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सी.बी.आई. की मरन
By फ़ुरसतिया on June 13, 2013
आजकल सीबीआई
की मरन है. जहां कोई घपला-घोटाला सामने आता है, उसकी जांच सीबीआई को सौंप
दी जाती है. कोई उच्चस्तरीय अपराध हुआ, जांच की फ़ाइल सीबीआई को थमा दी जाती
है. समाज के हिसाब से घपले बढ़ते जा रहे हैं, अपराध पेंचदार हो रहे हैं.
सीबीआई का काम बढ़ता जा रहा है. हाल यह है कि सीबीआई वाले कहते हैं– काम के
बोझ का मारा, सीबीआई का इंस्पेक्टर बेचारा.
जांच का हाल यह है कि जो जांच सी.बी.आई. धीरे करती है वहां डांट पड़ती है- इत्ते धीमे! अपराधियों को बचा रहे हो? जहां स्पीड पकड़ते हैं वहां धिक्कारा जाता है- सरपट जांच का क्या मतलब है! भले आदमियों को फ़ंसाना चाहते हो. सीबीआई से कभी किसी केस के लिये पूछा जाता है, कभी किसी दूसरे के लिये. कभी सरकार हड़काती है कभी अदालत. कभी बेचारी समझ नहीं पाती कि किसको पहले करे किसको बाद में.
सीबीआई के हाल चाय की दुकान पर काम करने वाले लौंडे सरीखी है. कोई उससे चाय मांगता है, कोई पानी, कोई बगल की दुकान से दौड़ के सिगरेट लाने को कहता है. वह सबकी मांग पूरा करनी की कोशिश करती है. लेकिन सबसे डांटी जाती है. करेला ऊपर से नीम चढ़ा यह कि बीच-बीच में कोई सीबीआई वाला ही लेते-देते पकड़ा जाता है. उसके खिलाफ़ भी सीबीआई को ही केस दाखिल करना पड़ता है. कित्ता हृदयविदारक काम है अपने ही लोगों के खिलाफ़ जांच करना. वह भी विभाग के दस्तूर के अनुसार काम करने पर.
कुछ सालों पहले तक लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजते थे. अब सब कान्वेंट में ठेलते हैं. कोई पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर गया लेकिन लगता है पिताओं को कि बच्चा कान्वेंट में पढ़ रहा है. वही हाल पुलिस के हैं. पहले पुलिस की जांच काफ़ी मानी जाती थी. लेकिन अब आम पुलिस के जांच की रेपुटेशन सरकारी स्कूल सरीखी हो गयी है. कोई आम पुलिस से जांच नहीं कराना चाहता. सब सीबीआई की जांच मांगते हैं. यह बात अलग है कि जांच की गति और स्तर में कोई सुधार नहीं आया. सीबीआई जांच हैवी डोज पेन किलर सरीखी है. मर्ज तो नहीं जाता लेकिन दवा मिलते ही आराम महसूस होता है.
हनुमान जी जब सीता जी की खोज के लिये लंका पहुंचे तो वहां विभीषण मिले. विभीषण ने हनुमान जी से अपने हाल बयान करते हुये कहा- सुनहु पवनसुत रहनि हमारी. जिमि दशनन्हिं महुं जीभ बिचारी.
आज के सीबीआई हाल बयान करते हुये कलयुगी कवि कट्टा कानपुरी लिखते हैं:
सुनहु यार तुम रहनि हमारी.
जिमि पुलिसन महुं CBI बेचारी।
जो कहुं होय घपला-घोटाला,
सब कहैं जांच करौ तुम लाला।
एक जांच फ़िर दूसरि आवै.
सब रिजल्ट हित रार मचावैं।
जो कोई जांच फ़ाइनल होई
कहैं देव यहिका धरौ लुकाई।
खबरदार जो तुम रपट छपावा
अगला डेपुटेशन नहिं पावा।
काम करौ जस ढ़ाबे का बबुआ.
बने रहो पिंजरे का पटुआ।
दाल भात मिलती रहे, कभी मिले यदि खीर,
गाड़ी, भत्ता मिलता रहे, होंय सहाय रघुवीर।
-कट्टा कानपुरी
जांच का हाल यह है कि जो जांच सी.बी.आई. धीरे करती है वहां डांट पड़ती है- इत्ते धीमे! अपराधियों को बचा रहे हो? जहां स्पीड पकड़ते हैं वहां धिक्कारा जाता है- सरपट जांच का क्या मतलब है! भले आदमियों को फ़ंसाना चाहते हो. सीबीआई से कभी किसी केस के लिये पूछा जाता है, कभी किसी दूसरे के लिये. कभी सरकार हड़काती है कभी अदालत. कभी बेचारी समझ नहीं पाती कि किसको पहले करे किसको बाद में.
सीबीआई के हाल चाय की दुकान पर काम करने वाले लौंडे सरीखी है. कोई उससे चाय मांगता है, कोई पानी, कोई बगल की दुकान से दौड़ के सिगरेट लाने को कहता है. वह सबकी मांग पूरा करनी की कोशिश करती है. लेकिन सबसे डांटी जाती है. करेला ऊपर से नीम चढ़ा यह कि बीच-बीच में कोई सीबीआई वाला ही लेते-देते पकड़ा जाता है. उसके खिलाफ़ भी सीबीआई को ही केस दाखिल करना पड़ता है. कित्ता हृदयविदारक काम है अपने ही लोगों के खिलाफ़ जांच करना. वह भी विभाग के दस्तूर के अनुसार काम करने पर.
कुछ सालों पहले तक लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ने भेजते थे. अब सब कान्वेंट में ठेलते हैं. कोई पढ़ाई का स्तर नहीं सुधर गया लेकिन लगता है पिताओं को कि बच्चा कान्वेंट में पढ़ रहा है. वही हाल पुलिस के हैं. पहले पुलिस की जांच काफ़ी मानी जाती थी. लेकिन अब आम पुलिस के जांच की रेपुटेशन सरकारी स्कूल सरीखी हो गयी है. कोई आम पुलिस से जांच नहीं कराना चाहता. सब सीबीआई की जांच मांगते हैं. यह बात अलग है कि जांच की गति और स्तर में कोई सुधार नहीं आया. सीबीआई जांच हैवी डोज पेन किलर सरीखी है. मर्ज तो नहीं जाता लेकिन दवा मिलते ही आराम महसूस होता है.
हनुमान जी जब सीता जी की खोज के लिये लंका पहुंचे तो वहां विभीषण मिले. विभीषण ने हनुमान जी से अपने हाल बयान करते हुये कहा- सुनहु पवनसुत रहनि हमारी. जिमि दशनन्हिं महुं जीभ बिचारी.
आज के सीबीआई हाल बयान करते हुये कलयुगी कवि कट्टा कानपुरी लिखते हैं:
सुनहु यार तुम रहनि हमारी.
जिमि पुलिसन महुं CBI बेचारी।
जो कहुं होय घपला-घोटाला,
सब कहैं जांच करौ तुम लाला।
एक जांच फ़िर दूसरि आवै.
सब रिजल्ट हित रार मचावैं।
जो कोई जांच फ़ाइनल होई
कहैं देव यहिका धरौ लुकाई।
खबरदार जो तुम रपट छपावा
अगला डेपुटेशन नहिं पावा।
काम करौ जस ढ़ाबे का बबुआ.
बने रहो पिंजरे का पटुआ।
दाल भात मिलती रहे, कभी मिले यदि खीर,
गाड़ी, भत्ता मिलता रहे, होंय सहाय रघुवीर।
-कट्टा कानपुरी
Posted in बस यूं ही | 5 Responses
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