Sunday, April 22, 2018

अगली बार एमलाइट लेते आना

चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोग और बाहर
मंदिर के बाहर माँगने वाले
मुसम्मी छीलता आदमी
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सबेरे सड़क पर निकले। सड़क खाली थी। कोई आये, कोई जाये। लोग आ-जा रहे थे। जब तमाम लोग घरों में बैठे बातें और घुइंया छील रहे होंगे उस समय ठेलिया पर फ़ल सजाये फ़ल वाला मुसम्मी छील रहा था। उसको पता है कि उसको रोटी मुसम्मी छीलने से ही मिलेगी। एक मोटर साइकिल वाला तख्त पर बैठा मोटर साइकिल के सामने सर झुकाये मोबाइल में डूबा हुआ था। शायद मोबाइल पर मोटरसाइकिल से चैटिंग कर रहा हो।


कान फ़ड़फ़ड़ाता कुत्ता
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एक कुत्ता अचानक अपने दोनों कान फ़ड़फ़ड़ाते हुये सड़क पर आ गया। शायद अपनी धूल झाड़ रहा हो। धूल झाड़कर वह सड़क पर घिसटने लगा। उसके पिछले पैर जमीन पर घिसट रहे थे। शायद किसी गाड़ी की चपेट में आ गया था। जिन्दगी ऐसे ही गुजरेगी उसकी अब। आदमी के इलाज में तो आफ़त है। कुत्तों का इलाज कौन करायेगा?
रंग-बिरंगे कपड़े पहने भिखारी
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तिवारी स्वीट्स से पंकज जी के लिये जलेबी, दही और समोसा तौलवाकर आगे बढे तो वृहस्पति मंदिर के पास दो भिखारी बैठे दिखे। लोग आना शुरु नहीं हुये थे। एक मांगने वाले ने रंग-बिरंगे कपड़े धारण किये हुये थे। हमको खड़े देखा तो टहलते हुये पास आते हुये बोला-’ चाय पिलाओ।’ हम भी उसको टहला दिये कि लौट के आते पिलाने। वैसे सोचा भी यही था कि लौटते हुये रुकेंगे लौटते हुये। अभी तो भगवती प्रसाद दीक्षित के अंदाज में -’आगे के मोर्चे हमको आवाज दे रहे रहे।’
न्यूनतम भीख का सवाल
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आगे पीपल कोठी के पास दो अखबार वाले सड़क पर जमें अखबार बेंच रहे थे। बहिष्कार के हल्ले के बावजूद सबसे अधिक संख्या में दैनिक जागरण अखबार रखा था दुकान में। शायद लोगों ने न खरीदा हो इसलिये बचा हो। आगे फ़िर एक मंदिर दिखा। वहां भी कुछ भिखारी ड्यूटी पर तैनात थे। मुझे लगता है धर्मस्थलों के बाहर भीख मांगकर गुजारा करने वालों की संख्या करोडों में तो होगी। क्या पता कल को भीख को भी रोजगार का दर्जा मिल जाये। फ़िर तो धर्मस्थलों के हिसाब से रजिस्ट्रेशन होने लगेगा मांगने वालों का। पीएफ़ वगैरह कटने लगे। छुट्टियां भी मिलने लगें। न्यूनतम भीख का भी प्रावधान होने लगे। उससे कम भीख मिलने पर भुगतान की जिम्मेदारी धर्मस्थलों होने लगे। सरकारी भिक्षालयों और प्राइवेट भिक्षालयों की गुणवत्ता की तुलना होने लगे।
चित्र में ये शामिल हो सकता है: एक या अधिक लोग, लोग खड़े हैं और बाहर
अबकी बार आना तो एमलाइट लेते आना
भोजनालय अपना है लेकिन उधार बंद है
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आगे स्टेशन के पास एक भोजनालय दिखा। उसमें लिखा था ’अपना भोजनालय लेकिन उधार बन्द है’। शायद पैसों वालों के बैंक से पैसे लेकर फ़ूट लेने की घटनाओं से सावधान होकर दुकान वाले ने यह कदम उठाया हो। बीच सड़क पर रिक्शे में सरिया लादे हुये एक आदमी आगे बढने के पहले सुर्ती फ़टकते हुये चलने की तैयारी कर रहा था। बीड़ी सुलगाने के बाद वह आगे बढा। दो रिक्शेवाले एक ही रिक्शे में गुड़ी-मुडी होकर बतिया रहे थे। उनके अंदाज-ए-गुफ़्तगू से लग रहा था कि उसकी वार्ता खत्म होते ही देश की दो-चार समस्यायों के हल तो पटापट गिरेंगे ही आगे।


हम फ़ेल नहीं हुये थे
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पंकज बाजपेई ठीहे पर बैठे थे। देखते ही लपककर मिले- ’बोले आ गये। आ गये। हम आपका इंतजार कर रहे थे।’ नाम पूछते ही बताया -’अनूप।’
हमने पूछा -’दाढी क्यों नहीं बनाई?’
बोले- ’कोमल और संजय के मामा नहीं रहे तो इसलिये दाढी नहीं बनाई। आज बनायेंगे। शोक पूरा होने के बाद।’
जलेबी, दही, समोसा कब्जे में लेने के बाद बोले- ’हलवाई को पैसे मत देना। उसने बर्फ़ी नहीं दी थी। पिछली बार सौ रुपये दे गये थे वो बकाया हैं।’
हमने कहा -’इसका हिसाब करेंगे अभी। बताओ चाय पी कि नहीं?’
बोले-’ सुबह पी थी। एक। अभी पियेंगे। ’
हमने पूछा -’किसके यहां पियोगे? मामा के यहां कि भाभी के यहां?’
बोले-’ मामा के यहां पियेंगे।’
मामा के यहां चाय पीते हुये हमने पूछा -’अच्छा बताओ तुमने कित्ते तक पढाई की है? डिग्री कहां है?’
बोले-’ हमने बीए किया है। हम फ़ेल नहीं हुये थे। वो रामशंकर श्रीवास्तव फ़ेल हुये थे। हम पास थे। डिग्री मम्मी के पास है। तुमको दिखायेंगे।’
बेवकूफ़ी की बात और दिमाग की फ़टकार
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हमने कहा-’ अच्छा कोई उपन्यास, कहानी, कविता की याद हो तो बताओ।’
बोले- ’उपन्यास नहीं पढते थे। केवल कोर्स की किताब पढते थे।’
हमने पूछा था- ’अच्छा कोई कविता याद हो तो सुनाओ बचपन की।’
बोले-’अभी याद नहीं । फ़िर सुनायेंगे। सुना देंगे।’
हमने कई कविताओं की याद दिलाई-’ उठो लाल अब आंखे खोलो, हठ कर बैठा चांद एक दिन, हिमाद्रि तुंग श्रंग से, रणबीच चौकड़ी भर-भरकर, बुन्देलों हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।’ कोई भी कविता याद नहीं आई उनको। हमने फ़िर झंडा गीत के बोल सुनाये वह भी गोल। वन्दे मातरम और राष्ट्रगान भी नहीं याद।
उसी समय हमने सोचा कि क्या पता कभी अनिवार्य हो जाये कि देश के सब लोगों को वन्देमातरम और राष्ट्रगान गाना अनिवार्य है। जो न गा पायें वे ’देश-बदर’ हो जायें। ऐसी हालत में पंकज बाजपेयी जैसे लोग किधर जायेंगे।
आगे हम इस पर कुछ और सोच पायें तबतक दिमाग ने बहुत तेज डांट दिया- ’क्या बेवकूफ़ी की बातें सोचते हो।’ हम चुप तो हो गये लेकिन फ़िर मिनमिनाते हुये दिमाग से कहने की कोशिश किये-’ इतनी बेवकूफ़ी की हरकतें रोज-डेली हो रही हैं उनको देखते हुये इसके बारे में सोचना क्या इतना बड़ा गुनाह हो गया कि इत्ती जोर से डांट दिये हमको सुबह-सुबह।
दिमाग ने हमको प्यार से लड़ियाते हुये पुचकारा और कहा कि गुनाह अपने आप कोई बड़ा-छोटा नहीं होता बाबू। यह तो सजा सुनाने वाला तय करता है कि गुनाह कैसा है? आये दिन अनगिनत अपराधी छूट रहे हैं, निर्दोष सजा पा रहे हैं। जमाना बड़ा खराब है इसीलिये तुमको समझाये। तुमको प्यार करते हैं न इसलिये डांटा।
हमारे पास दिमाग की बात का कोई जबाब नहीं था। इसलिये चुप हो गये।

चार बीबियों वाले पंकज बाजपेयी
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इसबीच पंकज बाजपेयी से पूछा -’शादी करा देते हैं तुम्हारी। करोगे।’
’हमारी तो शादी हो गयी। चार बीबियां हैं।’ नाम भी गिनाये पंकज जी ने- ’सुषमा, विपाशा, रेखा, राधिका।’ आठ बच्चे भी बताये। साथ में यह भी कि ’उनके दो बच्चे कोहली उठा ले गया था।’
मिठाई की दुकान वाले ने बताया कि उसके यहां से रोज मिठाई खाते रहे पंकज। 150 रुपये हुये हफ़्ते भर के। हमने पूछा तुम तो कह रहे थे कि मिठाई दी नहीं दुकान वाले ने। इस पर लजाते हुये बोले पंकज- ’ये ताजी वाली बर्फ़ी नहीं देते।’
चलते हुये दस रुपये जेब खर्चे के मांग लिये। बोले - ’शाम को चाय पियेंगे।’
हमने पूछा - ’पांच-पांच के सिक्के दें कि दस का सिक्का?’
बोले-’पांच-पांच के सिक्के दे देव।’
पैसे देकर अपन चले आये। पंकज बोले- “मामी को पांव छूना कहना। अगली बार एमलाइट लेते आना। बढिया दवाई है गैस की। “
एमलाइट की बात याद दिलाने पर हमें याद आया- ’इस्स, इसे तो हम भूल ही गये थे।’

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