Tuesday, June 28, 2022

दुनिया को देखने की नजर



आज सबेरे टहलते हुए बगीचे में कबूतर दिखे। पांच -छह रहे होंगे। मिट्टी के बर्तन में पानी रखा है। उसी की मुडेर पंर बैठे पानी पीते हुए बतिया भी रहे होंगे। उनको देखकर लगा बढिया फोटो आएगा। ले लिया जाए।
जैसे ही हमने फोटो लेने की सोची, मोबाइल निकाला, सारे कबूतर उड़ गए। लगता है उनको हमारे इरादे की भनक मिल गयी होगी और वे अपनी फोटो खिंचवाना नहीं चाहते होंगे। शायद उनको पता होगा कि ये इंसान जो भी फोटो खींचता है, फेसबुक पर अपलोड कर देता है। कबूतर अपनी निजता को सार्वजनिक नहीं करना चाहते होंगे।
फोटो न खींच पाने से खिसियाया हुआ मैं यह सोच रहा था कि उन कबूतरों को मेरे इरादे का पता कैसे चला कि मैं उनकी फोटो खींचूंगा। शायद यह भी कृत्तिम बुद्धिमत्ता से लैस हो चुके हैं। आसपास की गतिविधियों की भनक लेकर उसके हिसाब से निर्णय लेने में सक्षम हैं।
सोशल मीडिया में भी देखा है न। कोई चीज सर्च करो, खरीदो, उससे सम्बंधित चीज आपके आसपास मंडराने लगेगी। हमको भी खरीदो, हमको भी खोजो।
हमको अपने फोटो खींचने के लालच पर भी खुंदक आई। जरूरी है हर दृश्य को कैमरे में ही कैद किया जाए। हमको पक्का लगता है कि अगर फोटो खींचने के बजाय कबूतरों को देखते रहते तो शायद वे कुछ देर और बर्तन की मुंडेर पर बैठे गप्पाष्टक करते रहते। हमने बेवजह उनको उड़ा दिया।
फोटो का किस्सा कल भी हुआ। कल गोविंदगंज , बहादुरगंज, घण्टाघर , बस स्टैंड होते हुए वापस लौटे तो एक नौजवान लगभग चिथड़े वाले टाट के कपड़े पहने हुए मोड़ पर दिखा। पूरा बदन उसका टाट के फ़टे कपड़े से ढंका था। हमने उससे बातचीत करनी चाही तो वह कुछ बोला नहीं। पास में एक गठरी में छोटी शीशी में कोई तरल पदार्थ सा था। हमें लगा कोई नशा होगा, उसने बाद में बताया पानी है। क्या था, कह नहीं सकते।
हमने उसका फोटो लेने के लिए मोबाइल संभाला तो वह बोला -'मोबाइल जेब में रहने दो।'
मतलब उसने फोटो खींचने से मना कर दिया। फोटो खींचने से मना करना अलग बात। उसके लिए वह कहता कि फोटो मत खींचो तो ठीक लेकिन उसने जिस अंदाज में कहा -'मोबाइल जेब में रहने दो' उससे लगा कि वह कह रहा हो-'खबरदार जो फ़ोटो खींचा।' अक्सर शब्दों से ज्यादा भंगिमाएं बयान करती हैं मतलब।
हम चुप हो गए। अब वह बोलने लगा -'आज क्या तारीख है? कितना बजा है?'
हमने तारीख बताई और समय घड़ी में देखकर बताया। वह बोला -'घड़ी बड़ी बढिया है। स्मार्ट वाच है।'
हमको लगा वह हमारे मजे ले रहा था। हम कुछ बोले नहीं। चुपचाप चले आये।
वैसे भी मजे लेने-लिवाने का , हंसी-मजाक का रिवाज आजकल कम होता जा रहा है। पता नहीं कौन किस बात पर बुरा मान जाए। रिपार्ट कर दे, आप बचते फ़िरो।
उस युवा से बात करते मुझे स्कूल जाते बच्चों ने देखा था। केवी में पढ़ते हैं। बगल से साइकिल से गुजरते हुए मुझसे पूछा उन्होंने -'वो क्या कह रहा था?'
बच्चों से स्कूल के बारे में बात होती रही। बच्चों ने बताया -'स्कूल में अच्छा लगता है। खेलने को भी मिलता है।'
खेलने को कितना मिलता है पूछने पर बताया -'आधे घण्टे का लंच होता है। पन्द्रह मिनट में खाना खाकर पन्द्रह मिनट खेल लेते हैं। झूला झूलते हैं। बच्चा कक्षा 7 में पढ़ता है।
बच्चे की बात सुनकर अपने स्कूल के दिन याद आ गए। कभी-कभी हम दिन भर खेलते थे। स्कूल की छुट्टी हो जाने के बाद देर तक। कभी किसी कारण स्कूल बंद हो गया तो घर जाने के बजाय स्कूल की फील्ड में ही दिन भर खेलते रहते। अब भी तमाम बच्चे ऐसे ही पढ़ते-खेलते होंगे। लेकिन हमको तो यही लगता है:
आज उतनी भी मयस्सर नहीं मयखाने में,
जितनी कभी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में।
हम दुनिया को हमेशा अपनी निगाहों से देखते हैं। जिस समय हम ऐसा कर रहे होते हैं उसी समय अरबों और भी लोग होते हैं जो दुनिया को अपनी निगाहों से देख रहे होते हैं। हरेक का देखने का अपना अलग अंदाज होता है।

https://www.facebook.com/share/p/Pu884y9XPKMXBStF/

No comments:

Post a Comment