Wednesday, January 15, 2025

गंगा नदी की संगत में कुछ देर



कल धूप में बैठे Pramod Singh जी की किताब बाँच रहे थे,'बेहयाई के बहत्तर दिन।' ठहर-ठहर के पढ़ना पड़ता है प्रमोद जी को। लिखते समय उनका पूरा ज़ोर इस बात पर रहता है कि जल्दी से कोई समझ न जाए उनके लिखे का मतलब। नदी के बहाने वे लिखते हैं :
"तुमसे कहूँ,ढेरों मरतबा सोचा है मैंने, एक इंसान से ज्यादे मानवीय लगती है मुझे नदी?कितना जीवन है इस नदी में। इतना है जितना इस स्टीमर में बैठे सब लोगों को मिला दो। इस नदी में अब तक जितने लोग सफ़र किए हज़ारों साल से,उन सबको और उन सबको भी जो इसके तटों पर रहते आए, उन सबको, उतना जीवन है इस नदी के जल में।"
नदी में जीवन की बात पढ़ते ही हम फ़ौरन गाड़ी स्टार्ट करके गंगा नदी देखने चल दिए। बिठूर। घर से दूरी दिखाया 17 किलोमीटर। समय 43 मिनट।
रास्ते में जगह लोग खिचड़ी खिलाते,खाते दिखे। दोने,पत्तल में। कल्याणपुर के आगे दो महिलाओं ने हाथ देकर गाड़ी रोकने का इशारा किया तो हम समझे 'बिठूर' तक 'लिफ़्ट' के लिए कह रही हैं। गाड़ी धीमी करने पर पता चला वे खिचड़ी खाने को कह रहीं थीं। हमने हाथ जोड़ के मना किया और आगे बढ़ गए।
रास्ते में 'हनाहन' गन्ने के रस और जामुन के सिरके का बोर्ड दिखा। नए तरह का नाम देखकर उतरकर रस पिया। नाम के बारे में पता किया। बैकुंठपुर गाँव के उमाशंकर त्रिवेदी(लाला जी) ने यह नाम रखा था। 25 साल पहले। नामकरण में आम लोगों की प्रतिभा ज़बरदस्त है।
गंगा किनारे भीड़ नहीं थी। सौ-पचास लोग नहाते दिखे। लगता है सब संगम निकल लिए।
एक परिवार वहीं नहाने के बाद पूड़ी सब्ज़ी खा रहा था। एक महिला अपने पति की दिया जला के दे रही थी, गंगा में सिराने के लिए। एक बच्ची एक तख़्त पर खड़े होकर सेल्फ़ी मोड में फ़ोटो ले रही थी। एक आदमी कपड़े उतारकर दौड़ता हुआ गंगा की तरफ़ बढ़ा। किनारे तक पहुँचकर ठिठक गया। नदी से नहाकर निकले एक आदमी से पूछा, 'पानी ठंडा है?' नदी से निकले आदमी ने अंगौछे से बदन पोंछते हुए कहा, 'बहुत ठंडा है।'
वह आदमी ठिठुरकर किनारे खड़ा रहा। बाद में आहिस्ते-आहिस्ते, ठिठुरते-ठिठुरते नदी में सहमते हुए घुसा। हड़बड़ा के डुबकी लगा के वापस हो लिया।
नदी से नहाकर निकले आदमी से बतियाए तो पता चला कि बाराबंकी शहर के सिलौटा गाँव के रहने वाले हैं। पाँच लोग निकले थे घूमने। त्रयम्बकेश्वर, महकालेश्वर, सोमनाथ होते हुए कल उज्जैन में शिप्रा स्नान करके आज ही कानपुर पहुँचे बिठूर में गंगा स्नान करने।
पंद्रह दिन में कई तीर्थों की यात्रा करके अब वे लोग वापस लौटेंगे अपने गाँव। सभी सिलौटा के रहने वाले हैं। छह महीने पहले केदारनाथ गए थे घूमने। घुमक्कड़ी के तमाम किस्से,अनुभव बताए उन लोगों ने। बताया नर्मदा का पानी इतना साफ़ है कि नीचे तल पर गिरा सिक्का तक दिखता है।
इनकी यात्रा की प्रेरणा पुरुष प्राइमरी स्कूल में अध्यापक हैं। वे भी साथ में थे। जैसे ही छुट्टी मिली, निकल पड़ते हैं घूमने। जाड़े में छुट्टी हुई गुरुजी की, निकल लिए।
घूमने के लिए कहीं रिज़र्वेशन नहीं कराते ये लोग। रिज़र्वेशन से बंधन हो जाता है। ऐसे जब मन किया चल दिए, जब मन किया चल दिए।
नहाने के बाद उनमें से एक ने शंख बजाया। हमने वीडियो बनाया तो उन्होंने कहा ये भई बढ़िया बजाते हैं। हमने उनका भी वीडियो बना लिया। वे लोग बता रहे थे कि आज यहीं रुकेंगे। खिचड़ी बनाएँगे नदी किनारे। सब सामान साथ है। हमको लगा, ये होती है घुमक्कड़ी।
वहीं एक पंडित क़रीब दस लोगों को अपने चारों तरफ़ बैठाए कोई पूजा करा रहा था। वह कह रहा था लोग सुन रहे थे। हमने भी दूर खड़े होकर सुना,'जैसे हम बता रहे,वैसा करते जाओ।'
वहीं नदी किनारे बना टिकैत राय का बनवाया शिवमंदिर देखा। टिकैत राय लखनऊ के नवाब गाजीउद्धीन हैदर (1814-1827) के मंत्री थे। उन्होंने यह मंदिर बनवाया था। मंदिर में कुछ लोग पूजा कर रहे थे। तमाम लोग फ़ोटोबाज़ी करते भी दिखे। अलग-अलग पोज में फ़ोटो। लोग अपने-अपने जोड़ीदारों के अलग-अलग स्टाइल में फ़ोटो खींच रहे थे। एक लड़की मंदिर के आले में मोबाइल रख अपना सेल्फ़ी वीडियो बना रही थी। शिव मंदिर के आगे शिव वाहन भी टहलते दिखे। हमने उनकी फ़ोटो ली। वे वहीं चहलक़दमी करते रहे। अपन कुछ और फ़ोटो खींचकर नीचे आ गए।
नदी किनारे कुछ दान पात्र भी दिखे। एक में इलाक़े भी लिखे थे। 'जालौन,झाँसी,भिंड, हमीरपुर, उन्नाव,रायबरेली, हरदोई आदि' के लिए रखे दानपात्र में 'आदि' की आड़ में कोई भी दान दे सकता है। दान के लिए उत्साहित करने के लिए लिखा था :
"तुलसी पक्षी के पिए घटे न सरिता नीर। दान लिए धन न घटे, जो सहाय रघुवीर।"
चूँकि कानपुर वालों के लिए दानपात्र लागू नहीं था इसलिए हम ऐसे ही आगे बढ़ लिए। पैसे बचे।
नदी किनारे कुछ पक्षी बैठे थे। थोड़ी-थोड़ी देर में वे अचानक उड़ान भरने लगते। जैसे उड़ान अभ्यास कर रहे हों। थोड़ा उड़कर फिर वापस नदी किनारे बैठ जाते।
वहीं नदी किनारे एक चाय की दुकान पर चाय पी गयी। दस रुपए की एक चाय। थोड़ी देर और गंगा नदी की संगत में रहकर वापस लौट आए। अभी नदी की संगत टैक्स फ्री है। पता नहीं कब इसपर भी टैक्स लग जाए। जीएसटी अलग से।
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