Wednesday, October 01, 2014

स्वच्छता अभियान के बाद

 स्वच्छता अभियान  का हल्ला मचा हुआ है देश भर में। कूड़ा ठिकाने लगाया जा रहा है। कहीं-कहीं का कूड़ा हल्ला मचा रहा है। ऐसे कैसे भगा दोगे हमको? हम यहां के स्थायी रहवासी हैं। कहां  जायेंगे अपना परिवार लेकर?

सफ़ाई अभियान वाले हाथ जोड़ रहे हैं कूड़े के! भाई साहब  एक-दो दिन की बात है! कहीं इधर-उधर हो जाइये। हमको साफ़-सफ़ाई कर लेने दीजिये। फ़ोटो-सोटो हो जाने दीजिये। फ़िर आप रहियेगा ठाठ से। आपकी ही जगह है। कौन रोकने वाला है आपको!

कूड़ा शरीफ़ आदमियों की तरह इधर-उधर हो जाता है। कहीं दीवार के पीछे, कहीं किसी गढ्ढे में, कहीं किसी पुल की आड़ में। जहां कुछ आड़ नहीं मिली वहां फ़टा तिरपाल ओढ़ के सो गया। नदी, नहर, नाले में कूद गया। सफ़ाई की इज्जत के लिये गन्दगी  कुर्बान हो गयी।

 सबने सफ़ाई के करते हुये  फोटो खिंचाये। सफ़ाई मुस्करा रही है। लोग  खिलखिला रहे हैं। स्वच्छता अभियान पूरा हो गया है। छुट्टी बरबाद होने का दुख कम हो गया है।

सफ़ाई अभियान तो निपट गया लेकिन इसके  बाद आडिट के लोग सफ़ाई अभियान की फ़ाइलों की गन्दगी पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है:

1. सफ़ाई अभियान के लिये झाडू-पंजा मंहगी दरों  पर खरीदने के लिये कौन जिम्मेदार है?

2. एक ही  तरह की झाडू एक ही दिन अलग-अलग दामों पर क्यों खरीदी गयीं?

3. एक दिन के सफ़ाई अभियान के लिये  झाड़ू-पंजा खरीदने के  बजाय किराये पर लेने के विकल्प पर क्यों विचार नहीं किया गया?

4. जब एक आदमी को दो घंटे ही सफ़ाई करनी थी तो हर आदमी के लिये एक झाड़ू  खरीदने की बजाय एक ही झाड़ू से चार लोगों से  सफ़ाई कराने विकल्प पर क्यों विचार नहीं किया गया?

5. सारे लोग एक ही जगह सफ़ाई करते पाये गये इससे कम क्षेत्र की सफ़ाई हुई। अलग-अलग जगह सफ़ाई करने के विकल्प पर क्यों विचार नहीं किया गया?

6. साल भर सफ़ाई का ठेका चलने के बावजूद इतना कूड़ा इकट्ठा कैसे हुआ? क्या सफ़ाई के ठेके में धांधली हुई है?

आडिट के इन सवालों से दफ़्तर के लोग हलकान हो गये। काफ़ी सोच-विचार के बाद  आपत्तियों के निम्न जबाब बनाये गये।

1. सफ़ाई अभियान की जब घोषणा हुई तो मांग और आपूर्ति के नियम के तहत अचानक झाडू-पंजे के दाम बढ़ गये क्योंकि  सभी को सफ़ाई करनी थी।  बढ़े हुये दाम पर खरीद अपरिहार्य होने के चलते जायज है। और जहां तक जिम्मेदारी का सवाल है तो  इसके लिये जनता जिम्मेदार है क्योंकि जो हुआ सब अंतत: आम जनता के लिये हुआ।

2. स्वच्छता अभियान में अलग-अलग पद के लोग शामिल थे। सबके ’ग्रेड पे’ अलग थे। जैसे एक ही दूरी और एक ही तरह की गाड़ी से आने वालों लोगों के लिये वाहन भत्ता ’ग्रेड पे’  के अनुसार  मिलता है वैसे ही  सबके   ’ग्रेड पे’ के हिसाब से  झाडू की व्यवस्था की गयी। इसलिये एक ही तरह की झाडू अलग-अलग दाम पर खरीदी। ऐसा न करते तो सीनियर लोग स्वच्छता  अभियान में भाग न लेते। इसलिये एक जैसी सफ़ाई सामग्री अलग-अलग दामों पर खरीदना अपरिहार्य  था।

3. किराये पर सफ़ाई सामग्री उपलब्ध ही नहीं थीं। अगर कहीं थी भी तो पर्याप्त नहीं थी। इसके अलावा विभाग में कभी किराये पर सामान खरीदने का काम किया नहीं गया इसलिये अनुमानित  किराये की दरें उपलब्ध नहीं थीं इसलिये भी किराये पर लेने के प्रस्ताव पर विचार नहीं किया गया।

4. जो भी लोग स्वच्छता अभियान में शामिल थे उनको अभियान के बाद एक साथ कहीं न कहीं जाना था इसलिये सब लोग एकसाथ सफ़ाई के लिये बुलाये गये। स्वच्छता के बहाने  सामूहिकता का भी प्रसार हो गया। इसके अलावा अगर दिन भर सफ़ाई करते लोग तो  फ़ोटोग्राफ़ी, नाश्ते वगैरह का खर्च बढ जाता।

5.अलग-अलग जगह सफ़ाई करने से फ़िर लगता बहुत कम लोग सफ़ाई कर रहे हैं। एक जगह इकट्ठा सफ़ाई करने से यह लगा कि पूरा हुजूम जुट गया है सफ़ाई के लिये।जैसे अभी प्रधानमंत्री जी के अमेरिका दौरे में ’दवाई चौराहे’ पर लोग इकट्ठा हुये तो लगा न कि पूरा अमेरिका उमड़ पड़ा। अलग-अलग शहरों में रहते तो वो मजा नहीं आता न।

6. सफ़ाई व्यवस्था साल भर चकाचक चली लेकिन जब स्वच्छता अभियान चलाना था तो इधर-उधर से कूड़े का इंतजाम किया गया। अब सरकार के आदेश का अनुपालन तो जरूरी है न!

सभी आपत्तियों के जबाब चूंकि आडिट बाबू से ही सलाह करके बनाये बनाये गये थे अत: फ़ौरन निस्तारित हो गये। फ़ाइलों का भी स्वच्छता अभियान संपन्न हो गया।



5 comments:

  1. सभी आपत्तियों के जबाब चूंकि आडिट बाबू से ही सलाह करके बनाये बनाये गये थे अत: फ़ौरन निस्तारित हो गये। फ़ाइलों का भी स्वच्छता अभियान संपन्न हो गया।
    बहुत खूब!
    फिर भी शुरुवात तो करनी ही होगी ..

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    1. धन्यवाद! शुरुआत हो गयी न!

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  2. सफाई तो अब लगभग तय है , भले ही वह सरकारी खजाने की हो |

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    1. हां सही है! कब तक खैर मनायेगी गन्दगी!

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  3. धन्यवाद! आभार है!

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