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नदियां बड़ी तेज भन्नाई हुई हैं
By फ़ुरसतिया on June 18, 2013
बारिश
के मौसम में इंद्रदेव ने बरसने के लिये बादलों की ड्यूटी लगा दी. सबके
हिस्से का पानी एलाट कर दिया. सबको समय पर नियत जगह पर बरसने की हिदायत दे
दी.
पहले बादल जब बरसने के लिये निकलते थे तो विरहणियों के प्रेम संदेशे भी साथ लिये जाते थे. जैसे ट्रक के ड्राइवर केबिन में सवारी बैठाकर या कुछ छुटपुट लदाई करके चाय-पानी की कमाई कर लेते हैं, वैसे ही बादल लोग संदेशे लादकर कुछ कमा लेते थे. मोबाइल आ जाने -जाने उनका संदेशों का धंधा मंदा पड़ गया है. वे परेशान रहने लगे हैं. गुस्से में भन्नाये रहते हैं. भेजा कहीं के लिये जाता है, बरस कहीं और आते हैं. डांटे जाने पर कोई न कोई बहाना बना देते हैं. इंद्र देव भी बेचारे कोसते रहते हैं. उनको भी इन्ही बादलों से काम लेना है, स्थायी कर्मचारी हैं सब बादल, कोई गठबंधन तो है नहीं जो तोड़ देते.
इस बार भी कुछ बादल तो आदतन मुंबई के लिये फ़ूट लिये. उनको लगता है वहां सब हीरोइने ही रहती हैं. सोचते हैं उनको भिगोयेंगे. मजे करेंगे.
कुछ बादल दिल्ली फ़ूट लिये इस आशा में कि शायद मंत्रिमंडल फ़ेरबदल में कोई सीट मिल जाये. एयरपोर्ट पर ही पसर गये यह सोचकर कि यहीं से लोग उनको शपथग्रहण करवाने ले जायेंगे. एयरपोर्ट को बंदरगाह बना डाला.
कुछ बादल पहाड़ों की तरफ़ निकल लिये कि हिलस्टेशन पर तफ़रीह करने के बाद बरसेंगे.
बादलों को नीचे खाली जमीन दिखी. पहले वहां पेड़ हुआ करते थे. बादल खाली जमीन पर कब्जा करने के लालच में वहीं बरस पड़े. उनको भी पता है कि आज के जमाने में जमीन पर कब्जा करना सबसे फ़ायदे का धंधा है.
बादलों ने सोचा होगा कि जमीन पर कब्जा करके वे उसे ऊंचे भाव पर निकालेंगे लेकिन पहाड़ की ढलानों में उनके पांव फ़िसल गये और वे लुढकते-पुढकते, टूटते-फ़ूटते नीचे गिरते गये. उनके साथ मिट्टी,पहाड़, धरती भी धंसती गयी. बादलों का पानी नदियों में बदल गया.
नदियों ने जब पहाड़ों की हालत देखी तो वे गुस्से में बौखला गयीं. उनको यह देखकर बहुत गुस्सा आ गया कि लोगों ने पेड़ों को काटकर जमीन को नंगा कर दिया है, पक्के मकान बना लिये हैं, जंगल काट लिये हैं, पहाड़ को तबाह कर दिया है.
नदियां गुस्सा गयीं. अपना बुलडोजर लेकर हर जगह अतिक्रमण हटाने लगीं. जो भी उनके रास्ते में आया उसको धरासाई करते हुये वे हरहराती हुई आगे बढ रही हैं. खतरे के निशानों की अनदेखी करके उफ़ना रही हैं. हाहाकार मचा हुआ है. सब जगह छापा मार रही हैं.घर-घर में घुसकर वे तलाशी सी ले रही हैं कि लोगों ने पहाड़ के पेड़ काटकर कहां छिपाये हैं, क्या फ़र्नीचर बनवाये हैं. उनके हाल ऐसे हो रहे हैं:
नदियों को सॉरी बोलने से वे सुनेंगी क्या?
पहले बादल जब बरसने के लिये निकलते थे तो विरहणियों के प्रेम संदेशे भी साथ लिये जाते थे. जैसे ट्रक के ड्राइवर केबिन में सवारी बैठाकर या कुछ छुटपुट लदाई करके चाय-पानी की कमाई कर लेते हैं, वैसे ही बादल लोग संदेशे लादकर कुछ कमा लेते थे. मोबाइल आ जाने -जाने उनका संदेशों का धंधा मंदा पड़ गया है. वे परेशान रहने लगे हैं. गुस्से में भन्नाये रहते हैं. भेजा कहीं के लिये जाता है, बरस कहीं और आते हैं. डांटे जाने पर कोई न कोई बहाना बना देते हैं. इंद्र देव भी बेचारे कोसते रहते हैं. उनको भी इन्ही बादलों से काम लेना है, स्थायी कर्मचारी हैं सब बादल, कोई गठबंधन तो है नहीं जो तोड़ देते.
इस बार भी कुछ बादल तो आदतन मुंबई के लिये फ़ूट लिये. उनको लगता है वहां सब हीरोइने ही रहती हैं. सोचते हैं उनको भिगोयेंगे. मजे करेंगे.
कुछ बादल दिल्ली फ़ूट लिये इस आशा में कि शायद मंत्रिमंडल फ़ेरबदल में कोई सीट मिल जाये. एयरपोर्ट पर ही पसर गये यह सोचकर कि यहीं से लोग उनको शपथग्रहण करवाने ले जायेंगे. एयरपोर्ट को बंदरगाह बना डाला.
कुछ बादल पहाड़ों की तरफ़ निकल लिये कि हिलस्टेशन पर तफ़रीह करने के बाद बरसेंगे.
बादलों को नीचे खाली जमीन दिखी. पहले वहां पेड़ हुआ करते थे. बादल खाली जमीन पर कब्जा करने के लालच में वहीं बरस पड़े. उनको भी पता है कि आज के जमाने में जमीन पर कब्जा करना सबसे फ़ायदे का धंधा है.
बादलों ने सोचा होगा कि जमीन पर कब्जा करके वे उसे ऊंचे भाव पर निकालेंगे लेकिन पहाड़ की ढलानों में उनके पांव फ़िसल गये और वे लुढकते-पुढकते, टूटते-फ़ूटते नीचे गिरते गये. उनके साथ मिट्टी,पहाड़, धरती भी धंसती गयी. बादलों का पानी नदियों में बदल गया.
नदियों ने जब पहाड़ों की हालत देखी तो वे गुस्से में बौखला गयीं. उनको यह देखकर बहुत गुस्सा आ गया कि लोगों ने पेड़ों को काटकर जमीन को नंगा कर दिया है, पक्के मकान बना लिये हैं, जंगल काट लिये हैं, पहाड़ को तबाह कर दिया है.
नदियां गुस्सा गयीं. अपना बुलडोजर लेकर हर जगह अतिक्रमण हटाने लगीं. जो भी उनके रास्ते में आया उसको धरासाई करते हुये वे हरहराती हुई आगे बढ रही हैं. खतरे के निशानों की अनदेखी करके उफ़ना रही हैं. हाहाकार मचा हुआ है. सब जगह छापा मार रही हैं.घर-घर में घुसकर वे तलाशी सी ले रही हैं कि लोगों ने पहाड़ के पेड़ काटकर कहां छिपाये हैं, क्या फ़र्नीचर बनवाये हैं. उनके हाल ऐसे हो रहे हैं:
नदियां बड़ी तेज भन्नाई हुई हैं,सब लोग जीवनदायिनी नदियों का रौद्र रूप देखकर सहमे हुये हुयें है. बारिश का आशिकाना मौसम बहुतों के लिये कातिलाना, डरावना बना हुआ है. अपने किये की सजा भुगत रहे हैं हम लोग.
बारिश में उफ़नती,हरहराई हुई हैं. काट डाले हमने जंगल थोक में,
देखकर भयंकर तऊआई हुई हैं.
घरों में घुस के देख रहीं हैं सबके,
जो काटकर पेड़ कुर्सिंयां बनाई हुई हैं.
सारा अतिक्रमण ढहा रही हैं नदियां,
खुद का बुलडोजर लेकर आई हुई हैं.
नदियों को सॉरी बोलने से वे सुनेंगी क्या?
Posted in बस यूं ही | 8 Responses
बाकी…
नदियाँ बड़ी तेज़ भन्नाई हुई हैं ,
और पूड़ियाँ तेल में ग़दर नही हुई हैं !!!!
जय हो फुरसतिया बाबा की !!!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..हमार महल्ला !!!
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..गृह विज्ञान ..किसके लिए ?
खुद का बुलडोजर लेकर आई हुई हैं.
जोरदार
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भई यह पितृ दिवस ही है पितृ विसर्जन दिवस नहीं!
indian citizen की हालिया प्रविष्टी..पुलिस का रवैया
जो काटकर पेड़ कुर्सिंयां बनाई हुई हैं.
ये तो व्यंग्य का बाप निकला!
रौद्र रूप नदियों का कहर ढाए हुआ है
नदियों को पाट कर घर बनाने की जो की थी भारी भूल
मिटा कर इनका नामोनिशां कर देंगी सब धूल ही धूल