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गठबंधन तोड़ने के लिये मुशायरा
By फ़ुरसतिया on June 16, 2013
गठबंधन बस टूटने ही वाला है.उसे टूटने से कोई बचा नहीं सकता। अपरिहार्य है इसका टूटना –लगातार इस आशय की खबरें आ रही हैं।
लोग बेसब्री से इंतजार में हैं टूटने की घोषणा सुनने के लिये। लेकिन टूटने में देरी हो रही है।
पता चला कि गठबंधन में शामिल दल के प्रवक्ता गठबंधन टूटने के मौके पर बोलने के लिये शेर याद कर रहे हैं। टूटने की घड़ी को शायराना बनाना चाहते हैं। बारिश के मौके में मौसम आशिकाना हो गया है। शायद इसीलिये विदाई शायराना अंदाज में करने को उतावले हैं लोग।
मुशायरे के लिये तैयार होते शायर शेरवानी, अचकन, टोपी धारण करके तैयार होते हैं। गठबंधन तोड़ने के लिये नेता लोग शायरी रट रहे हैं। अपने चमचों को दौड़ा रहे हैं- जा बे कोई उम्दा शायरी जुगाड़कर ला, गठबंधन तोड़ना है।
एक छुटभैया दौड़ के गया और शायरी की किताब से एक ठो शेर नोट करके ले आया:
नई साहब इसका मतलब है कि आपको समर्थन तो दे रहे हैं लेकिन चाहते हैं कि सरकार आपकी गिर जाये। नेता जी समझ गये। शेर रटन लगे।
इस बीच शेर लीक हो गया। अगली पार्टी के नेता जी ने चेले को दौड़ाया किसी शाइर से इसकी काट वाला शेर लेकर आओ फ़टाक से। चेला हांफ़ता हुआ शेर लाया:
दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
फ़िर कभी जब दोस्त बन जाये तो शर्मिंदा न हों।
शेर सुनते ही नेता जी बमक गये। गठबंधन तोड़ते समय फ़िर दोस्ती की बात करना बेवकूफ़ी की बात नहीं समझेंगे लोग?
अरे राजनीति में कौन स्थायी दोस्त/दुश्मन होता है साहब। इस शेर से आपका मुस्लिम वोट बैंक मजबूत होगा क्योंकि यह शेर एक बड़े मुस्लिम शायर ने कहा है।
नेता जी खुश होकर घूम-घूम कर शेर रटने लगे. तब तक एक और चेला लपक एक और शेर सुनाने लगा:
दूसरी तरफ़ के नेता जी भी गठबंधन तोड़ने के समय पढ़ने वाले शेर तैयार कर रहे हैं। उनको लगा कि राजनीति में किसी का कोई भरोसा नहीं है। क्या पता पत्ते कमजोर रह जाये और उनको पीछे हटकर गठबंधन बनाये रखने के लिये अनु्रोध करना पड़े। मंशा जाहिर करते ही उनके सामने वसीम बरेलवी साहब का शेर पेश किया गया:
एक समझदार शागिर्द ने सलाह दी। साहब अगर आप शेरो शायरी ही करते रहे तो कहीं हिन्दू वोट बैंक न बिदक जाये। इसलिये एकाध कविता भी याद कर लीजिये। अब कविता की खोज मजी जिसमें टूटने, बिखरने, धोखे बाजी और अलग होने के भाव हों। बड़ी मश्किल से एक कविता मिली:
फ़ाइनल शेर दोनों दल वाले यही सोचकर आये हैं:
फ़साना जिसे अंजाम तक पहुंचाना न हो मुमकिन,
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।
शेर बहुत इकट्ठा हो गये थे। अब दोनों दल के लोग गठबंधन तोड़ने के लिये निकल चुके हैं। कभी भी मंच पर आकर गठबंधन मुक्ति मुशायरा शुरु हो सकता है।
क्या पता गठबंधन टूटने पर लोग आपस में बधाई देते हुये कहें- वाह साहब, आपने तो गठबंधन लूट लिया।
उसके बाद टी.वी. इस मुद्दे पर चैनल चर्चा करेंगे। विषय होगा- कवियों/शायरों की मुख्यधारा में वापसी।
लोग बेसब्री से इंतजार में हैं टूटने की घोषणा सुनने के लिये। लेकिन टूटने में देरी हो रही है।
पता चला कि गठबंधन में शामिल दल के प्रवक्ता गठबंधन टूटने के मौके पर बोलने के लिये शेर याद कर रहे हैं। टूटने की घड़ी को शायराना बनाना चाहते हैं। बारिश के मौके में मौसम आशिकाना हो गया है। शायद इसीलिये विदाई शायराना अंदाज में करने को उतावले हैं लोग।
मुशायरे के लिये तैयार होते शायर शेरवानी, अचकन, टोपी धारण करके तैयार होते हैं। गठबंधन तोड़ने के लिये नेता लोग शायरी रट रहे हैं। अपने चमचों को दौड़ा रहे हैं- जा बे कोई उम्दा शायरी जुगाड़कर ला, गठबंधन तोड़ना है।
एक छुटभैया दौड़ के गया और शायरी की किताब से एक ठो शेर नोट करके ले आया:
दुआ करते हैं जीने कीनेता जी बोले क्या ये किसी नर्सिंग होम का किस्सा है? डॉक्टर बचाने की कोशिश भी कर रहा है लेकिन सोच रहा है मरीज निपटे तो अगले को बिस्तर अलॉट करें।
पर दवा करते हैं मरने की।
नई साहब इसका मतलब है कि आपको समर्थन तो दे रहे हैं लेकिन चाहते हैं कि सरकार आपकी गिर जाये। नेता जी समझ गये। शेर रटन लगे।
इस बीच शेर लीक हो गया। अगली पार्टी के नेता जी ने चेले को दौड़ाया किसी शाइर से इसकी काट वाला शेर लेकर आओ फ़टाक से। चेला हांफ़ता हुआ शेर लाया:
हम दुआ भी करते हैं, दवा भीमतलब बताया कि ये गठबंधन पार्टी के शेर का जबाबी शेर है। नेता जी ने रट लिया। इस बीच किसी ने सुझाया कि कुछ और शेर याद कर लिये जायें ताकि मुकाबले में कमजोर न पड़ें। शेर इकट्ठा होने लगे। उसके मतलब भी नेताजी को समझाते जा रहे थे उनके चेले। देखिये कौन-कौन से शेर तैयार हो रहे हैं:
पर दगा नहीं देते।
दुश्मनी जमकर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
फ़िर कभी जब दोस्त बन जाये तो शर्मिंदा न हों।
शेर सुनते ही नेता जी बमक गये। गठबंधन तोड़ते समय फ़िर दोस्ती की बात करना बेवकूफ़ी की बात नहीं समझेंगे लोग?
अरे राजनीति में कौन स्थायी दोस्त/दुश्मन होता है साहब। इस शेर से आपका मुस्लिम वोट बैंक मजबूत होगा क्योंकि यह शेर एक बड़े मुस्लिम शायर ने कहा है।
नेता जी खुश होकर घूम-घूम कर शेर रटने लगे. तब तक एक और चेला लपक एक और शेर सुनाने लगा:
एक जरा सी बात पर वर्षों के याराने गये,नेताजी चेले की तरफ़ देखकर गुर्राये- यहां हमारी सरकार दांव पर लगी है और तुमको ये जरा सी बात लग रही है। चेले ने सहमते हुये कहा -साहब शेरो शायरी में ऐसा ही होता है। आप डाल लीजिये अपनी जेब में। पढेंगे तो ऐसा लगेगा कोई शहादत वाली बात कह रहे हैं।
पर चलो अच्छा हुआ कुछ लोग पहचाने गये।
दूसरी तरफ़ के नेता जी भी गठबंधन तोड़ने के समय पढ़ने वाले शेर तैयार कर रहे हैं। उनको लगा कि राजनीति में किसी का कोई भरोसा नहीं है। क्या पता पत्ते कमजोर रह जाये और उनको पीछे हटकर गठबंधन बनाये रखने के लिये अनु्रोध करना पड़े। मंशा जाहिर करते ही उनके सामने वसीम बरेलवी साहब का शेर पेश किया गया:
शर्तें लगायी नहीं जाती दोस्तों के साथ,नेता जी ने शेर नोट कर लिया लेकिन बोले इसकी दूसरी लाइन हम अपने हिसाब से सुधार के पढेंगे और कहेंगे:
कीजै मुझे कुबूल मेरी हर कमी के साथ।
शर्तें लगायी नहीं जाती दोस्तों के साथ,शागिर्दों ने नेताजी के शायरी के हुनर की दाद देते हुये वाह-वाह की। नेता जी ने सर पर हाथ ले जाकर सलाम करते हुये दाद कुबूल की।
तू है मुझे कुबूल तेरी हर कमी के साथ।
एक समझदार शागिर्द ने सलाह दी। साहब अगर आप शेरो शायरी ही करते रहे तो कहीं हिन्दू वोट बैंक न बिदक जाये। इसलिये एकाध कविता भी याद कर लीजिये। अब कविता की खोज मजी जिसमें टूटने, बिखरने, धोखे बाजी और अलग होने के भाव हों। बड़ी मश्किल से एक कविता मिली:
जिस तट पर प्यास बुझाने से अपमान प्यास का होता हो,मतलब जिसके समर्थन से सरकार बनाने में बेइज्जती खराब होती हो तो सरकार बनाने से अच्छा अपोजीशन में बैठना अच्छा है।
उस तट पर प्यास बुझाने से प्यासा रह जाना बेहतर है।
फ़ाइनल शेर दोनों दल वाले यही सोचकर आये हैं:
फ़साना जिसे अंजाम तक पहुंचाना न हो मुमकिन,
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा।
शेर बहुत इकट्ठा हो गये थे। अब दोनों दल के लोग गठबंधन तोड़ने के लिये निकल चुके हैं। कभी भी मंच पर आकर गठबंधन मुक्ति मुशायरा शुरु हो सकता है।
क्या पता गठबंधन टूटने पर लोग आपस में बधाई देते हुये कहें- वाह साहब, आपने तो गठबंधन लूट लिया।
उसके बाद टी.वी. इस मुद्दे पर चैनल चर्चा करेंगे। विषय होगा- कवियों/शायरों की मुख्यधारा में वापसी।
Posted in बस यूं ही | 6 Responses
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..दास्तान-ए-इस्तीफ़ा
गरज कि काट दिए कशमकश के दिन ये दोस्त
तुम जाने पे उतारू हो तो हम भी किनारा करते हैं
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भारतीय समाज की विवशताएँ!
विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..एक और क्रेडिट कार्ड
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..मैकबुक मिनी