आज अंतरराष्ट्रीय योग दिवस है। योग के कार्यक्रम होंगे दिन में। शुरुआत 'साइकिल योग' से हुई।
औपचारिकताओं के अलग बवाल हैं। हर औपचारिकता समय की कुर्बानी मांगती है।
मंदिर तिराहे पर 100 डायल कर में बैठा ड्राइवर कार का दरवाजा पखने की तरह खोले मोबाइल पढ़ रहा था।
एक बुजुर्ग छड़ी के सहारे अपनी पोती के साथ टहल रहे थे। स्कूल की पुलिया पर बैठी दो महिलाएं आपस में अगल-बगल देखते हुए बतिया रहीं थीं।
मेन रोड पर आकर सीधे चले चले गए। इस रास्ते पहले नहीं आये थे। चौड़ी सड़क। चलते गए। आगे बस्ती शुरू हुई। कुछ जगह मोहल्ला गोदियाना लिखा दिया। गोदियाना नाम क्यों पड़ा पता नहीं।
एक तालाब किनारे एक आदमी तालाब के पानी को देखता कम घूरता ज्यादा बैठा था। पानी उसके देखने और घूरने से डरकर हिलडुल रहा था। कीचड़ और जलकुंभी के मोटापे के कारण तालाब भी थुलथुल हो गया था। तेजी से हिल नहीं पा रहा था। आदमी तालाब की बेबसी को समझता हुआ चुपचाप उसे देखता रहा।
एक दुकान पर नाम लिखा था -'अनूप मोबाईल शाप'। हमारे नाम से कब खुली दुकान हमको पता ही नहीं। हम तो आम इंसान लेकिन तमाम महान लोगों के नाम ऐसे ही तमाम योजनाएं चलती रहती हैं। उनके नाम घपले-घोटाले होते रहते हैं। उनको पता ही नहीं चलता।
एक नौजवान कंधे पर दो झाड़ू लिए और हाथ में फावड़ा पकड़े तेजी से आता दिखा। साथ के आदमी से उसने कुछ मजाक किया। आगे जाकर दुकानों की सफाई में जुट गया। हमने बात करना शुरू किया तो कुछ बोलने से पहले उसने सफाई दी -'वो हमारा दोस्त है। हम ऐसे ही मजाक कर रहे थे।'
हंसी-मजाक पर भी आजकल सफाई देनी पड़ रही है। उस नौजवान की बात सुनकर लगा कहीं ऐसा न हो कि आने वाले समय में समाज मे मजाक के लिए अनुमति लेने का कानून बन जाये। बिना अनुमति मजाक करना दण्डनीय अपराध और सजा या जुर्माने का कारण बन जाये।
फिर तो न जाने कितने लफड़े होंगे। करोड़ो लोग मजाक करने के बावजूद पकड़े नहीं जाएंगे। 'मजाक अपराध' में दिनो दिन बढोत्तरी होगी। न जाने क्या-क्या बवाल हो सकते हैं। अभी इस बारे में सोचा ही न जाये तो बेहतर।
एक दुकान के चबूतरे पर दो कुत्ते बैठे थे। ऊंचे चबूतरे पर बैठा कुत्ता इतना चौकन्ना और घबराया सा इधर उधर देख रहा था कि मानो उसको डर है कोई दूसरा कुत्ता न उस चबूतरे पर कब्जा कर ले। पास में टहलती मक्खी पर उसने बड़ी तेजी से अपनी पूंछ से हमला सा किया। मक्खी शायद उड़ गई होगी। वह खिसियाया सा दूसरी तरफ देखने लगा।
दूसरा कुत्ता शायद रखवाली के काम में लगा था , सो रहा था। यह भी हो सकता है कि उसकी ड्यूटी रात की शिफ्ट में रही हो। ड्यूटी पूरी करके सो रहा हो। किसी के बारे में बिना जाने कोई धारणा बनाना ठीक नहीं।
एक बुजुर्ग अपनी नातिन को टहलाते हुए दिखे। बिटिया का नाम बताया -माहम। पता चला फैक्ट्री से 2014 में रिटायर हुए। उनके समय के महाप्रबन्धकों के नाम पूछे तो बोले-'न जाने कितने जीएम आये। नाम याद नहीं।'
जो लोग तख्ते-कुर्सी के लिए मारामारी में लगे रहते हैं उनको समझना चाहिए कि आम आदमी उनके नाम भी नहीं गिनता।
बिटिया को खिलाते हुए बुजुर्गवार टहलते चले गए।
एक जगह चबूतरे पर दो बुजुर्ग बैठे दिखे। एक बीड़ी पीते, दूसरे हवा पीते और सड़क को देखते तसल्ली से बैठे। बात करने के बहाने हमने रास्ता पूछा। रास्ता बताकर फिर बीड़ी पीने लगे बुजुर्गवार। लगता है वो बतियाने के मूड में नहीं थे। हम आगे निकल लिए।
आगे फल सब्जी की मंडी दिखी। सड़क पर भीड़ में फल सब्जी बिक रहे थे। आम की 25 किलो की पेटी 750 रुपये में बिक रही थी। मतलब आम 30 रुपये किलो थोक में। फुटकर में और महंगा होगा। कुछ साल पहले हमको याद है हमने आठ रुपये किलो आम खाये थे। मंहगाई बढ़ गयी है।
गुप्ता समोसा कार्नर दिखा। आलू ही आलू हर तरफ। एक तरफ देग में आलू उबल रहे थे। देग के ढक्कन के नीचे बोरे से ढंके थे आलू। कोई देख ले उबलते हुये तो समोसा न खाए। अंदर आलू छिलके समेत कसे जा रहे थे। मिलाए जा रहे थे। अंधेरे में आलू घुट घुटकर समोसे में बदल रहे थे। पूछने पर हाथ के इशारे से बताया 40 साल पुरानी दुकान है। बरेली तक जाते हैं समोसे।
गुप्ता समोसा कार्नर के साथ लगी नाली में एक आदमी नाली के पानी में हाथ डाले कुछ खोज सा रहा था। हमें लगा अंदर कुछ गहरे सफाई कर रहा है। कुछ देर में उसने नाली से निकला सिक्का हाथ में रखकर दिखाया। किसी ने फेंका होगा। उसको आशा होगी तभी खोज रहा था। आशा ही जीवन है।
वहीं बगल में ही फुटपाथ पर एक आदमी अपने बच्चों के साथ बैठा चाय पी रहा था। दिल्ली से आया है। प्राइवेट बस से। रात भर के सफर से थका हुआ है। आगे अपने गांव जाना है। 18-20 किलोमीटर दूर गांव है। कोई ऑटो वाला तैयार नहीं हो रहा है। जो तैयार हो रहा है वह आने-जाने का किराया मांग रहा है। मोलभाव चल रहा है।
एक बैटरी रिक्शा वाला बोला -'बैटरी ख़त्म हो जाएगी। जा पाएंगे तो आ नहीं पाएंगे। बैटरी होती तो हम चले चलते।' बताया -'एक बार की बैटरी चार्ज होने पार 60 किमी चले जाते हैं। 50 रुपये लगते हैं एक बार की चार्जिंग के। सुबह से बीस-पच्चीस किलोमीटर चल चुकी है गाड़ी। इसीलिए बोले -नहीं जा पाएंगे।'
उस परिवार को वहीं छोड़कर हम आगे बढ़ गए। श्रीरामलीला मैदान में योग दिवस के मौके पर योग शिविर चल रहा था। भारी भीड़ थी। सड़क पर लोग आ जा रहे थे। मार्निंग वाकर क्लब के लोगों ने दनादन सेल्फी और फोटो ली। वहीं कई तरह के फ्लेवर की ग्रीन टी भी वितरित हो रही थी। हमको भी जबरियन पिलाई गई। चाय पीकर हम घर आ गए।
घर के बाहर लान में एक पक्षी घास पर टहलते हुए कुछ चुन रहा था। खा भी रहा था। हमको पास आते देखकर उड़कर छत पर बैठ गया। उसको अपनी निजता का उल्लंघन करना अच्छा नहीं लगा।
हमको फोटो लेते देखने की कोशिश करते और असफल होते सूरज भाई देख रहे थे। पेड़ के पीछे छिपे हुए। हमने उनकी ही फोटो लेकर कोटा पूरा किया।
सुबह की सैर पूरी हुई।
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