल की बधाई बोल दी। उन्होंने सुना और बिना कुछ कहे आगे चले गए।
हम भी चुपचाप वापस घर आ गये। यह हमारा नए साल का पहला दिन था।

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