यह बात लिखने का कोई मायने नहीं। पढ़ाई-लिखाई की दुनिया से जुड़े लोग इस तरह की बातें अपने-अपने अन्दाज़ में महसूस करते हैं, अपने अन्दाज़ में बयान करते हैं। लेकिन लिखने का लालच भी एक अलग तरह का लालच है। लगता है कोई ऊँची बात लिख रहे हैं। कोई क़रीने की बात है। क़रीने की बात से याद आती है नंदन जी की कविता का अंश :
मैं कोई बात तो कह लूँ कभी करीने से
खुदारा! मेरे मुकद्दर में वो हुनर कर दे!
कल Yatish Kumar जी की लिखी किताब 'बोरसी भर आँच' पूरी पढ़कर ख़त्म की । किताब मेरे पास बहुत दिनों से थी। किसी मित्र ने चर्चा की थी तभी ली थी। पढ़ना शुरू नहीं हुआ था, जैसा तमाम किताबों के साथ होता है। सोचते हैं तसल्ली से पढ़ेंगे। किताब किस बारे में है यह भी पता नहीं था। Arvind Tiwari जी ने सलाह दी पढ़ने की तो पढ़ना शुरू किया।
किताब की रोचकता ही है कि क़रीब 200 पेज की किताब दो दिन में पढ़ गया। इससे लगा कि अगर इसी तरह पढ़ें तो तमाम वो किताबें पढ़ने का काम पूरा किया जा सकता है जिनको पढ़ा जाना है।
किताब में छपी सूचना के अनुसार राधाकृष्ण प्रकाशन से फ़रवरी,2024 में आई किताब के तीन माह में तीन संस्करण आ चुके हैं। किताब की भूमिका प्रख्यात कहानीकार तद्भव के सम्पादक अखिलेश जी ने तथा ब्लर्ब प्रख्यात कवि, कथाकार उदयप्रकाश जी ने लिखा है। ये सूचनाएँ किताब के आकर्षक, पठनीय और शानदार होने के संकेत थे। इन्हीं संकेतों के कारण मैंने किताब पढ़ना शुरू नहीं किया। सोचा बेहतरीन किताब आराम से पढ़ेंगे। वो तो शुक्रिया रहेगा Arvind Tiwari जी का जिनके कहने पर 'बोरसी भर आँच' पढ़ ली। इसके पहले भी पिछले साल अरविंद तिवारी जी कहने पर अनामिका जी का उपन्यास आईनासाज पढ़ा था।
'बोरसी भर आँच' में यतीश कुमार जी के बचपन से लेकर उनके SCRA में चयनित होने के समय के बीच समय के संस्मरण हैं। इस किताब के बारे में डेढ़ सौ के क़रीब लोग लिख चुके हैं। सिद्ध लोगों ने तारीफ़ की है। हम जो लिखेंगे उसे एक सामान्य पाठक की हैसियत से ही लिखेंगे।
'बोरसी भर आँच' में यतीश कुमार जी ने अपने बचपन के जीवन संघर्षों के संस्मरण लिखे हैं। अपनी माँ, दीदी, पिता, नानी-नाना, मौसी, मित्रों और अपने आसपास रहने वाले लोगों के बारे में संस्मरण हैं किताब में। किसी सहेली का अलबत्ता कोई किस्सा नहीं है। शायद कोई किस्सा रहा नहीं होगा या रहा होगा लेकिन अनकहा रह गया।
यतीश कुमार जी के लेखन को जिस तरह एक पाठक की हैसियत से मैंने ग्रहण किया उसके अनुसार माँ और दीदी के चरित्र बहुत प्यारे, आकर्षक, चमकीले हैं। वास्तविकता में वे और प्यारे, आकर्षक और चमकीले होंगे। दीदी के बहुत काबिल, सक्षम और बहादुर होने के बावजूद उनका अपनी क्षमता और प्रतिभा के अनुसार दुनियावी रूप से स्वयं सफल न हो पाना हमारी सामाजिक असफलता है।
यतीश कुमार जी की जीवन के संस्मरण में उनके संघर्ष उनके बचपन से शुरू होकर उनके बड़े होने तक समाप्त हो जाते हैं। अपने तीस-चालीस साल पहले के समय को, भारतीय समाज के अनुसार एक सफल और संवेदनशील इंसान का, बीते समय को तटस्थ भाव से देखने का प्रयास है। तीस-चालीस साल पहले हुई तमाम मीटिगों के कार्यवृत्त (Minutes of Meeting) की महत्वपूर्ण बातें लिखना जैसा है। यह अपने बचपन को दूर खड़े खड़े होकर खुद को देखना है। अधिकतर पाठक उससे अपने को जुड़ा पाते होंगे।
किताब पढ़ते समय और अभी भी मैं सोच रहा था कि अगर यतीश कुमार जी माँ अपने जीवन के संस्मरण लिख सकती तो कैसा रहता। एक स्वाभिमानी, मेहनती स्त्री जीवन की अनेकानेक स्थितियों से गुजरती, परेशानियों से जूझती और हालातों से पंजा लड़ाती हुई अद्भुत जिजीविषा से जीती है। दुनिया की परवाह न करती हुई अपनी शर्तों पर जीवन जीती है। जिन लोगों ने उनको कष्ट दिए, समय आने पर उनके प्रति भी उदारता बनाए हुए उद्दात भाव से उनकी सेवा करती हैं। जीवन के अनगिनत कसैले अनुभवों के बीच छोटे-छोटे सुख हासिल करती होंगी। ऐसे जीवन के आख्यान जो अपने आप में महाआख्यान होते हैं अक्सर अनकहे रहे जाते हैं, उनको सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है।
तमाम विपरीत परिस्थियों में एक सामान्य, लगभग असुरक्षित जीवन जीते हुए एक बच्चे के SCRA में सफल होना अपने आप में दुर्लभ उपलब्धि है। विपरीत परिस्थितियों में जीते हुए संघर्ष करते हुए सामाजिक रूप से सफल होना अपने आप में बड़ी जंग जीतना है।
जिस तरह का बचपन यतीश कुमार जी का रहा उसके अपने आख्यान होते हैं। लेकिन उनको लगभग निर्लिप्त भाव से कह सकने की कला या हुनर और साहस भी सबके पास नहीं होता। यह यतीश कुमार जी के लिए सम्भव हो सका इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। एक सफल किताब के लिए उनको बधाई।
किताब को Vinay Amber के चित्रों ने आकर्षक बनाया है। इसके लिए विनय को बधाई।
किताब में ज़िक्र SCRA का हुआ। स्पेशल क्लास रेलवे अप्रेंटिस रेलवे द्वारा कराई परीक्षाएँ होतीं थी। इसमें कक्षा 12 कक्षा के बाद क़रीब 25 लाख बच्चे परीक्षा देते। उनमें से 20-30 लोग चुने जाते। उन बच्चों को इंजीनियरिंग की शिक्षा दी जाती थी। चयनित होते ही बच्चों को अच्छा स्टाइपेंड और अधिकारियों जैसी तमाम सुविधाएँ दी जातीं। यही बच्चे आगे चलकर रेलवे के अधिकारी बनते। कम उमर में रेलवे के अधिकारी बनने के कारण SCRA में पढ़ने वाले बच्चे ही रेलवे के सबसे ऊँचे पदों तक पहुँचते।
इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि यतीश कुमार जी कितने प्रतिभाशाली और मेहनती रहे होंगे जो 25 लाख बच्चों में से सफल 20-30 सफल बच्चों में से एक थे।
2015 में SCRA की परीक्षाएँ बंद हो गयीं। रेलवे के लिए IES से चयनित होने वाले इंजीनियर ही लिए जाने लगे (जो कि पहले भी लिए जाते थे) 20-30 बच्चे जो मुख्यतः रेलवे की जानकारी वाली इंजीनियरिंग की पढ़ाई पढ़ते थे, उनको स्कालरशिप मिलती थी उनके रास्ते बंद हो गए।
सरकारें हर कल्याणकारी योजनाओं में आर्थिक पहलू देखने लगीं हैं। SCRA से चयन बंद होने के बाद अब रेलवे में कोई बच्चा पढ़ते हुए स्कालरशिप लेते हुए रेलवे में अधिकारी नहीं बन सकता। सब रेलवे में आने के लिए बच्चे को पहले इंजीनियरिंग की पढ़ाई पढ़नी होगी। IES का exam देना होगा। फिर उनमें से सबसे अच्छी रैंक वाले इंजीनियर रेलवे में जा पाते।
यह तो भला हो उस समय की सरकारों का जो अपनी मेहनत, लगन और सफल होने ज़िद के चलते यतीश कुमार जी SCRA में चयनित होकर रेलवे में अधिकारी बने। उस समय SCRA न होता तो उनकी ज़िंदगी कितनी अलग होती, कहना मुश्किल है लेकिन यह ज़रूर है कि वह निश्चित रूप से अलग होती। उनकी ज़िंदगी में शायद कुछ और संघर्ष होते, शायद कुछ और उपलब्धियाँ होतीं। लेकिन ये सब बातें तो 'अगर कहीं मैं तोता होता, तोता होता तो क्या होता घराने की बातें हैं' जिनका कोई ओर-छोर नहीं होता।
फ़िलहाल तो Yatish Kumar जी को उनकी शानदार किताब के लिए बधाई। उनको उनकी आगे की लेखन यात्रा के लिए मंगलकामनाएँ ।
किताब : बोरसी भर आँच
लेखक : यतीश कुमार
प्रकाशक : राधाकृष्ण प्रकाशन
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पेज : 199
क़ीमत : 350 रुपए (अमेजन में 245.70 रुपए लिंक टिप्पणी में)
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