दुकान साफ करता बालक |
आज सबेरे अलार्म बजने के पहले छत बजी। बारिश हो रही थी। हल्की बारिश मतलब बूंदा-बांदी। लोकतंत्र में सरकारें चुनाव के ऐन पहले कल्याणकारी घोषणाओं की बारिश करने लगती हैं। मौसम भी ऐसे ही सुबह के पहले मेहरबान टाइप हो गया। हालांकि मौसम को चुनाव नहीं लड़ना। लेकिन तमाम बेमतलब काम देखा देखी भी काम होते हैं। तमाम लोग बेमतलब अपराध करते हैं। घर भरा है लेकिन बेमतलब , आदतन , गैर इरादतन भ्रष्टाचार करते हैं।
सड़क पर मानो पानी का छिड़काव किया गया है। क्या पता इन्द्र देव के यहां इसके लिये बादलों ने वर्षा वाउचर लगा रखे हों। क्या पता बूंदा-बांदी करके वहां झमाझम बारिश का बिल पेश कर दिया हो। कभी इस सबकी जांच हो तो क्या पता वहां भी बारिश घोटाला, पानी घोटाला सामने आये।
स्वर्ग में लगता है सूचना का अधिकार अभी लागू नहीं हुआ है। हुआ होता तो अब तक अनगिनत घोटाले सामने आते। अभी लगता है कि स्वर्ग की पत्रकारिता ’खाता न बही, जो नारद जी कहें वही सही’ वाले मोड में है। विपक्ष का भी अभाव है वहां शायद ! क्या पता आने वाले समय में स्वर्ग-सरकार के देवता विपक्ष के देवताओं पर स्वर्ग-संसद ठीक से न चलने देने का आरोप लगायें। ’चढावा-उपवास’ भी धारण करें।
ओह, हम भी कहां खुशनुमा सुबह छोड़कर घोटाला-गली में घुस गये। आसपास का कितना असर पड़ता है इंसान पर।
नुक्कड़ पर गंगापुल साइकिल ट्रैक का बोर्ड भूमिगत हुआ पड़ा था। पटरी से गुजरती ट्रेन तेज आवाज लगाती हुई लोगों को जगाने की कोशिश कर रही थी।
नुक्कड़ की गन्ने की दुकान पर एक बच्चा मग्धे के पानी से दुकान की सफ़ाई कर रहा था। हीरो के समर्थक उसके अपराधों को उसकी भलमनसाहत के पोंछे से साफ़ करते हैं वैसे ही बच्चा सलमान खान के पोस्टर पर गीला कपड़ा फ़ेरते हुये उसकी धूल पोंछ रहा था।
सलाउद्दीन नाम है बच्चे का। कक्षा तीन में पढता है। सुबह दुकान साफ़ करके स्कूल जायेगा। शुक्लागंज के ’प्राइवेट स्कूल’ में पढता है। शाम को स्कूल से आकर फ़िर दुकान पर बैठेगा। इस बीच उसके बड़े भैया दुकान देखेंगे। होमवर्क भी करना होता है बालक को।
बालक के बगल की ठेलिया खाली थी। पिछ्ली बार वहां बुजुर्ग मास्टर जी मिले थे। 26 फ़रवरी को। उनके बारे में पूछा तो पोंछा मारते हुये उसने बताया -’वो तो खत्म हो गये।’
मास्टर जी की किडनी खराब थी। अस्पताल में भरती हुये। खत्म हो गये। पिछले दिनों वित्त मंत्री जी की और उसके पहले विदेश मंत्री जी की किडनी बदलने के खबरें आईं। दोनों स्वस्थ भी हैं। लेकिन बुजुर्ग मास्टर अपनी ओरिजिनल किडनी के साथ ’शांत’ हो गये। (मास्टर से मुलाकात की पोस्ट का लिंक https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10213794764116775 )
आगे एक रिक्शे में बैठे दो लोग तन्मयता से सिगरेट पी रहे। बेड-टी की तर्ज पर रिक्शा सिगरेट। बेड टी का जिक्र ’कसप’ में ’हगन-चहा’ के रूप में है। सुबह चाय पीते हुये यह याद आया था। लिखने का मन हुआ ’हगन चहा, मगन चहा’ लेकिन थम गये। अभी फ़िर याद आया तो लिख ही गया। मतलब इंसान जो मन से कहना चाहता है वह कहने के रास्ते निकल ही आते हैं।
दुकान के सामान को दुलराते दुकानदार। बीड़ी हाथ में। घरैतिन हमेशा की तरह नेपथ्य में |
एक दुकान पर दो लोग खड़े बीड़ी पी रहे थे। उनसे बतियाये। पता चला कि सीतापुर के नैमिशारण्य से आये थे। दस साल पहले। यहां दुकान लगाई। किसी तरह जिन्दगी गुजर रही है। बच्चे लोग स्कूल नहीं जाते। खर्च कहां से उठायें?
हमने कहा -’तमाम सरकारी स्कूल हैं वहां क्यों नहीं भेजते?’
’भेजा रहन मरी कम्पनी के पास स्कूल, लड़ाई-झगड़ा हुइ गवा तो चोट-चपेट के डर ते नाम कटा दिया बच्चन का। कहुं चोट-चपेट लागि जाय तौ आफ़त।’- बच्चों की पढाई छूटना सबसे सहज काम है गरीबों में।
दुकान की फ़ोटो लेते हुये सब पन्नियां खोल दी दुकानदार ने। दुकान के सामान को दुलराने टाइप भी लगा। दुकान की महिला भी साथ आ खड़ी हुई।
लोग बारिश से बचने के लिये अपनी बरसातियां समेटते हुये दुकान सुरक्षित कर रहे हैं।
आगे गंगा पुल से गंगाजी को देखा। सदानीरा , पतितपावनी गंगा को एक कुत्ता टहलते हुये पार कर रहा था। गंगा में पानी की स्थिति पुराने जमाने के नबाबों के पास संपदा जैसी दिन-पर-दिन होती जा रही है।
साइकिल से स्कूल जाती बच्ची सीधे देख रही थी। लेकिन उसके साइकिल चलाने के अंदाज से लगा कि वह अपने चारों तरफ़ नहीं आठों तरफ़ देख रही है। सड़क पर अकेली जाती बच्ची का पूरा शरीर आंख बन जाता है। सुरक्षा के लिये जरूरी सा होता जा रहा है।
टायर बंधन में जकड़े दो रिक्शे |
लौटते में देखा दो रिक्शों के अगले पहिये जंजीर में जकड़े हुये थे। दाम्पत्य बंधन की तरह। दोनों पहिये जंजीर और ताले के बंधन में जकड़े एक-दूसरे के लिये बने हुये टाइप लगे।
आगे रिक्शे की आड़ में दो लोग चिलम सुलगा रहे थे। एक दियासलाई सुलगा रहा था , दूसरा चिलम थामे हुये थे। ये तो मासूम चिलमची थे। लेकिन समाज में यह काम बड़े पैमाने पर होता है। कुछ लोग नशे का जुगाड़ करते हैं, दूसरे आग लगाते हैं। समाज को सुलगाते हैं।
सड़क पार एक छोटी बच्ची अपने से भी छोटी बच्ची को साइकिल चलाना सिखा रही थी। बच्ची उलझ-उलझ जा रही थी। लेकिन दोनों की कोशिश जारी थी।
पप्पू की चाय की दुकान पर भीड़ बढ गयी थी। जाते समय एक बेंच थी। लौटते समय चारों बेंचों पर ग्राहक विराजमान थे। साइकिलों में झोले पर गेंहू और धनिया और दूसरे चुटुर-पुटुर गृहस्थी के सामान दिखे। फ़ेरी लगाने निकले हैं ये लोग। दिहाड़ी कमाने।
अपन का भी दिहाड़ी कमाने के लिये निकलने का समय हो गया। चला जाये। आप भी मज्जे करिये। मिलेंगे फ़िर कभी। जल्ली ही। अपना ख्याल रखियेगा। अपना ख्य़ाल रख लिया तो हमारा रखा हुआ समझना। ठीक न !
*पोस्ट का शीर्षक Nirmal Gupta जी की टिप्पणी के सौजन्य से।
https://www.facebook.com/anup.shukla.14/posts/10214152812427759
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