अमलतास |
कल देर हुई निकलने में। जब तक पहुंचे तब तक पंकज भाई कहीं दौरे पर निकल गए थे। निकलते हुए पास के हलवाई वाले को बता गए थे -'अनूप भैया आएं तो कहना हम अभी आते हैं।'
थोड़ी देर इन्तजार करने के बाद हम उस मकान के आसपास कार से टहले जहां वह रहते हैं। नहीं दिखे तो ऊपर गए जहां वह रहते हैं। पूछा तो सबने बताया -'यहां कोई पंकज बाजपेयी नहीं रहते।'
लेकिन फिर एक ने जीने की तरफ इशारा किया -'यहां रहते हैं।'
जीने में सीढ़ियों पर कुछ सामान बेतरतीबी से रखा था। बताने वाले ने बताया कि वह पांच साल से रह रहा है किराये पर। ज्यादा नहीं पता पंकज के बारे में लेकिन यह जानते हैं कि इसी जीने में रहते हैं। एक कमरे की तरफ इशारा करते हुए बताया -' यहाँ रहने वाली भाभी जी खाना दे देती हैं।'
आसपास के लोग बताते थे कि पंकज बाजपेयी कमरे में रहते हैं। लेकिन उनका आशियाना जीने में निकला। कई कहानियां जो लोगों ने उनके बारे में बताई थी उनमें भी झोल लगे। अपने आसपास के लोगों के बारे में कितना कम जानते हैं हम लोग।
बहरहाल दुकान वाले को उनकी जलेबी-दही-समोसा देकर चले आये। यह भी कि आएं तो बात कराना। थोड़ी देर बाद ही फोन आया। हमने पूछा -'कहां चले गए थे?' बोले -'अफीम कोठी तक गए थे।'
हमने पूछा -'जलेबी-दही मिल गयी?'
बोले -'हां। पर पैसे नहीं दे गए चाय पीने के।' शिकायत भी की -'इन्होंने बर्फी नहीं खिलाई।'
हमने दुकान वाले से चाय के लिए दस रुपये देने को कहा। फिर पंकज जी को बताया तो बोले -' जल्दी आया करो। धूप हो गयी थी इसलिए हम चले गए थे। जल्दी आया करो।'
पिछले इतवार को जबलपुर से आये Ramesh Saini जी के साथ मिलने गए थे। हमने बताया तो खुश हुए। चाय के लिए मना कर दिया यह कहते हुए -'झूठ नहीं बोलेंगे। अभी पी है। आप पियो। भैया जी को पिलाओ।'
उस दिन बात करते हुए हमने कहा -'कविता सुनाओ। पिछली बार कह रहे थे कि याद करके सुनाएंगे।'
बोले -'जन गण मन' याद कर रहे हैं। अभी ठीक से याद नहीं हुई। जब याद कर लेंगे तब सुनाएंगे।'
हमने कहा -'जितना याद है उतना सुनाओ।'
बोले -' ठीक से याद नहीं। जनगणमन सुनाने में गलती हो जाएगी तो राष्ट्रपति से कोई शिकायत कर देगा। वो नाराज हो जाएंगे। '
ऊंची बात कह गए पंकज बाजपेयी। इस पर कविता, व्यंग्य और न जाने क्या लिखा जा सकता है। इसी को फैलाकर एक ठो बिना किसी नतीजे की प्राइम टाइम बहस हो सकती है।
पंकज बाजपेयी का ठिकाना |
और भी तमाम पुरानी बातें हुईं। उनके अतीत से जुड़ी हुई। नामवर सिंह जी ने एनडीटीवी से बातचीत करते हुए पुरानी यादों में डूबे रहने के स्वभाव पर टिप्पणी करते हुए कहा -'प्रकृति ने इंसान को आँखे आगे दी हैं। आगे देखने के लिए। पैर आगे चलने के लिए दिए हैं। हमें आगे देखना चाहिए। अतीत में डूबे रहना ठीक नहीं।'
आजकल तो अपना पूरा समाज ही जब मन आये अतीत में टहलने चल देता है। जिसको देखो वही रामायण महाभारत काल में घुस जाता है। कुछ पुराना बटोर लाता है। पहले रामायण वाले हिस्से में ज्यादा जाते थे लोग। आजकल महाभारत वाले हिस्से ज्यादा गुलजार हैं। आक्रामक अतीत फैशन में है आजकल।
अतीत , अपनी सुविधा के हिसाब से गढ़े हुए अतीत, को मुस्ताक अहमद युसूफ़ी ने विलेन भी बताया है। हम विलेन को कुछ ज्यादा ही पसंद कर रहे हैं आजकल। आगे देखने की बजाय पीछे ज्यादा मुंडी घुसाए रहते हैं।
कहाँ हम भी टहलने लगे। आप भी क्या कहोगे -'बेफालतू की हाँकने लगा सुबह-सुबह।'
आइये आपको गड्डमड्ड अतीत से वर्तमान के खूबसूरत अमलतास की तरफ़ ले चलते है।
Ramesh Saini के साथ पंकज बाजपेई — Ramesh Sainiके साथ. |
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