मलबा लादकर फेंकने के जाते हुए |
सुबह-सुबह कार से टहलने निकले। पप्पू की दुकान के पास की फ़ुटपाथ पर बैठे एक जोड़ा कानाफ़ूसी वाले अंदाज में बतिया रहा था। अंदाजे-ए-गुफ़्तगू वही वाला जिसमें गांधी जी -नेहरू जी के साथ बतियाते हुये तस्वीरों में दिखते हैं। तस्वीर में भले ही नेहरू जी गांधीजी से , किसी मीटिंग में स्वयंसेवकों को सब्जी-पूड़ी बंटेगी कि दाल-चावल, विषय पर चर्चा कर रहे हों लेकिन उनके महापुरुष होने के नाते माना यही जायेगा कि वे देश-विदेश की किसी बड़ी समस्या पर चर्चा कर रहे हैं। ऐसे ही ये फुटपाथिया लोग भले ही अमेरिका और उत्तर कोरिया के राष्ट्रपतियों के सनकी बयानों की चर्चा कर रहे हों लेकिन हम यही सोचेंगे कि ये शाम के दाल-रोटी के इंतजाम की चर्चा कर रहे हैं।
हम लोगों के बारे में हमेशा पूर्वाग्रह ग्रस्त होते हैं। पूर्वाग्रही सोच आरामदेह होती है। खुद का दिमाग नहीं लगाना पड़ता सोचने में।
सड़क पर फ़ुर्ती से जाती मोटरसाइकिल के पीछे बैठा आदमी अपनी मुंड़ी की ऊंचाई से भी ऊंची गठरियां लिये जा रहा था। गठरियों में बंधे सामान को जिस ’चुस्तैदी’ से जकड़े हुये था वह उसे देखकर लगा मानों किसी त्रिशंकु विधानसभा के विधायकों को उसकी पार्टी का नेता अपने कब्जे में लिये जा रहा है। जरा सा पकड़ ढीली हुई कि गया विधायक हाथ से। चालक और सवारी दोनों में से कोई हेलमेट नहीं लगाये थे। गोया उनकी यमराज के आदमियों से सेटिंग हो रखी हो कि इधर की तरफ़ नहीं आयेंगे वे लोग जब तक निकल न जायें।
बीच सड़क एक कुतिया ने तेजी से अपने कान फ़ड़फ़ड़ाये। इसके बाद जल्दी-जल्दी अपनी पीठ खुजाने के बाद दायें-बांये मुंड़ी घुमाकर देखा। ऐसा लगा कि वह सबको जता देना चाहती है कि खुजली किसी भी तरह की हो, हमारे पंजे उसको छोंड़ेंगे नहीं। हर तरह की खुजली का एनकाऊंटर करके रहेगी वह।
एक घोड़े वाला घोड़े की पीठ पर मलबे का सामान लिये जा रहा था। नहर में फ़ेंकने के लिये। कोई खुराफ़ाती होता तो तुलना करते हुये लिखता- ’देखकर लग रहा है कि विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिये विधायक लादे लिये जा रहा है।’ लेकिन हम इस तरह की बात लिख नहीं सकते हालांकि लगा हमको भी कुछ-कुछ ऐसा ही। आप तस्वीर खुद देखिये और बताइयेगा कि आपको कैसा लगा?
आपत्ति फूल को है माला में गुंथने में भारत माँ तेरा वंदन कैसे होगा |
फ़ूलबाग चौराहे के पास तिकोने फ़ुटपाथ पर एक आदमी मुंड़ी के नीचे हाथ रखे सो रहा था। उसकी सुबह अभी आई आई नहीं थी। जबकि सूरज भाई की सरकार शपथ लेकर चलने भी लगी थी। वहीं बगल में एक बुजुर्ग गेंदे के फ़ूल की माला बना रहे थे। हमको नंदलाल पाठक की कविता याद आ गयी:
“आपत्ति फ़ूल को है माला में गुंथने से
भारत मां तेरा वंदन कैसे होगा
सम्मिलित स्वरों में हमें नहीं आता गाना
बिखरे स्वर में ध्वज का वंदन कैसे होगा।“
भारत मां तेरा वंदन कैसे होगा
सम्मिलित स्वरों में हमें नहीं आता गाना
बिखरे स्वर में ध्वज का वंदन कैसे होगा।“
तुकबंदी करते हुये कोई इसको गठबंधन से जोड़ सकता है:
“बहुमत से दूर सभी, त्रिशंकु हालत है
सरकार का हल्दी-चंदन कैसे होगा?
सभी विधायक मंत्री पद मांग रहे हैं
ऐसे में बोलो गठबंधन कैसे होगा।“
सरकार का हल्दी-चंदन कैसे होगा?
सभी विधायक मंत्री पद मांग रहे हैं
ऐसे में बोलो गठबंधन कैसे होगा।“
बुजुर्ग से बात करने की कोशिश की लेकिन वे अपने काम में इतने मशगूल कि उन्होंने हमको ’लिफ़्ट’ नहीं थी। उनके सामने ठेलिया पर तमाम ’सुबह-टहलुआ’ ब्रेड-बटर चांपते हुये सुबह गुलजार रहे थे। नुक्कड़ के पार्क पर कबूतर दाने चुगते हुये पानी पी रहे थे। पिछले इतवार को इनकी देखा-देखी अपन ने बगीचे में चार बर्तन में पानी रखा। चिड़ियों के लिये। चिड़ियां तो अलबत्ता हमको नहीं दिखी लेकिन कई बार बन्दर पानी पीते दिखे। चिड़ियों के लिये रखे पानी के बर्तन में बंदरों को मुंह मारते देख ऐसा लगा मानो गरीबी के रेखा के नीचे वालों के लिये आवंटित मकानों पर करोड़पतियों का कब्जा हो जाये।
सवारी के इंतजार में रिक्शेवाले |
बिरहाना रोड़ पर लाइन से कई रिक्शे वाले खड़े सवारियों का इंतजार कर रहे थे। एक आदमी बड़े गुस्से में कोई तकरीर जैसी कर रहा था। उसके अंदाज से लग रहा था कि मानों कह रहा हो कि सारी गड़बड़ियों को वह उठाकर पटक देगा। एक-एक को ठीक कर देगा। ऐसे आदमी को अगर सही मंच मिल जाये तो बहुत आगे जाये। लेकिन सही मौका न मिलने के चलते वह बिरहाना रोड पर अपना गुस्सा उतार रहा है। विक्षिप्त हो रहा है। सही मौका मिलने पर ऐसे ही तमाम विक्षिप्त बहुत आगे निकल जाते हैं। उनकी ऊलजलूलियत उनका हुनर बन जाती है।
भैया भाभी के साथ हनीमून पर जाने वाले हैं |
पंकज इंतजार कर रहे थे हमारा। देखते ही मिलने को लपके। साथ के लड़के ने उनसे मजाक करते हुये कहा-’ पंकज ने हमको स्कार्पियो नहीं दिलवाई।’ पंकज बोले -’ स्कार्पियो मतलब बिच्छू होता है। बिच्छू डंक मारता है।’ मतलब पंकज अंग्रेजी के शब्द भी जानते हैं। जलेबी, दही, समोसा कब्जे में लेने के बाद बोले-’ आज बहुत चीजें लेंगे। बहुत चीजों में बर्फ़ी, कोल्ड ड्रिंक, एक आम, दो केला और पांच बिस्कुट शामिल हुये। चाय के दस रुपये भी।’
मिठाई की दुकान पर लड़के की शिकायत करते हुये बोले- ’ ये हमको मिठाई देता नहीं है।’ हमने उसको कहा कि रोज एक पीठ मिठाई दे दिया करो। पैसे हम देते रहेंगे। एडवांस भी दिये कुछ पैसे।’
मिठाई, कोल्ड ड्रिंक लेने के समय हमारे बारे में मिठाई वाले को बताया -’भैया भाभी के साथ हनीमून पर जाने वाले हैं। माल वाली मिठाई खिलाया करो इनको।’
चीजों के दाम का अंदाज है पंकज को। कोल्ड ड्रिंक की सस्ती वाली वैरायटी ही ली। हमने कहा और भी कुछ लेने का मन है तो ले लो।
बोले-’और नहीं लेंगे। ज्यादा लेने से प्रेम से कम हो जाता है।’
ज्यादा लेने से प्रेम कम हो जाता है। यह बात ऊंची टाइप कह गये सिरिमान पंकज जी। मतलब (एक तरफ़ा) लेन-देन प्रेम में बाधक होता है। लेन-देन होय तो बराबरी का होय। हमको याद आई घनानन्द की बात:
“अति सूधो स्नेह को मारग है
जहँ नेकु सयानप बांक नहीं
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला
मन लेहु पे देहु छटांक नहीं।“
जहँ नेकु सयानप बांक नहीं
तुम कौन धौं पाटी पढ़े हो लला
मन लेहु पे देहु छटांक नहीं।“
मने प्रेम बराबरी का मामला है। यहां चालाकी की कोई जगह नहीं। कपट नहीं। शिकायत भी है सुजान से कि मन भर (चालीस किलो) प्रेम लेते हो लेकिन देते छंटाक भर भी नहीं।
इसी बात को विस्तार देते हुये कोई कह सकता है- ’प्रेम एक सहज गठबंधन होता है। हसीन टाइप। एकतरफ़ा लेन-देन से इस गठबंधन में दरार पड़ जाती है। गठबंधन की सरकार गिर जाती है।
खबरों को दबाए हुए लोग |
चलते हुये पंकज ने हिदायत दी कि राजुल से बचकर रहना। लेकिन कोहली अब उनके जिकर से बाहर है बहुत दिनों से।
सामने कुछ लोग अखबारों की रद्दी पर बैठे थे। देखकर लगा कि जरूरी खबरें दबाने वाले ऐसे ही खबरों के ऊपर बैठ जाते होंगे। खबरें दब जाती होंगी।
लौटते हुये माल रोड चौराहे पर अखबार लिया। वहीं नुक्कड़ पर बोर्ड लगा था ’गोल्डी मसाले और पीबी सोसाइटी ज्वैलर्स का गठबंधन।’ देखकर लग रहा था कि गोल्डी मसाले ने पीबी सोसाइटी ज्वैलर्स के समर्थन से नुक्कड़ पर अपनी विज्ञापन सरकार बना ली है। ज्वैलर्स ने पैसे भी दिये होंगे शायद मसाले की सरकार बनाने के लिये। विज्ञापन की गठबंधन सरकार बन गयी। वैसे भी गठबंधन हमेशा ही मसालेदार होता है। है कि नहीं?
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