अमेरिका में ख़रीदारी भी एक बवाल है। घर में कोई भी सामान काम हो, भागो दुकान। दुकान दूर हो तो निकालो कार। कार न हो तो इंसान बेकार।
संयोग से यहाँ बगल में ही एक छुटका शापिंग माल है। रोज़मर्रा की ज़रूरत का सामान सब्ज़ी, दूध वग़ैरह मिल जाता है। दूध की इतनी क़िस्में कि देखकर ताज्जुब हो कि इतनी तरह का दूध भी मिलता है। अंडे के इतने प्रकार कि छाँटना मुश्किल कि लेना क्या है। माल चाइनीज़ है। अधिकतर सामान चीन, ताइवान से आया दिखता है। लिखाई भी चीनी।
मॉल में घुसते ही लगता है कि किसी बड़ी फ्रिज में आ गए। ठंडा सा माहौल। घुसते ही लगता है कि निकलना है। अधिकतर लोग एहतियातन मास्क लगाए रहते हैं।
मॉल में दूध भले मिल जाए लेकिन ब्रेड सब अंडे वाली। ब्रेड लेने के लिए एक मील दूर भारतीय दुकान जाना पड़ता है- ‘इंडियन कैश एंड कैरी।’ रोज़मर्रा की ज़रूरत का अधिकतर सामान यहाँ मिल जाता है। भारतीय गाने भी बजते रहते हैं। एक दिन ख़रीदारी करके चलने लगे तो गाना बज रहा था -‘अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं।’ हमने सोचा हमसे ही कहा जा रहा है। रुक जाएँ। रुक भी गए कुछ सामान देखने के बहाने। लेकिन अगला गाना बजा -‘सैंया दिन में आना जी, आकर फिर न जाना जी।’ हम लगा हमको फूटाने के लिए ही बजा है गाना। बहुत टहल लिए। अब निकल लो। हम निकल लिए।
काम करने वाले भी शायद भारतीय हैं। रोहित, राहुल जैसे नाम सुनाई पड़ते हैं काउंटर पर। अंग्रेज़ी अलबत्ता उनकी भी गोल होकर अमेरिकन हो गयी है।
बग़ल के मॉल में अदरख बड़ी-बड़ी मिलती है। पहलवान टाइप। तंदुरुस्त। हाथ की उँगलियों से दोगुनी मोटी। रसभरी। शायद मेक्सिकन अदरख हो। घर में लोगों को तन्वंगी अदरख ही पसंद है। वह इंडियन स्टोर में ही मिलती है। ख़त्म हो गयी तो निकल लिए लेने के लिए भारतीय स्टोर। सोचा टहलना भी हो जाएगा।
रात हो गयी थी। लेकिन सड़क पर उजाला था। गाड़ियाँ तेज़ी सी भागी चली आ रहीं थीं। लेकिन ख़तरा नहीं। सड़क पर सिर्फ़ गाड़ियाँ ही चलती हैं। बहुत हुआ तो मोटरसाइकिल दिखी कहीं-कहीं। इंसान के चलने के लिए फुटपाथ है। साइकिल लेन है कहीं-कहीं। अपने यहाँ सड़क पर इंसान, साइकिल, गाड़ी, घोड़ा, टेम्पो, स्कूटी, मोपेड, स्कूटर, मोटरसाइकिल, गाय, कुत्ता सब कुछ एक साथ चालते हैं। सड़के वसुधैव कुटुम्बकम का जीवंत इश्तहार लगती हैं। लेकिन यहाँ अमेरिका में यह घालमेल नहीं दिखता।
पैदल चलने वाला सड़क पार करने के लिए सड़क किनारे खंभे पर लगा बटन दबा दे तो गाड़ियाँ रुक जाती हैं। आप सड़क पर आ गए तो गाड़ी वाला बिना गरियाए आपके लिए रुक जाएगा। कुछ दिन तो हम कोई गाड़ी न होने पर लाल निशान होने पर भी सड़क पार करते रहे। लेकिन जब पता चला कि पैदल के लिए सिग्नल होता है तो बटन दबाकर, सिग्नल होने पर ही सड़क पार करने लगे। उसमें भी एक बार लफड़ा हुआ। हमने एक बार बटन दबाया। इंतज़ार करने लगे कि सिग्नल होगा तब पार करेंगे। सिग्नल हुआ ही नहीं। इंतज़ार करते रहे। हमें लगा कि यहाँ भी सब ऐसे ही है मामला। लेकिन फिर देखा कि लंबवत सड़क की गाड़ियाँ रुक गयीं थीं।पता चला कि हमने ग़लत खंभे का बटन दबा दिया था। शर्माकर अपनी सड़क की तरफ़ का बटन दबाया और पार हुए।
घर से दुकान तक जाने के रास्ते में कभी-कभी दोस्तों को फ़ोन भी कर लेते हैं। पैकेज डलवाए हैं। महीने भर में खर्च हो जाएगा। फ़्री में काहे जाने दें। ऐसे में जिन दोस्तों से भारत में रहते हुए नहीं बतियाए उनसे भी यहाँ से हेलो, हाय करते रहे। फ़ोन करके सबसे पहले यह ज़रूर बताते थे -‘आजकल अमेरिका में हैं। वहीं से फ़ोन कर रहे हैं। अभी यहाँ रात है। क्या हाल है?’
सामान ज़्यादातर यहाँ पैकेट में ही मिलता है। सब्ज़ी, फल जैसी फुटकर चीजें खरीदने पर उनके पास ही पालिथीन की व्यवस्था रहती है। रोलर में लिपटी रहती है मोमिया । निकालो। जो सामान लेना हो उसको पालिथीन में रख लो। काउंटर पर बिलिंग करवाओ। भुगतान करो। बिलिंग और भुगतान के बीच काउंटर पर मौजूद इंसान पूछ लेगा -‘कैरी बैग चाहिए?’
ज़्यादातर लोग कैरी बैग अपने साथ लेकर आते हैं। मना कर देते हैं।
हर सामान के लिए अलग पालीथीन। हर चीज़ पालिथीन में। कूड़ा-करकट भी पालिथीन में। अमेरिका में पालीथीन का उपयोग बहुत अधिक होता है। आबादी के लिहाज़ से सबसे अधिक। एक रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका दुनिया के प्लास्टिक कचरे का 17% अकेले अमेरिका पैदा करता है जबकि अमेरिका की आबादी दुनिया की आबादी की 4% है। सबको पता है कि प्लास्टिक कचरा दुनिया के लिए नुक़सानदेह है। लेकिन दुनिया भर में इसकी खपत बढ़ती जा रही है। पर्यावरण की चिंता भी साथ-साथ हो रही है। बात ज़्यादा, अमल कम।
सबसे कम पॉलीथिन प्रयोग करने वाले देशों में नार्वे का नाम है।
एक दिन दुकान में देखा कि भारतीय सामान के साथ पाकिस्तानी और बंगलादेशी सामान अग़ल-बग़ल रखे थे। धड़ल्ले से बिक भी रहे थे। और कहीं होता तो सामानों में मारपीट हो जाती। जुलूस निकल जाते। हाय-हाय, ज़िंदाबाद-मुर्दाबाद हो जाता। चैनलों पर प्राइमटाईम बहसें भी हो जातीं। लेकिन यहाँ ऐसा कुछ नहीं। सारे देशों के सामान आपस में गलबहियाँ करते हुए मोहब्बत भरे नग़मे सुन रहे थे।
मुझे याद आया ट्रम्प साहब अमेरिका और मेक्सिको के बीच दीवार बनवाने की कह रहे थे ताकि वहां के लोग यहां न आ सके। कई जगह यहाँ मेक्सिको का माल धड़ल्ले से बिकता दिखा।
आदमी और सामान में अंतर होता है। जहां आदमी नहीं पहुंच पाता , बाजार वहां भी पहुंच जाता है।
बांगलादेशी खजूर का गुड़ 10.99 डालर (890 रुपए) का बिक रहा था। किलो भर का होगा वजन। पता किया जाए अपने यहाँ क्या भाव है गुड़।
सामान लेकर बिलिंग कराने के लिए काउंटर पर आए। एक मिनट में बिलिंग हो गयी। सामान को मशीन के सामने से गुज़ारा, कम्प्यूटर पर आ गया। टोटल भी हो गया। भुगतान करते समय याद आया कि माल रोड वाली दुकान से सामान लेते हैं तो वो भाई जी जिस मेकेनिकल बिलिंग रजिस्टर से फटाफट टोटल करते हैं उसमें हैंडल लगा है। नेट की सूचना के हिसाब से 1920 की है मशीन। विंटेज मशीन है अब। 2023 में एक सदी पुरानी मशीन से काम चल रहा है कानपुर की अच्छी, चलती दुकान में। धड़ल्ले से चल रहा है।
दुकान से निकलने से पहले याद आया कि स्क्राच ब्राइट भी कहा गया था लाने को। मिला नहीं कहीं देखने पर। बरतन धोने -रगड़ने के लिए चाहिए। घरों में जूना कहते थे इसे घराने के सामान को। हमने झिझकते हुए पूछा। हमारे बोलने, उसके सुनने और फिर समझने की अंग्रेज़ी में मतभेद होने के चलते मलतब बहुत गड्ड-मड्ड हो गया। बालक काउंटर छोड़कर हमको एक जगह ले गया और दिखाया सामान। सामान बिम बार था। हमने फिर समझाया तो उसने मुझे बरतन वाले काउंटर पर लाकर खड़ा कर दिया। वहाँ स्क्राच ब्राइट मौजूद था। ख़रीदकर निकल आए।
https://www.facebook.com/share/p/vs9XnACNTWjUH3Y7/
No comments:
Post a Comment