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[जब से जीतेन्द्र ने प्रत्यक्षा का परिचय पढा़ तब से नहा धो के पीछे पढे़ हैं.कहते हैं हमारे बारे में भी ऐसा ही लिख दो.मैंने कहा तुम्हारे बारे मेंलिख
तो चुका हूं तो बोले नहीं फिर सेलिख दो वैसा ही जैसा प्रत्यक्षा के बारे
में लिखा है.मैने बहुत समझाने की कोशिश की कि तुम्हारे बारे में लिखने को
नया है क्या? तुम्हारे बारे में वह तक दुनिया जानती है जो तुम्हें तक नहीं
पता .लेकिन जीतेन्द्र नहीं माने.मैया मोरी मैं तो चन्द्र खिलौना लॆहों वाले अन्दाज में जब मिले नेट पर तो ठुनकते रहे.अब कितना मना किया जाये! वो भी तब जब अगला कहे कि यह हमारे लिये जन्मदिन का उपहार होगा .आज ही उनका जन्मदिन है.सो जीतेन्द्र के जन्मदिन के अवसर पर यह मुरव्वत का लेखनकिया जा रहा है जन्मदिन की शुभकामनाऒं समेत.]
जीतेन्द्र के बारे में मैंने लिखा है:-
बचपन का यह शरारती बालक वानरसेना का लीडर रहा.ये बताते हैं- मेरी सबसे अच्छी दोस्त लड़कियाँ ही हैं, जाने क्यो?पर यहां कानपुर में ऐसी कोई कन्या नहीं मिली जो बता सके किकन्या राशीजीतू भइया के बारे में उनका क्या ख्याल है!जिसको निभा न सके वह पहला प्यार भुलाये नहीं भूलता.
जीतेन्द्र को यह मुगालता काफ़ी है कि वो साफ्टवेयर और तकनीकी मार्केटिंग मे बेहद तेज हैं, कानपुर मे इनके प्रतिद्वन्दी लोग इनके बारे मे कहा करते थे, कि
अपने बारे में बताते हुये लिखते हैं जीतेन्द्र:-
१.जीवन मे सबसे ज्यादा प्यार अपने परिवार को करता हूँ, फिर पेशे,दोस्तों और दुनिया जहान की बारी आती है.
२.बच्चों मे बच्चों जैसा बन जाता हूँ, बूढों मे बूढों जैसा और जवानो मे…….अमां अब जवानी रही कहाँ?
३.मै मानता हूँ कि अनुभव ही सबसे अच्छा अध्यापक होता है.
४.दुनिया मे सबसे कीमती चीज, विश्वास .
३७ साल की उमर में जवानी खो चुके से पीछा छुटा चुके जीतेन्द्र गर्भ निरोधक उपायों के जुगाडू इस्तेमाल में लगे रहते हैं.
इनके ब्लागलेखन की सबसे बडी़ विशेषता इनकी किस्सा गोई है.जो कि शायद इनके शुरुआती पेशे के कारण भी हो.मोहल्ला पुराण , बचपन के किस्से तथा मिर्जापुराण के किस्से खासे लोकप्रिय रहे. अपने पढ़ने के लिये ये समसामयिक घटनाओं पर तथा तकनीकी लेख लिखने से भी नहीं चूके.जीतेन्द्र के लिखने का मूल स्वर हास्य व्यंग्य का रहता है जिसको पढ़ने के बाद हंसी रोकना मुश्किल होता है.इसी कैटेगरी के तमाम लेख ऐसे भी हैं जिनको पढ़ने के बाद हंसने के लिये गुदगुदी करनी पडती है.
ब्लागनाद की शानदार सफलता का झंडा गाड़ने वाले जीतेन्द्र ‘आइडिया उछालू’ दोस्त हैं. ये आइडिया उछालते हैं .अगर अगले ने उसे लपकने की कोशिश की तो निश्चित माना जाये कि अगले को सारा काम करना पड़ेगा.शायद यही संगति की गति है!
जीतेन्द्र को अपने दोस्तों से कोई बात छिपाना सख्त नापसन्द है.अपने गुण-अवगुण सारा कुछ दोस्तों के सामने खुली किताब की तरह रख देते हैं.अब अगला झेले.सुभाषित सहस्र की परिकल्पना का विचार शुरु में जीतेन्द्र ने ही दिया.इनके अलावा तमाम योजनायें जो जीतेन्द्र ने उछालीं उनसे लोगों को बचाये रखने का श्रेय जीतेन्द्र के दोस्तों को जाता है क्योंकि अगर वे असहयोग न करते तो न जाने क्या गजब होता.
अक्सर कभी जीतेन्द्र आपको कोई बात बतायें तथा उसे अपने तक ही रखने के लिये कहें तो निश्चिते मानिये वो अक्षरग्राम पर उसकी सूचना पोस्ट लिख चुके हैं.
निरंतर का इस महीने प्रकाशन न होना जीतेन्द्र को जितना खल रहा है उससे ज्यादा खलने वाली बात यह है कि अभी तक इसमे जीतेन्द्र का कच्चा चिट्ठा नहीं छपा.इस नाइन्साफी के करेले पर देबाशीष ने अपने आलस्य की नीम चढा़ चढा़ दी कि चिट्ठाविश्व में अभी तक इनका परिचय दुबारा नहीं चपकाया.खुदा बचाये ऐसे दोस्तों से.
जीतेन्द्र के लेखन की सबसे बड़ी ताकत उनकी किस्सागोई है.सरलता-सहजता के साथ पढ़ते-पढ़ते कब आप मुस्कराने लगें,कब ठहाका लगाने लगें पता ही नहीं चलता. आम बोलचाल की भाषा इस्तेमाल करने वाले जीतेन्द्र कभी शब्दों की बाजीगरी के चोंचले में नहीं पड़ते.न किसी पाठक को अपना सर खुजाना पढ़ता है कि यार ये कहना क्या चाह रहा है.यह जो ताकत है वही जीतू बाबू के लेखन की सीमा भी है.जब सारा कुछ पाठक पहली बार में ही समझ जायेगा तो दुबारा काहे को पढे़गा. लेकिनजीतेन्द्र के ब्लाग हिट्स बताते हैं कि इनके पाठक दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं.यह आम पाठक के बीच में उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है.
जीतेन्द्र चिट्ठाजगत के सबसे सक्रिय ब्लागर हैं.सबसे ज्यादा मेल शायद इन्होंने लिखीं होंगी ब्लाग से संबंधित.सबसे ज्यादा टिप्पणियां शायद जीतेन्द्र ने लिखी होंगी. सबसे ज्यादा (रवि रतलामी को छोड़कर) शब्द इन्होंने लिखे होंगे.सबसे ज्यादा आइडिया जीतेन्द्र ने उछाले होंगे.सबसे ज्यादा आइडिया जीतेन्द्र के परवान चढ़े होंगे.सबसे ज्यादा आइडिया जीतेन्द्र के निरस्त किये गये होंगे.सबसे ज्यादा अपने ब्लाग में परिवर्तन जीतेन्द्र ने किये होंगे.सबसे ज्यादा जीवन्त पात्र जीतेन्द्र के होंगे.सबसे ज्यादा प्यार (हिट्स) जीतेन्द्र को मिला होगा. सबसे ज्यादा संभावनायें आगे भी हैं इनसे.
इन सबसे ज्यादा की कड़ी में एक बात और . सबसे ज्यादा शुभकामनायें,मंगलकामनायें,प्यार आज के दिन जीतेन्द्र के लिये प्रेषित किया जा रहा है क्योंकि आज इनका जन्मदिन है. यह लेख मेरी तरफ से मिर्जा,छुट्टन जैसे अनेक वैध-अवैध चरित्रों के जन्मदाता जीतेन्द्र, को जन्मदिन काउपहार है जिसके लिये जीतेन्द्र बहुत दिन से मचल रहे थे.
जीतेन्द्र के बारे में मैंने लिखा है:-
गोरे ,गोल ,सुदर्शन चेहरे वाले जीतेन्द्र के दोनों गालों में लगता है पान की गिलौरियां दबी हैं.इनके चमकते गाल और उनमें दबी गिलौरी के आभास से मुझे अनायास अमृतलाल नागर जी का चेहरा याद आ गया.आखें आधी मुंदी हैं या आधी खुली यह शोध का विषय हो सकता है.इनकी मूछों के बारे में मेरी माताजी और मेरे विचारों में मतभेद है.वो कहती हैं कि मूछें नत्थू लाल जैसी हैं जबकि मुझे ये किसी खूबसूरत काली हवाई पट्टी या किसी पिच पर ढंके मखमली तिरपाल जैसी लगती हैं.नाक के बारे में क्या कहें ये खुद ही हिन्दी ब्लाग बिरादरी की नाक हैं.जीतेन्द्र दिल और दिमाग से साफ आदमी हैं.अपने बारे में कोई चीज छिपाते नहीं.आत्मविज्ञापन में पूरी तरह आत्मनिर्भर हैं.जन्मभूमि से बेहद प्यार करने वाले जीतेन्द्र को कानपुर से दीवनगी की हद तक है लेकिन रहनासंभव नहीं क्योंकि धूल से एलर्जी है.जबकि अपने ब्लाग में अपने बारे में लिखते हुये कहते हैं:-
कानपुर,उत्तर प्रदेश, भारत जन्म से कानपुरी, लेकिन रोटी के लिये मिट्टी से दूर,Database और VB के डाक्टर, Internet के लती, खाना छोड़ सकते है Surfing नही.लेखन मे उग्र.,राजनेताओ से खासी चिढ,भारत की सामाजिक एवम राजनैतिक दुर्दशा से व्यथित.आजकल कुवैत मे डेरा है, यही पर बसेरा है.अक्सर Middle East और यूरोप के बीच चक्कर लगाते हुए पाये जाते है,क्या करे रोजी रोटी का सवाल है. —–सपनाः हिन्दी इन्टरनेट की आधिकारिक भाषा बने.—— —–पसन्दः राजनीतिक चर्चा—— —–नापसन्दःनहाने के बाद,पत्नी द्वारा,बाथरूम मे वाइपर लगाने को बाध्य किया जाना—–हिन्दी, उर्दू,अंग्रेजी, सिन्धी, पंजाबी,अरबी और फ्रेंच भाषायें बोल लेने वाले जीतेन्द्र को हिंदी भाषा सबसे अच्छी लगती है.
बचपन का यह शरारती बालक वानरसेना का लीडर रहा.ये बताते हैं- मेरी सबसे अच्छी दोस्त लड़कियाँ ही हैं, जाने क्यो?पर यहां कानपुर में ऐसी कोई कन्या नहीं मिली जो बता सके किकन्या राशीजीतू भइया के बारे में उनका क्या ख्याल है!जिसको निभा न सके वह पहला प्यार भुलाये नहीं भूलता.
जीतेन्द्र को यह मुगालता काफ़ी है कि वो साफ्टवेयर और तकनीकी मार्केटिंग मे बेहद तेज हैं, कानपुर मे इनके प्रतिद्वन्दी लोग इनके बारे मे कहा करते थे, कि
“ये गंजो को पहले कंघा, फिर आईना और फिर बाल उगाने वाला तेल भी बेच सकता है.”वो तो कहो भारत सरकार को पता नहीं चला वर्ना विनिवेश मंत्रालय में लगा लेती इनको.
जीतेन्द्र को सपने देखने तथा अपने अतीत के बारे में तन्तरानियां हांकने का बहुत शौक है
संगीत,गजल,फोटोग्राफी,यात्रा वगैरह-वगैरह तमाम शौक वाली चीजों का शौक
पालने वाले जीतेन्द्र को सपने देखने तथा अपने अतीत के बारे में तन्तरानियां
हांकने का बहुत शौक है.ब्लाग लेखन के लती जीतेन्द्र ड्राफ्ट लिखने में
यकीन नहीं करते.लिखा हुआ लिखने के बाद समझ में आता है तब लगता है इससे भी
बेहतर लिखा जा सकता था. अपने बारे में बताते हुये लिखते हैं जीतेन्द्र:-
१.जीवन मे सबसे ज्यादा प्यार अपने परिवार को करता हूँ, फिर पेशे,दोस्तों और दुनिया जहान की बारी आती है.
२.बच्चों मे बच्चों जैसा बन जाता हूँ, बूढों मे बूढों जैसा और जवानो मे…….अमां अब जवानी रही कहाँ?
३.मै मानता हूँ कि अनुभव ही सबसे अच्छा अध्यापक होता है.
४.दुनिया मे सबसे कीमती चीज, विश्वास .
३७ साल की उमर में जवानी खो चुके से पीछा छुटा चुके जीतेन्द्र गर्भ निरोधक उपायों के जुगाडू इस्तेमाल में लगे रहते हैं.
इनके ब्लागलेखन की सबसे बडी़ विशेषता इनकी किस्सा गोई है.जो कि शायद इनके शुरुआती पेशे के कारण भी हो.मोहल्ला पुराण , बचपन के किस्से तथा मिर्जापुराण के किस्से खासे लोकप्रिय रहे. अपने पढ़ने के लिये ये समसामयिक घटनाओं पर तथा तकनीकी लेख लिखने से भी नहीं चूके.जीतेन्द्र के लिखने का मूल स्वर हास्य व्यंग्य का रहता है जिसको पढ़ने के बाद हंसी रोकना मुश्किल होता है.इसी कैटेगरी के तमाम लेख ऐसे भी हैं जिनको पढ़ने के बाद हंसने के लिये गुदगुदी करनी पडती है.
जीतेन्द्र के लिखने का मूल स्वर हास्य व्यंग्य का
रहता है जिसको पढ़ने के बाद हंसी रोकना मुश्किल होता है.इसी कैटेगरी के
तमाम लेख ऐसे भी हैं जिनको पढ़ने के बाद हंसने के लिये गुदगुदी करनी पडती
है
बहुत दिनों तक जीतेन्द्र ‘टिप्पणी मजूर ‘ का काम करते
रहे. बहुत बढिया लिखे हो,मजा आ गया आदि तमाम वाक्य जीतेन्द्र लेख पूरा
पढ़ते-पढ़ते बहुत बढि़या लिखे हो ,मजा आ गया जैसे वाक्य दाग चुके होते हैं.
नवागन्तुक ब्लागर से हमेशा केवल एक ई-मेल की दूरी बनाये रखते है. मेल
लिखने में वैसे भी ये बहुत बीहड़ हैं.अक्सर जब नेट पर बात होती है तो किसी
योजना की बात होने पर अगला वाक्य लिखने के पहले ये उसका एजेन्डा सबको मेल
से भेज चुके होते हैं.ब्लागनाद की शानदार सफलता का झंडा गाड़ने वाले जीतेन्द्र ‘आइडिया उछालू’ दोस्त हैं. ये आइडिया उछालते हैं .अगर अगले ने उसे लपकने की कोशिश की तो निश्चित माना जाये कि अगले को सारा काम करना पड़ेगा.शायद यही संगति की गति है!
जीतेन्द्र को अपने दोस्तों से कोई बात छिपाना सख्त नापसन्द है.अपने गुण-अवगुण सारा कुछ दोस्तों के सामने खुली किताब की तरह रख देते हैं.अब अगला झेले.सुभाषित सहस्र की परिकल्पना का विचार शुरु में जीतेन्द्र ने ही दिया.इनके अलावा तमाम योजनायें जो जीतेन्द्र ने उछालीं उनसे लोगों को बचाये रखने का श्रेय जीतेन्द्र के दोस्तों को जाता है क्योंकि अगर वे असहयोग न करते तो न जाने क्या गजब होता.
अक्सर कभी जीतेन्द्र आपको कोई बात बतायें तथा उसे अपने तक ही रखने के लिये कहें तो निश्चिते मानिये वो अक्षरग्राम पर उसकी सूचना पोस्ट लिख चुके हैं.
निरंतर का इस महीने प्रकाशन न होना जीतेन्द्र को जितना खल रहा है उससे ज्यादा खलने वाली बात यह है कि अभी तक इसमे जीतेन्द्र का कच्चा चिट्ठा नहीं छपा.इस नाइन्साफी के करेले पर देबाशीष ने अपने आलस्य की नीम चढा़ चढा़ दी कि चिट्ठाविश्व में अभी तक इनका परिचय दुबारा नहीं चपकाया.खुदा बचाये ऐसे दोस्तों से.
ब्लागनाद की शानदार सफलता का झंडा गाड़ने वाले जीतेन्द्र ‘आइडिया उछालू’ दोस्त हैं
अपने बारे में सूचना देने का जो जीतेन्द्र का अंदाज है वो अक्सर
आत्मविज्ञापन सा लगता है.लेकिन जीतेन्द्र को लगता है कि दोस्त हैं ये नहीं
झेलेंगे तो कौन झेलेगा? मेरा पन्ना का साल पूरा हुआ तो दोस्त थोड़ा चूके
बधाई देने में तो लड़कापसड़ गयाकि
बधाई नहीं दी.हम अपनी जिन्दगी नरक नहीं करना चाहते इसलिये आज सबेरे साढे़
तीन बजे से उठ के की बोर्ड घिस रहे हैं.ये गिरेबान पकड़ के जन्मदिन का
बधाई, उपहार हासिल करने की गुण्डई सबके बस की बात नहीं.जीतेन्द्र जैसे कुछ
बीहड़ अपनापा रखने वाले तथा उसका डंका पीटने वाले दोस्तों के ही बस की बात
है यह्.जीतेन्द्र के लेखन की सबसे बड़ी ताकत उनकी किस्सागोई है.सरलता-सहजता के साथ पढ़ते-पढ़ते कब आप मुस्कराने लगें,कब ठहाका लगाने लगें पता ही नहीं चलता. आम बोलचाल की भाषा इस्तेमाल करने वाले जीतेन्द्र कभी शब्दों की बाजीगरी के चोंचले में नहीं पड़ते.न किसी पाठक को अपना सर खुजाना पढ़ता है कि यार ये कहना क्या चाह रहा है.यह जो ताकत है वही जीतू बाबू के लेखन की सीमा भी है.जब सारा कुछ पाठक पहली बार में ही समझ जायेगा तो दुबारा काहे को पढे़गा. लेकिनजीतेन्द्र के ब्लाग हिट्स बताते हैं कि इनके पाठक दिन पर दिन बढ़ते जा रहे हैं.यह आम पाठक के बीच में उनकी लोकप्रियता का प्रमाण है.
जीतेन्द्र चिट्ठाजगत के सबसे सक्रिय ब्लागर हैं.सबसे ज्यादा मेल शायद
इन्होंने लिखीं होंगी ब्लाग से संबंधित.सबसे ज्यादा टिप्पणियां शायद
जीतेन्द्र ने लिखी होंगी.
वैसे छुट्टन से जब हमने पूछा कि साहब क्या करते रहते हैं दिन भर तो पता
चला कि अपना ब्लाग खोलते-बंद करते रहते हैं.एक दिन जीतेन्द्र ने बताया
किब्लागहिट्स बढा़ने का फंडा यह है कि जो समसामयिक शब्द हैं उनका प्रयोग
किया जाये (जैसे सुनामी,कॆटरीना,सेक्स)तो ज्यादा लोग देखते हैं ब्लाग.मैं
तो यही कहूंगा के ये सारे फंडे छोड़ के मन लगा के लिख बालक.लोग पढ़ेंगे आज
नहीं तो कल.जीतेन्द्र चिट्ठाजगत के सबसे सक्रिय ब्लागर हैं.सबसे ज्यादा मेल शायद इन्होंने लिखीं होंगी ब्लाग से संबंधित.सबसे ज्यादा टिप्पणियां शायद जीतेन्द्र ने लिखी होंगी. सबसे ज्यादा (रवि रतलामी को छोड़कर) शब्द इन्होंने लिखे होंगे.सबसे ज्यादा आइडिया जीतेन्द्र ने उछाले होंगे.सबसे ज्यादा आइडिया जीतेन्द्र के परवान चढ़े होंगे.सबसे ज्यादा आइडिया जीतेन्द्र के निरस्त किये गये होंगे.सबसे ज्यादा अपने ब्लाग में परिवर्तन जीतेन्द्र ने किये होंगे.सबसे ज्यादा जीवन्त पात्र जीतेन्द्र के होंगे.सबसे ज्यादा प्यार (हिट्स) जीतेन्द्र को मिला होगा. सबसे ज्यादा संभावनायें आगे भी हैं इनसे.
इन सबसे ज्यादा की कड़ी में एक बात और . सबसे ज्यादा शुभकामनायें,मंगलकामनायें,प्यार आज के दिन जीतेन्द्र के लिये प्रेषित किया जा रहा है क्योंकि आज इनका जन्मदिन है. यह लेख मेरी तरफ से मिर्जा,छुट्टन जैसे अनेक वैध-अवैध चरित्रों के जन्मदाता जीतेन्द्र, को जन्मदिन काउपहार है जिसके लिये जीतेन्द्र बहुत दिन से मचल रहे थे.
Posted in इनसे मिलिये | 29 Responses
सारिका
बहरहाल , अभी तो आप को , आप का जन्मदिन मगलमय हो।
-राजेश
(सुमात्रा)
जन्मदिन की हार्दिक बधाई !
आशीष
और फुरसतिया, बहुत अच्छा लिखे हो,
अनूप ,आपने कमाल का लिखा है.उम्मीद है जीतेन्द्र जी खुश(?) हुए होंगे
प्रत्यक्षा