पिछले महीने दो किताबें प्रकाशित हुई। 'बेवकूफ़ी का सफ़र' और ' पुलिया पर ज़िंदगी।' बेवकूफ़ी का सफ़र में शामिल पोस्ट्स का अंतराल 2010 से 2024 तक है। इसमें ट्रेन और हवाई यात्राओं के 37 किस्से शामिल हैं। 'पुलिया पर ज़िंदगी' में दिसम्बर 2014 से लेकर जुलाई 2016 मतलब लगभग डेढ़ साल के समय के 54 किस्से हैं। दो किस्से 2024 में जुड़े इस तरह किताब में कुल 56 किस्से हैं।
' पुलिया पर ज़िंदगी' के लेख तिथिवार हैं। फ़ेसबुक में लिखे क़िस्सों में इकट्ठा करके किताब बनाई गयी है। एक दिन उत्सुकता हुई कि देखें इन क़िस्सों को कितने लोगों ने पढ़ा है, कितने लोगों ने टिप्पणी की है और कितने साझा हुए हैं। सारी पोस्ट्स को देखने पर यह तो ठीक-ठीक नहीं पता चला कि कितने लोगों ने पढ़ी हैं पोस्ट्स लेकिन लाइक, टिप्पणी से और साझा से अंदाज़ा लगा कौन सी पोस्ट कितने लोगों ने पसंद की। लाइक, टिप्पणी और साझा करने का विवरण निम्नवत है :
लाइक : 8009
टिप्पणी: 1658
शेयर : 118
इन टिप्पणियों में से कुछ टिप्पणियाँ मेरी भी हैं। इस लिहाज़ से देखा जाए तो लगभग 1200 -1400 टिप्पणियाँ 'पुलिया पर ज़िंदगी' की अलग-अलग पोस्ट्स पर मित्रों ने की होंगी।
टिप्पणी, लाइक्स और शेयर के मुक़ाबले अगर किताबों की बिक्री का आँकड़ा देखा जाए तो दोनों मिलाकर अभी तक कुल 52 किताबें बिकी हैं (बेवकूफ़ी का सफ़र 38 , पुलिया पर ज़िंदगी 14)। इस बिक्री से अभी तक कुल जमा 1652.50 पैसे रायल्टी के जमा हुए हैं।
ये सारे आँकड़े हमें इसलिए मिल गए क्योंकि किताबें हमने सेल्फ़ पब्लिशिंग मोड में प्रकाशित हैं। किसी प्रकाशन से प्रकाशित करते तो पता चलना मुश्किल होता कि कितनी किताबें छपी, कितनी बिकीं।
कई किताबों पर लिखा होता है दो माह में तीन संस्करण, तीन माह में पाँच संस्करण। लेकिन उनमें यह नहीं लिखा होगा कि किसी संस्करण में किताबें कितनी छपी?
कई प्रकाशक नए लेखकों की किताबें छापते हैं तो कहते हैं , पहले संस्करण में रायल्टी नहीं देंगे, रायल्टी 200-300 किताबों के बिकने के बाद देंगे। क्यों भई, पहले क्यों नहीं ? रायल्टी में कोई ख़ज़ाना थोड़ी लुटा दे रहे। प्रकाशकों की बिक्री की समस्या और अन्य खर्चे होते हैं। लेकिन लेखक को रायल्टी बिल्कुल न देना समझ नहीं आता।
मेरी अभी तक कुल जमा नौ किताबें छपी हैं। उनमें तीन सेल्फ़ पब्लिशिंग के तहत। पहली किताब (पुलिया पर दुनिया) ही मेरी स्व प्रकाशित थी। उसमें लगभग 2000 रुपए रायल्टी मिली। इसके बाद की सात किताबों पर 'प्रकाशक मित्र ' कोई रायल्टी नहीं दे पाए । अलबत्ता दो किताबों पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से कुल मिलाकर एक लाख पंद्रह हज़ार का सम्मान ज़रूर मिला।
अब मैंने तय किया है आगे किताबें या तो सेल्फ़ पब्लिशिंग से प्रकाशित करूँगा या रायल्टी की गारंटी पर।
सेल्फ़ पब्लिशिंग के बारे में किसी मित्र को कोई जानकारी या सलाह लेनी हो तो निस्संकोच सम्पर्क कर सकता है।
मेरी हाल में प्रकाशित किताबों को ख़रीदने के विवरण वाली पोस्ट का लिंक टिप्पणी में दिया है।
https://www.facebook.com/share/p/15Px5Y3fcn/
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