कल सुबह फैक्ट्री जा रहे थे तो पुलिया के पास एक महिला दिखी। सर पर टोकरी रखे दोनों हाथ हिलाती हई अपनी गगरी, मटकी बेचकर लौट रही थी। उसका फोटो खींचकर फैक्ट्री चले गए।
दोपहर को लंच पर आते समय पुलिया पर मिले इब्राहम। मोटरसाईकल पर प्लास्टिक के ड्रम, टब और बाल्टी तथा आउट तमाम चुटुर-पुटुर सामान लादे फेरी के लिए निकले थे। दोपहर हो गयी तो पुलिया की छाँह में सुस्ताने लगे। सुस्ताते हुए एक छुटकी डायरी में बिक्री का हिसाब करते जा रहे थे।
बात करते हुए पता चला कि फेरी लगाने के पहले इब्राहम पुताई का काम करते थे। मजूरी। शहर की कई बिल्डिंगों के नाम गिनाये इब्राहम ने जिनकी पुताई की है उन्होंने। एक बार पुताई करते हुए झूले से गिर गए। चोट लग गई तो फिर पुताई के काम से राम-राम कर लिया।
पुताई का काम छोड़ने के पीछे गिरने के अलावा शादी होना भी था। तीन साल पहले शादी हुई फिर बच्ची तो पुताई की अनियमित कमाई से गुजारा नहीं होता था तो फेरी लगाने लगे। उसमें कभी मजूरी मिली न मिली। फेरी लगाने में काम भर का कमा ही लेते हैं। अपने काम का यह भी फायदा जब मन किया फेरी लगाई और जब मन किया आराम।
फेरी के काम को व्यापार मानने वाले इब्राहम का कहना है कि व्यापार में यह आसानी रहती कि एक काम में मन न लगे तो दूसरा कर लो।
मोटरसाइकिल पर ड्रम को लदे देख हमने ताज्जुब किया तो बोले इब्राहम की दस ड्रम तक लाद कर फेरी लगा चुके हैं वे। लोगों ने फोटो भी खींचकर अख़बार में छापी हैं।
मूलत: बरगी बाँध के पास के गाँव के रहने वाले इब्राहिम के पिता जी की जमीन जब डूब क्षेत्र में आई तो उसका मुआवजा भी नहीं लिया उन्होंने। चले आये जबलपुर रोजी कमाने। मुआवजा न लेने का कारण बताते हुए बोले इब्राहिम --'पुराने ख्याल के लोग। जमीन की कीमत का दस फ़ीसदी मुआवजा मिल रहा था। गाँव के किसी को बोल दिया हमाई जमीन भी अपने नाम बताकर ले लेना जो मिले और चले आये शहर।'
नर्मदा नदी पर बने बांध के चलते कई गावों के लोग विस्थापित हुए। पानी, बिजली और सिंचाई की सुविधा के लिए कई गाँव जो डूब क्षेत्र में आये खाली कराये गए। उनमें से एक गाँव हरसूद के डूबने की कहाँनी पत्रकार विजय तिवारी ने बहुत मार्मिकता से बयान की है अपनी किताब 'हरसूद-30 जून' में।उनका एक इंटरव्यू लिया था मैंने विस्तार से। उनका कहना था -' वोट की राजनीति ने बनाये नपुंसक नेता।' इंटरव्यू यहां पढ सकते हैं।
http://www.nirantar.org/0806-samvaad
हम इब्राहिम से बतिया रहे थे तब तक फैक्ट्री से फोन आ गया। वापस किसी काम से फैक्ट्री जाना पड़ा। जब तक लौटे तब तक इब्राहिम कहीं जा चुके थे।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10207841467088070
दोपहर को लंच पर आते समय पुलिया पर मिले इब्राहम। मोटरसाईकल पर प्लास्टिक के ड्रम, टब और बाल्टी तथा आउट तमाम चुटुर-पुटुर सामान लादे फेरी के लिए निकले थे। दोपहर हो गयी तो पुलिया की छाँह में सुस्ताने लगे। सुस्ताते हुए एक छुटकी डायरी में बिक्री का हिसाब करते जा रहे थे।
बात करते हुए पता चला कि फेरी लगाने के पहले इब्राहम पुताई का काम करते थे। मजूरी। शहर की कई बिल्डिंगों के नाम गिनाये इब्राहम ने जिनकी पुताई की है उन्होंने। एक बार पुताई करते हुए झूले से गिर गए। चोट लग गई तो फिर पुताई के काम से राम-राम कर लिया।
पुताई का काम छोड़ने के पीछे गिरने के अलावा शादी होना भी था। तीन साल पहले शादी हुई फिर बच्ची तो पुताई की अनियमित कमाई से गुजारा नहीं होता था तो फेरी लगाने लगे। उसमें कभी मजूरी मिली न मिली। फेरी लगाने में काम भर का कमा ही लेते हैं। अपने काम का यह भी फायदा जब मन किया फेरी लगाई और जब मन किया आराम।
फेरी के काम को व्यापार मानने वाले इब्राहम का कहना है कि व्यापार में यह आसानी रहती कि एक काम में मन न लगे तो दूसरा कर लो।
मोटरसाइकिल पर ड्रम को लदे देख हमने ताज्जुब किया तो बोले इब्राहम की दस ड्रम तक लाद कर फेरी लगा चुके हैं वे। लोगों ने फोटो भी खींचकर अख़बार में छापी हैं।
मूलत: बरगी बाँध के पास के गाँव के रहने वाले इब्राहिम के पिता जी की जमीन जब डूब क्षेत्र में आई तो उसका मुआवजा भी नहीं लिया उन्होंने। चले आये जबलपुर रोजी कमाने। मुआवजा न लेने का कारण बताते हुए बोले इब्राहिम --'पुराने ख्याल के लोग। जमीन की कीमत का दस फ़ीसदी मुआवजा मिल रहा था। गाँव के किसी को बोल दिया हमाई जमीन भी अपने नाम बताकर ले लेना जो मिले और चले आये शहर।'
नर्मदा नदी पर बने बांध के चलते कई गावों के लोग विस्थापित हुए। पानी, बिजली और सिंचाई की सुविधा के लिए कई गाँव जो डूब क्षेत्र में आये खाली कराये गए। उनमें से एक गाँव हरसूद के डूबने की कहाँनी पत्रकार विजय तिवारी ने बहुत मार्मिकता से बयान की है अपनी किताब 'हरसूद-30 जून' में।उनका एक इंटरव्यू लिया था मैंने विस्तार से। उनका कहना था -' वोट की राजनीति ने बनाये नपुंसक नेता।' इंटरव्यू यहां पढ सकते हैं।
http://www.nirantar.org/0806-samvaad
हम इब्राहिम से बतिया रहे थे तब तक फैक्ट्री से फोन आ गया। वापस किसी काम से फैक्ट्री जाना पड़ा। जब तक लौटे तब तक इब्राहिम कहीं जा चुके थे।
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