आज साइकिलिंग के लिए कुल जमा चार लोग थे।आर्मी गेट पहुंचे तो मार्निंग वाकर फोटोबाजी में लगे हुए थे। हमको देखा तो हमको भी लपेट लिया, आइए फ़ोटो खिंचाए। हमने बताया –‘आप लोगों से साइकिल क्लब वाले परेशान हैं। उनकी शिकायत है कि उनके कार्यक्रम आप लोग हाइजैक कर लेते हैं।‘
संक्षिप्त फोटोग्राफी के बाद हम लोग साइकिलिंग के लिए निकले। साथ में चलते हुए डाक्टर विकास खुराना शाहजहांपुर से जुड़ी कुछ ऐतिहासिक जानकारी देते रहे।
बस्ती से गुजरते हुए लोग अपने दरवाजे पर बैठे हम लोगों को गुजरते हुए देखते रहे। एकाध जगह लोग बीड़ी फूंकते हुए तसल्ली से गपियाते दिखे। बीड़ी की बुराइयों को छोड़ दिया तो जाए तो यह मिलन-जुलन के लिए अच्छा और सस्ता उपाय है। बीड़ी से बीड़ी जलती है। लेकिन ऐसे देखा जाए हर नशा लोगों को जोड़ता है। यही सब बहाने बताकर लोग नशे से जुड़े रहते हैं। बीड़ी , तंबाकू ऐसे ही सस्ते नशे हैं जिनके बारे में कहावतें प्रचलित हैं। तंबाकू के बारे में पुरानी बात याद आई:
कृष्ण चले बैकुंठ को , राधा पकड़ी बांह ,
हियाँ तंबाकू खाय लेव, हुवाँ तंबाकू नाय।
लोगों के बगल से गुजरते हुए लोग हमको देखते। उनकी निगाहें गोया पूछ रही होती हैं –‘ये सब सुबह-सुबह कहाँ निकल लिए साइकिल पर। इनको और कोई काम नहीं है क्या ?’
बस्ती के बाहर एक आदमी अपनी बिटिया को कंधे पर बिठाए जा रहा था। साथ में बच्चा साइकिल पर। साइकिल रोक कर उससे बतियाने लगे। वे अपनी बच्चे को कंधे पर बिठाकर पुल तक ले जाते हैं। जाते समय पुल तक साइकिल बच्चा चलाता है। लौटते में बच्ची चलाती है। बच्ची केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ती है। बच्ची की माँ ने दौड़-धूपकर फार्म भरवा कर एडमिशन करवाया है। इसके पहले बच्ची महिला कल्याण समिति के स्कूल में पढ़ती थी। पिछले साल कोरोना काल में स्कूल न खुलने के बावजूद पूरी साल भर की फीस मांगी गई तो एडमिशन केवी में करा दिया।
खुद आटो चलाते हैं कमर। शहर भर में चलते हैं। चार भाई हैं। पिता राज मिस्त्री का काम करते थे। कोरोना काल में मां नहीं रहीं। बीमार हुयी तो किसी डाक्टर ने देखा नहीं कोरोना के चलते। लखनऊ ले गए त तक शांत हो गयीं। उनके जाने के बाद पिता उनके गम में बीमार हो गए। लड़कों ने काम छुड़ा दिया। घर में रहो। हालांकि ठेकेदार कहता है काम पर आने के लिए लेकिन बच्चे जाने नहीं देते।
बात करते हुए कंधे पर सवार बच्ची अपने पिता के बाल पर प्यार से हाथ फिरा रही थी। इस बात का जिक्र करने पर कमर बोले –‘ सर के बाल सब टेंशन में उड़ गए। ‘
‘ किस बात का टेंशन ?’ हमारे पूछने पर बोले कमर –‘ बच्चों को अच्छी तालीम दिला सकें, उनको अच्छे से प पोस सकें इसी बात का टेंशन रहता है।‘
हमारी बातचीत से बेपरवाह बच्ची अपने पिता के सर के बालों में उँगलियाँ फिराती रही। आज पिता दिवस है। इस मौके की अनूठी तस्वीर बन गई। हालांकि वह तो रोज ही ऐसा करती होगी। उसका तो रोज ही ‘फादर्स डे’ मनता होगा।
बेटी का नाम बताया इफरा। हमने मतलब पूछा तो बताया –‘नाम का मतलब तो पता नहीं। मौलवी साहब ने रखा है। गुगलबाबा ने नाम का मतलब बताया – माहिर, होशियार। कमर ने कहा –‘होशियार तो है यह। सब काम फौरन समझकर कर लेती है।‘
इफरा के भाई का नाम भी पूछा गया-‘उजैर’। उजैर मतलब कीमती। बातचीत के क्रम में पता चला –दोनों बच्चे जुड़वां हैं।‘
चलते हुए हम लोग खन्नौत नदी के पुल पर आ गए। नीचे पुराने पुल की रेलिंग पर एक भाई जी तसल्ली से बीड़ी पी रहे थे। कमर भाई भी अपने बच्चों के साथ वहाँ पहुँच गए थे। हमने नीचे बैठे भाई जी से पूछा –‘क्या हो रहा है उधर?’
भाई जी ने जवाब दिया –‘मछली पकड़ रहे हैं।‘
मछली पकड़ने के नाम पर कोई औजार , जाल न देखकर हमको अचरज हुआ और पूछा –‘कैसे पकड़ रहे हैं मछली?’
‘अभी दिखाते हैं’ कहते हुए भाई जी ने बीड़ी बगलिया कर अपने पास की एक छुटकी सी बोतल में कुछ लगाकर डोरी के सहारे नदी के पानी में उतार दी। बताया यही औजार है। मछली पकड़ जाएगी तो पता चल जाएगा।
‘हमने पूछा कितनी देर में फँसेगी मछली?’ बोले –‘पता नहीं?’
‘नहीं फँसेगी तो क्या करेंगे ?’- हमने पूछा।
बोले –‘फँसेगी तो ठीक , नहीं फंसी तो भी कोई बात नहीं। घंटे-दो घंटे इंतजार करेंगें। फिर घर चले जाएंगें।‘
‘काम क्या करते हैं ?’ के जबाब में भाई जी ने बताया –‘कुछ नहीं।‘
हम कुछ और पूछें तब तक कमर ने बताया –‘ग्राम प्रधान थे इसके पहले। 15 साल लगातार प्रधान रहे। हमेशा जीतते रहे। इस बार खेल हो गया , हार गए।‘
‘क्या खेल हो गया?’ के जबाब में बताया कमर ने –‘इस बार जो प्रधान बना उसने तमाम सारे वायदे कर दिए। ये कराएंगे, वो कराएंगे। लोगों ने उसको वोट दे दिया। अब सब पछता रहे हैं। साल भर में ही परेशान हो गए। कह रहे हैं –‘बेकार चुना इसको’। पहले वाले प्रधान अच्छे थे।‘
मछली पकड़ते प्रधान जी की तारीफ करते हुए बोले कमर –‘कोई और होता इनकी जगह तो करोड़ों कमाता पंद्रह साल में। कोठी में रहता। इन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। अगली बार यही जीतेंगे।‘
आजकल हर जगह यही हो रहा है। चुनाव वायदे करके जीते जाते हैं। चुनाव के बाद वायदे बिसरा दिए जाते हैं।
नदी के दूसरी तरफ भी कुछ बच्चे मछली पकड़ रहे थे। उनके पास मछली पकड़ने का जुगाड़ अलग तरह का था। एक थपली टाइप औजार में नीचे थोड़ा छेद करके उसमें आटा लगाकर नदी में उतार दिया जाता है। आटे के लालच में मछली छेद में फंस जाती है।
कई बच्चे मछली पकड़ रहे थे। एक बच्ची देखते-देखते हुए पानी में उतर गई। अपना मछली पकड़ने के औजार पानी से उठाया और उसको हिलाते हुए पानी निकालते हुए जमीन में गिराने लगी। पानी के साथ मछलियाँ भी बाहर गिरती दिखीं।
नदी का पानी मछली , उनको पकड़ने वालों और हम से भी बेपवाह बहता रहा।
हम लोग आगे बढ़ गए।
आगे चलते हुए हम मुख्य सड़क पर आ गए। इसके बाद हथौड़ा बुजुर्ग चौराहे की तरफ से होते हुए लौटने लगे।
रास्ते में एक जगह तालाब जैसी जगह मिट्टी से पटते दिखी। आधा तालाब पट गया था। आधा तेजी से भर रहा था। कुछ दिन बाद तालाब सड़क की तरह बराबर हो जाएगा और वहाँ नए मकान बन जाएंगे। इसके बाद कभी-कभी शहर में तालाबों के खतम होने का स्यापा होता रहेगा।
एक जगह नदी किनारे योग कार्यक्रम हो रहा था। योग करने वाले लोगों के पीछे धोबी नदी में कपड़े धो रहे थे। कपड़े साफ हो रहे थे , नदी मैली हो रही थी।
शहर पहुँचने पर सब लोग अलग –अलग हो गए। हम भी वापस हो लिए। लौटते हुए पंकज की चाय की दुकान देखने गया । बंद थी दुकान। आगे नाले की मुंडेर पर बैठे उनके पिता एक दोस्त के साथ गपिया रहे थे। बताया –‘पंकज सो रहा है अभी। आठ बजे उठेगा , तब खोलेगा दुकान।‘
चाय की दुकाने भी अब दफ़तरों की तरह खुलने लगी।
आगे एक जगह एक महिला बैठी सूप बिनने के लिए तैयारी कर रही थी। सूप बीनते हुए देखकर लगा कि यह भी एक अनूठी कला है। कुछ देर उसको सूप बीनते देखते रहे। इस बीच एक और बुजुर्ग महिला एक छोटे बच्चे के साथ आई और वह भी सूप बीनने लगी। बच्चे को कई टाफियाँ दिलाकर लाई थी वह बुजुर्ग महिला। बच्चा टाफी खोलकर जमीन में रखकर उसको खाने का तैयारी कर रहा था। बुजुर्ग महिला ने बच्चे को टाफी जमीन से उठाकर ऊपर रखने का इशारा किया और काम में जुट गई।
लौटते में एक साइकिल की दुकान पर एक बुजुर्ग पंचर बनवाते दिखे। पंचर बनाने के बाद हवा भरते हुए फ़ोटो लेने की कोशिश की लेकिन पता चला मोबाइल की बैटरी खतम हो गई थी। हम मन मारकर आगे बढ़ गए और पैडलियाते हुए घर वापस आ गए। बिना मोबाइल कैसी घुमाई।
लौटते हुए भी तमाम नजारे देखे। देखना कोई मोबाइल का मोहताज थोड़ी है !
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