Monday, June 27, 2022

नहर किनारे तक साइकिलिंग



कल इतवार को लम्बी साइकिलिंग का प्लान था। Sumit Prasad सुमित कई बार से नहर तक चलने को कह रहे थे। टलता गया मामला। इस बार निकल लिए।
आर्मी गेट से निकलते ही सुमित मिले। इंतजार करते हुए। बाकी लोग आगे निकल गए थे। हम दो ही आगे बढ़े। सड़क पर पसीना बहाते लोग दिखे।
मऊ गांव के पहले घास, झाड़ियों से घिरे मैदान में क्रिकेट खेलते दिखे बच्चे। पिच पर घास, अगल-बगल घास। उनको देखते पेड़। सबके साथ खेल हो रहा था। सहअस्तित्व का भाव मूर्तिमान था। 'लगान' पिक्चर की याद आईं।
बस्ती से निकलते हुए आगे बढ़े। लोग घरों के बाहर बैठे बतिया रहे थे। कुछ लोग बीड़ी पीते हुए गपशप रत थे। लोग हमको आते देखकर, देखना शुरू करते, नजरों के ओझल होने तक देखते। गरदन का व्यायम हो जाता। पूरा 180 डिग्री घूम जाती गर्दन। इसी बहाने समय बिताने का बहाना।
खन्नौत नदी के पुल के पास, पीछे से फटफटिया पर इफरा के पापा अपने बेटे के साथ धड़धड़ाते हुए आये। बोले-'हम लोग इंतजार कर रहे थे आपका। आपके बंगले के बाहर से कई बार गुजरे। इफरा कह रही थी अंकल जी से मिलना है। आज अभी सो रही है। घर आइएगा लौटते में। हम इंतजार करेंगे।'
वापसी में आने का वायदा करके हम आगे बढ़े। नदी के पुल के पास के बगीचे में कुछ बच्चे पेड़ से गिरे आम बीन रहे थे। कुछ पेड़ में ढेले मारकर आम तोड़ रहे थे।
आगे साइकिल पर एक बुज़ुर्गवार अपने से भी बुजुर्ग साइकल पर जाते दिखे। कपड़े के नाम पर पटरे का जांघिया। कमर पर बंधा धागा। आहिस्ते-आहिस्ते साइकिल चलाते , पूरे इलाके को मौका मुआयना वाली निगाह से देखते। अंदाज ऐसा कि पूरा इलाका उनका ही हो।
कुछ देर बाद ही मुख्य सड़क पर आ गए। मोहम्मदी की तरफ जाती हुई। भावलखेड़ा अगला कस्बा था। भावलखेड़ा पहुंचकर मोड़ पर ही चाय की दुकान दिखी। रुक गयी साइकिल। चाय पीना भी जरूरी।
चाय की दुकान के सामने एक बुजुर्ग दिखे। एकदम यायावर टाइप। बगल में रखी गठरी। हम अनायास उनसे बतियाने पहुंच गए।
पता चला बुजुर्गवार इलाहाबाद के पास के सनौरी से चले आये हैं। ऐसे ही रेंगते-चलते। जहां मन किया रुक गए। जहां रात हुई ठहर गए। बताया कि पास में कुछ दाल-चावल, रुपये भी थे। कुत्ते सब खा गए।
घर परिवार में बच्चे हैं। पिता हैं। सब हैं। फिर क्यों ऐसे घूम रहे। बोले-'ऐसे ही निकल आये। वापस चले जायेंगे चलते-फिरते।'रास्ते का पता पता नहीं। थोड़ा बहुत पढ़ लिख लेते हैं। नाम-वाम पढ़ने भर का।'
नाम बताया चौहान। चौहान जी को चाय पिलाई गयी। कल से कुछ खाया नहीं था। तमाम असंबद्ध बातें। कानपुर के पंकज बाजपेई याद आ गए। चौहान जी को ग्लूकोस के बिस्कुट दिलाये गए। बिस्कुट लेकर सड़क पार करके अपने ठीहे की तरफ जाते हुए चौहान जी को देखकर केदारनाथ जी की कविता याद आयी:
मुझे आदमी का सड़क पर करना
हमेशा अच्छा लगता है
क्योंकि इस तरह
एक उम्मीद सी होती है
कि दुनिया जो इस तरफ है
शायद उससे कुछ बेहतर हो
सड़क के उस तरफ।
इसके पहले सड़क किनारे एक झोपड़ी में एक बुजुर्ग चाय छानते दिखे। स्टील के कप में अपने लिए चाय लेकर पास की गुमटी में आकर बैठकर चाय पीने लगे। पास में बुजुर्ग महिला चुपचाप दाल बीन रही थी। हमने पूछा- ' उनको चाय नहीं दी।'
'बना के रख दी है।'- बुजुर्ग ने इशारे से कहा। बुजुर्ग महिला चुपचाप अनाज बीनती रही।
उनको देखकर लगा -'एक उम्र के बाद दम्पत्तियों में संवाद की भाषा मौन हो जाती है।'
दम्पत्ति ही क्यों। किसी भी रिश्ते में एक समय बाद संवाद शब्दों का मोहताज नहीं रहता।
लौटते हुए फिर वही बुजुर्ग दिखे। दुकान पर बैठे। कुछ छोटे-मोटे सामान बेचते।
हमने पूछा -'यहां कौन सामान खरीदता होगा तुम्हारा? कैसे घर चलता है?''
'चल जाता है ऐसे ही।'- कहते हुए चुप हो गए। उनकी आवाज में निराला की कविता -'वह मार खा रोई नहीं' और 'दुख ही जीवन की कथा रही' वाले भाव थे।
बाद में बगल में साइकिल के पंचर बनाने वाले ने बताया -'इनका जवान बेटा नहीं रहा था। उसके इलाज में घर-बार सब बिक गया। बेटा शादी -शुदा था। अब उसके बच्चे बड़े हो गए। पास के ही गांव में रहते हैं वो। दिल्ली में काम करते हैं। ये बुजुर्ग सालों से ऐसे ही रहते हैं।'
भावल खेड़ा से आगे नहर दर्शन की लालसा में आगे बढ़ते गए। जिससे पूछो , कहता -'बस थोड़ी देर है।'
एक जगह एक बुजुर्ग आम चूसते दिखे। उनसे बतियाये। बताया कि मोहम्मदी के रहने वाले हैं। अब यहां रह रहे। घोड़ा गाड़ी है। उससे भट्टे के ईंटे ढुलाई करते हैं। घर में बेटे-बहु, नाती-पोते हैं। सब मजे में हैं । टहलते हुए आम चूसते हुए वे इधर-उधर हो गए।
रास्ते में तमाम नजारे दिखे। कोई बस का इंतजार करता, कोई सड़क पार करता। कहीं महिलाएं सड़क किनारे फसक्का मारे बैठी, बतियाती। शीघ्रपतन और नामर्दी के इलाज वाले इश्तहार जगह-जगह दिखे। इलेक्ट्रॉनिक धरमकांटे भी कई जगह दिखे।
चलते-चलते शारदा नहर तक पहुंचे। नहर में पानी पूरे प्रवाह से बह रहा था। इतना कि अगर नहर में उतरे तो बह जाएं। बड़े इलाके को सींचती है नहर। कितना मेहनत से बनाई गई होगी नहर। नहर के पास कुछ देर की फोटोबाजी के बाद वापस लौट लिए।
लौटते हुए हवा अनुकूल थी। तेज चाल आये। रास्ते में चौहान जी आते दिखे। सर पर गठरी रखे। घर लौट रहे थे। पता नहीं कब लौटेंगे। लेकिन उनका घर से निकलना और वापस का कारण समझ नहीं आया। यही लगा :
घर से बाहर जाता आदमी
घर वापस लौटने के बारे में सोचता है।
वापस लौटते हुए एक जगह दुकान पर एक बच्चे के बाल कटते देखे। बच्चा सर झुकाए हुए चुपचाप बाल कटवा रहा था। स्टाइल पता नहीं कौन सा था। लेकिन यही चल रहा है आजकल।
इस बीच इफरा के पापा के कई फोन आये। वे हमारा इंतजार कर रहे थे। उनके घर गये। पता चला कि पुरानी फोटो और वीडियो जो हमने लगाए थे वो सबने देखे थे। इफरा की खाला ने देखे तो इनको बताया। फिर सबने देखे। इफरा की मम्मी 'बेबी गुलिशतां' ने अपने बेटे के एडनिशन की चिंता जाहिर की। दोनों मियां-बीबी की चाहत है कि बच्चे अच्छे से पढ़ जाएं। ईश्वर उनकी तमन्ना पूरी करे।
इफरा के घर से चलकर वापस अपने घर आ गए। इतवार को कुल साइकिल चली 33.68 किलोमीटर।

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