धूप के सामने शर्माते हुए पंकज बाजपेयी |
कल अर्से बाद मिलना हुआ पंकज बाजपेयी से। मिलते ही शिकायत-’ बहुत दिन बाद आये। कहां चले गये थे?’
हमने कहा - ’गये कहीं नहीं थे लेकिन आ नहीं पाये।’
बोले-’जलेबी नहीं आये?’
हमने कहा-’ आज भूल गये। कल आयेंगे तो लेते आयेंगे।’
बोले -’हां बढिया वाली जलेबी लाना। दही भी साथ में।’
हमने कहा- ’अच्छा मेरा नाम बताओ देखें याद है कि नहीं?’
बोले-’अनूप, अनूप।’
दो बार बोलकर कन्फ़र्म किया कि उनको याद है मेरा नाम।
सेहत के बारे में पूछने पर बोले-’हफ़्ते भर गैस्टिस की बीमारी हो गयी थी। अब ठीक है। अबकी बार आना तो मेटजिल लेते आना। गैस की बहुत बढिया है।’
’लेते आयेंगे।’ हमने कहते हुये पूछा-’चलो चाय पिलाते हैं।’
बोले -’चाय नहीं पियेंगे। बर्फ़ी खिलाओ।’
मेटजिल लेते आना जलेबी दही के साथ -पंकज बाजपेयी |
पास की ही दुकान से बर्फ़ी दिलाई। झोले में धर ली। हमने कहा -’खा लो।’ बोले -’घर में खायेंगे।’
फ़िर हमने कहा -’जलेबी भी खा लो।’
बोले-’जलेबी इसकी बढिया नहीं होती है। तुम कल बढिया वाली लाना।’
मतलब क्वालिटी में कोई समझौता मिठाई प्रेमी पंकज जी का। फ़िर चलते हुये फ़ल की दुकान से अंगूर के लिये दस रुपये धरा लिये कि अंगूर खायेंगे।’
सब शिकायतें गायब मिठाई के आगे। न कोहली, न बच्चे उठाने वाला, न कनाडा का अपराधी। चलते हुये बोले-’जल्दी आना कल हम इंतजार करेंगे।’
आज गये तो फ़ल वाले की शिकायत करते बोले- ’इन्होंने अंगूर नहीं दिये थे। अंगूर की जगह केला दे दिये थे।’
जलबी-दही लेकर झोले में धर लिये। बोले- ’घर में खायेंगे।’ यह भी बोले-’ समोसा नहीं लाये?’ मेटजिल के बारे में भी पूछा। भाभी की घर की माल वाली मिठाई न लाने की भी शिकायत की।
हमने कहा -’अगली बार लायेंगे।’
बोले-’अब कब आओगे?’
हमने कहा-’ इतवार को आयेंगे।’
हमने मिठाई वाले से कहा कि इनको रोज मिठाई खिला दिया करो। पैसे हम इतवार को दे दिया करेंगे। उसने मान लिया। उसका फ़ोन नम्बर भी ले लिया। हाल-समाचार भी मिलते रहा करेंगे पंकज भाई के। नाम आज भी बताया दोहराते हुये-’ अनूप, अनूप।’
’दाढी काहे नहीं बनाई? कल भी नहीं बनाये थे।’- हमने पूछा तो बोले-’ आज बनायेंगे।’
देश दुनिया के हाल के बारे में पूछा तो बोले सब ठीक है। हमने कहा - ’आजकल बच्चियों के साथ गन्दे काम की खबर बहुत आ रही है।’
बोले-’ हम सब ठीक करा देंगे। तुम चिन्ता मत करो।’
चलते हुये पूछा - 'चाय पियोगे?
बोले - ’अभी नहीं। शाम को पियेंगे।’
फ़िर बोले - ’तुम पैसे दिये जाओ। हम पी लेंगे।’
हमने कहा -’कित्ते रुपये ?’
बोले- ’दस दे देव।’
हमने कहा - ’दस काहे, चाय तो छह रुपये में मिलती है?’
बोले -’हमको वो पांच रुपये में देता है। दो पीयेंगे।’
इतवार को मिलने का वादा करके हम चले आये। चलते-चलते फ़िर याद दिलाई- ’मेटजिल लेते आना। भूलना नहीं। भाभी को पांव छूना कहना। ’
ब्लॉग बुलेटिन टीम की और मेरी ओर से आप सब को गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की हार्दिक शुभकामनाएं|
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/11/2018 की बुलेटिन, " गोवर्धन पूजा और अन्नकूट की हार्दिक शुभकामनाएं “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाह ।
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