Monday, September 19, 2005

आओ बैठें , कुछ देर साथ में

http://web.archive.org/web/20110101200636/http://hindini.com/fursatiya/archives/50



आओ बैठें ,कुछ देर साथ में,
कुछ कह लें,सुन लें ,बात-बात में। गपशप किये बहुत दिन बीते,
दिन,साल गुजर गये रीते-रीते।
ये दुनिया बड़ी तेज चलती है ,
बस जीने के खातिर मरती है।
पता नहीं कहां पहुंचेगी ,
वहां पहुंचकर क्या कर लेगी ।
बस तनातनी है, बड़ा तनाव है,
जितना भर लो, उतना अभाव है।
हम कब मुस्काये , याद नहीं ,
कब लगा ठहाका ,याद नहीं ।
समय बचाकर , क्या कर लेंगे,
बात करें , कुछ मन खोलेंगे ।
तुम बोलोगे, कुछ हम बोलेंगे,
देखा – देखी, फिर सब बोलेंगे ।
जब सब बोलेंगे ,तो चहकेंगे भी,
जब सब चहकेंगे,तो महकेंगे भी।
बात अजब सी, कुछ लगती है,
लगता होगा , क्या खब्ती है ।
बातों से खुशी, कहां मिलती है,
दुनिया तो , पैसे से चलती है ।
चलती होगी,जैसे तुम कहते हो,
पर सोचो तो,तुम कैसे रहते हो।
मन जैसा हो, तुम वैसा करना,
पर कुछ पल मेरी बातें गुनना।
इधर से भागे, उधर से आये ,
बस दौड़ा-भागी में मन भरमाये।
इस दौड़-धूप में, थोड़ा सुस्ता लें,
मौका अच्छा है ,आओ गपिया लें।
आओ बैठें , कुछ देर साथ में,
कुछ कह ले,सुन लें बात-बात में।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

19 responses to “
आओ बैठें , कुछ देर साथ में

  1. जीतू
    अमां ये बताओ, आजकल किसकी संगति मे बैठ रहे हो, इत्ती जबरद्स्त कविता रच डाले.शुरु के कुछ छ्न्द पढ्कर लगा कि भाभी के लिये लिखे हो.
    बाकी की लाइने ब्लागर भाइयों के लिये दिख्खे है मने.
  2. sarika
    बहुत अच्छी कविता लिखी है। शुरु की पंक्तियां बहुत अच्छी लगीं
  3. eswami
    फुर्सतिया जी,
    छायावाद, यथर्थवाद, अकवितावाद, के बाद अब फुर्सतवाद का नँबर आगया लगता है. :)
  4. भोला नाथ उपाध्याय
    वाह-वाह | आज के व्यस्त मानव के अन्तर्मन में दबे-छिपे उद्वेलन को बडे सटीक ढंग से चित्रित किया है |इतने गम्भीर विषय को भी अपनी चिर परिचित “बिन्दास” शैली में प्रस्तुत करने पर बधाइयाँ |
  5. आशीष
    बहुत खूब शुक्ला जी, आपसे सही में बतियाने का मन है।
  6. पद्मनाभ मिश्र
    क्यों जनाब प्रोत्साहित करके याद करना ही भूल गये. आपके कहने से मैने लिखने को दिनचर्या मे शामिल कर लिया. कृपया मेरे चिट्ठा का समय समय पर अवलोकन करते रहिए. मेरी अनवरतता बनी रहेगी
    मौका मिले तो उपर दिए लिँक का दौरा जरुर करे.
  7. kali
    Malik kabhi milo google talk per bhaat baji karenge.
  8. Laxmi N. Gupta
    फुरसतिया जी,
    आपकी कविता सुन्दर है। सीधी सादी भाषा में बड़ी गहरी बात कह दी है। जीवन की भागदौड़ में मित्रों और स्वजनों के साथ बिताये हुये कुछ क्षण ही बहुमूल्य होते हैं।
    लक्ष्मीनारायण
  9. फ़ुरसतिया » …अथ लखनऊ भेंटवार्ता कथा
    [...] कनपुरिया अनूप भी इनाम पाये:-जब प्रदेश की राजधानी में गन्ना शोध संस्थान के सभागार में अनूप भार्गव सम्मानित हो रहे थे ,इनाम पा रहे थे ऐन उसी समय नाम महात्म्य के कारण और सितंबरी सुयोग वश कानपुर में अपनी फॆक्ट्री के सभागार में अनूप शुक्ल भी पैसे और उपहार बटोर रहे थे। कुल जमा सात सौ रुपये और पानी की दुइ लीटरिया बोतल मिली। कुल चार इनामों में से ३००/-मिले लेखन प्रतियोगिता में पहला स्थान पाने के लिये,२००/- मिले भाषण प्रतियोगिता में स्थान पाने के लिये और पूरे दो सौ मिले लेख भारत एक मीटिंग प्रधान देश है और कविता आऒ बैठें कुछ देर पास में के लिये जो हमारी निर्माणी की पत्रिका स्रवन्ती में छपी थी। पानी की बोतल मिली निर्णायक की हैसियत से काम करने के लिये। हमने उसी समय संकल्प पढ़कर सारे पैसे नारद उद्धार के लिये दान कर दिये। तो इस तरह हम दोपहर तक काम भर का इनाम पा चुके थे। [...]
  10. फ़ुरसतिया » कान से होकर कलेजे से उतर जायेंगे
    [...] इसके बाद मैंने अपने बारिश के मौसम के बारे में लिखे अपने हायकू सुनाना शुरू किया और सारे नहीं सुना पाये कि पब्लिक हक्का-बक्का से रह गये| हमने तुरंत मौके की नजाकत को देखते हुये हायकू-कतरन समेट लिया और कविता का पूरा थान फैला दिया| कविता पढ़ी:- आओ बैठे कुछ देर पास में, कुछ कह लें,सुन लें बात-बात में| [...]
  11. संजय बेंगाणी
    चलिए फिर कभी बैठेंगे.. तो बाते भी होगी. फिर कुछ कह लेंगे,सुन लेंगे बात-बात में.
  12. फुरसतिया » दुख हैं, तो दुख हरने वाले भी हैं
    [...] अपने गले की तकलीफ के बावजूद उपेंन्द्रजी ने एक गीत वहां किंचित हिचकिचाहट के साथ पढ़ना शुरू किया। जैसे-जैसे गीत आगे बढ़ता गया , उनके चेहरे पर चमक और आवाज में उत्साह और मुस्कराहट आती गयी। कुछ लाइनों को सुनते हुये मैं अपनी कविता पंक्तियां आऒ बैठें कुछ देर पास में याद करने लगा। यहां प्रस्तुत है उपेंन्द्रजी गीत जिसका शीर्षक है-कोई प्यारा सा गीत गुनगुनायें। [...]
  13. anita kumar
    बहुत ही सुन्दर कविता है । मजा आ गया
  14. जीवन अपने आप में अमूल्य है
    [...] अनूप शुक्ल [...]
  15. ई कोई नया फ़ैशन है का जी?
    [...] अनूप शुक्ल [...]
  16. हमका अईसा वईसा न समझो…
    [...] तो इस पर कवितागिरी भी कर दिये थे :) : ये दुनिया बड़ी तेज [...]
  17. बतरस लालच लाल की …
    [...] आओ बैठें , कुछ देर साथ में, कुछ कह ले,सुन लें बात-बात में। अनूप शुक्ल [...]
  18. navneet
    मजा आ गया
  19. वन्दना अवस्थी दुबे
    हां, पूरी ज़िन्दगी तो बस घर-गृहस्थी को संवारने और अधिक संवारने की चिन्ता और उसके लिये किये जाने वाले प्रयासों में ही गुज़र जाती है……….फुरसत से बैठना, गप्पें करना…..सचमुच बहुत सुन्दर कविता…कवि बनते जा रहे हैं आप फुरसतिया जी…..

No comments:

Post a Comment