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देवलोक में अवतार चर्चा
By फ़ुरसतिया on June 15, 2013
देवलोक में अगले अवतार की चर्चा हो रही है। किस देवता को अगले अवतार के रूप में भारत भूमि में भेजा जाये।
रोज-रोज भारत भूमि से पुकार आ रही हैं। भक्त परेशान हैं। भगवान से कातर शिकायत कर रहे हैं। कब आयेंगे हमारा उद्धार करने। कुछ शिकायतें तो इत्ती तीखी थीं कि कुछ भगवानों को एक बारगी तो भक्त पर गुस्सा आ गया. उनका मन हुआ कि भक्त को रगड़ दें मानहानि के लिये। लेकिन उनको ध्यान आया वे तो भगवान हैं। भगवान लोग भक्तों पर गुस्सा नहीं कर सकते। मानहानि पर रगड़ देने का अधिकार तो केवल न्यायाधीशों के लिये सुरक्षित है।
चर्चा का विषय यह था कि अगला अवतार किस रूप में होगा।
एक देवता ने सुझाव दिया- अगला अवतार फ़िर वाराहावतार, मत्स्यावतार की तरह बाघावतार के रूप में होना चाहिये। इससे पृथ्वीलोक में बाघों की संख्या भी बढेगी और साथ में जंगल भी। पृथ्वीलोक में पर्यावरण की रक्षा होगी।
यह सुनते ही उसके विरोधी देवता ने टोक दिया- मुझे पता है कि आप “बाघ बचाओ, पर्यावरण बचाओ” का अभियान चलाने वाली कंपनी को फ़ायदा पहुंचाने के लिये यह सुझाव दे रहे हैं। लेकिन आप अब देवलोक में हैं। पृथ्वीलोक वाली यह हरकतें छोड़ दीजिये। यहां निर्णय निष्पक्ष लिये जाते हैं। किसी लोभ-लालच में नहीं।
कई लोगों का कहना था कि अगला अवतार मनुष्य योनि में ही होना चाहिये। लेकिन बात इस बात पर अटक गयी कि अवतार किस जाति में हो। हर जाति का देवता अपनी जाति में अवतार के लिये झगड़ने लगा।
जातियों पर जब बात चली तो सुझाव आया कि अवतार का चुनाव जाति के आधार पर होना चाहिये। जिस जाति के लोग सबसे ज्यादा परेशान,बदहाल हों उस जाति में अवतार होना चाहिये। इसी बहाने जाति की हालत सुधर जायेगी। लेकिन लफ़ड़ा यह हुआ कि जातियों के बारे में देवलोक में पूरे आंकड़े नहीं थे। कुछ देवता जातियों की बदहाली आर्थिक आधार पर तय करने के लिये अड़े थे, कुछ लोगों का मानना था कि बदहाली सामाजिक आधार पर देखी जाये।
अभी जाति के हिसाब से अवतार पर बहस चल ही रही थी कि एक देवता, जो कि देवता बनने के पहले कम्युनिस्ट नेता था, ने चिल्लाते हुये कहा- अगला अवतार जाति के हिसाब से नहीं वर्ग के हिसाब से तय होना चाहिये। जाति के हिसाब से अवतार चुने जाने का मैं कड़ा विरोध करता हूं। अपनी बात कहते-कहते देवता ने अपनी जेब से एक लाल रूमाल निकाल कर झंडे की तरह फ़हरा दिया।
कुछ देवियों ने एतराज किया अगले अवतार के लिये किसी देवता को नहीं किसी देवी को भेजा जाये. उन्होंने पृथ्वीलोक में स्त्रियों की बिगड़ते हाल के किस्से भी सुनाये।
उनके एतराज से सभी देवता सहमत थे लेकिन सबकी चिंता यही थी कि इस समय पृथ्वीलोक में हाल बड़े बेहाल हैं। देवी ने अगर अवतार लिया तो उसकी सुरक्षा का जिम्मा कौन लेगा।
देवियों ने एतराज किया कि पृथ्वीलोक में इत्ते सारे पुराने देवता पहले से ही मौजूद हैं. उनको देवी अवतार का जिम्मा सौपा जाये। देवी को ताकतें दी जायें। अवतार के लिये देवी को ही भेजा जाये।
इस पर कुछ देवताओं ने कहा कि पुराने देवता अगर अपना काम ठीक से करते तो पृथ्वी लोक के हाल इतने खराब क्यों होते? वे तो बस मंदिरों में बैठे हैं। चढ़ावा ले रहे हैं। जमीनों में कब्जा करवाने में बाहुबली भक्तों की सहायता कर रहे हैं। देवी को अवतार के रूप में भेजने का रिस्क नहीं लेना चाहिये। देवी अवतार के साथ कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गयी तो बेइज्जती खराब होगी देवलोक की।
इतने में एक देवता जो कि पृथ्वीलोक की खबरों पर निगाह रखता था ने देवसभा को बताया – आपके अवतार की पृथ्वीलोक में कोई जरूरत नहीं है। वे अपना भला करने के लिये अपना अगला प्रधानमंत्री चुनने में लगे हैं।जैसे ही उन्होने अगला प्रधानमंत्री चुन लिया उनके सारे कष्ट खत्म हो जायेंगे। देवलोक के अवतार की वहां कोई आवश्यकता ही नहीं है।
लेकिन अगर प्रधानमंत्री चुने जाने पर भी उनके कष्ट न खतम हुये तो क्या होगा? हम अपने भक्तों को फ़िर क्या जबाब देंगे? –एक जिम्मेदार से देवता ने सवाल किया।
अगर कष्ट न दूर हुये तो वे अपना अगला प्रधानमंत्री फ़िर चुनेंगे। वहां के सारे कष्टों का इलाज वहां का प्रधानमंत्री ही हो सकता है और कोई नहीं।
आगे की चर्चा के पहले ही बहस का संचालन करने वाले उद्घोषक ने “स्वल्पाहार-अंतराल” की घोषणा कर दी. सभागार में लगी स्क्रीन में उन कंपनियों के विज्ञापन चलने लगे जिन्होंने देवलोक में अवतार चर्चा का कार्यक्रम प्रायोजित किया था।
सभी देवगण अपने उत्तरीय, अंगवस्त्र संभाले हुये स्वल्पाहार के लिये हाल में पहुंच गये।
फ़ोटो फ़्लिकर से साभार!
रोज-रोज भारत भूमि से पुकार आ रही हैं। भक्त परेशान हैं। भगवान से कातर शिकायत कर रहे हैं। कब आयेंगे हमारा उद्धार करने। कुछ शिकायतें तो इत्ती तीखी थीं कि कुछ भगवानों को एक बारगी तो भक्त पर गुस्सा आ गया. उनका मन हुआ कि भक्त को रगड़ दें मानहानि के लिये। लेकिन उनको ध्यान आया वे तो भगवान हैं। भगवान लोग भक्तों पर गुस्सा नहीं कर सकते। मानहानि पर रगड़ देने का अधिकार तो केवल न्यायाधीशों के लिये सुरक्षित है।
चर्चा का विषय यह था कि अगला अवतार किस रूप में होगा।
एक देवता ने सुझाव दिया- अगला अवतार फ़िर वाराहावतार, मत्स्यावतार की तरह बाघावतार के रूप में होना चाहिये। इससे पृथ्वीलोक में बाघों की संख्या भी बढेगी और साथ में जंगल भी। पृथ्वीलोक में पर्यावरण की रक्षा होगी।
यह सुनते ही उसके विरोधी देवता ने टोक दिया- मुझे पता है कि आप “बाघ बचाओ, पर्यावरण बचाओ” का अभियान चलाने वाली कंपनी को फ़ायदा पहुंचाने के लिये यह सुझाव दे रहे हैं। लेकिन आप अब देवलोक में हैं। पृथ्वीलोक वाली यह हरकतें छोड़ दीजिये। यहां निर्णय निष्पक्ष लिये जाते हैं। किसी लोभ-लालच में नहीं।
कई लोगों का कहना था कि अगला अवतार मनुष्य योनि में ही होना चाहिये। लेकिन बात इस बात पर अटक गयी कि अवतार किस जाति में हो। हर जाति का देवता अपनी जाति में अवतार के लिये झगड़ने लगा।
जातियों पर जब बात चली तो सुझाव आया कि अवतार का चुनाव जाति के आधार पर होना चाहिये। जिस जाति के लोग सबसे ज्यादा परेशान,बदहाल हों उस जाति में अवतार होना चाहिये। इसी बहाने जाति की हालत सुधर जायेगी। लेकिन लफ़ड़ा यह हुआ कि जातियों के बारे में देवलोक में पूरे आंकड़े नहीं थे। कुछ देवता जातियों की बदहाली आर्थिक आधार पर तय करने के लिये अड़े थे, कुछ लोगों का मानना था कि बदहाली सामाजिक आधार पर देखी जाये।
अभी जाति के हिसाब से अवतार पर बहस चल ही रही थी कि एक देवता, जो कि देवता बनने के पहले कम्युनिस्ट नेता था, ने चिल्लाते हुये कहा- अगला अवतार जाति के हिसाब से नहीं वर्ग के हिसाब से तय होना चाहिये। जाति के हिसाब से अवतार चुने जाने का मैं कड़ा विरोध करता हूं। अपनी बात कहते-कहते देवता ने अपनी जेब से एक लाल रूमाल निकाल कर झंडे की तरह फ़हरा दिया।
कुछ देवियों ने एतराज किया अगले अवतार के लिये किसी देवता को नहीं किसी देवी को भेजा जाये. उन्होंने पृथ्वीलोक में स्त्रियों की बिगड़ते हाल के किस्से भी सुनाये।
उनके एतराज से सभी देवता सहमत थे लेकिन सबकी चिंता यही थी कि इस समय पृथ्वीलोक में हाल बड़े बेहाल हैं। देवी ने अगर अवतार लिया तो उसकी सुरक्षा का जिम्मा कौन लेगा।
देवियों ने एतराज किया कि पृथ्वीलोक में इत्ते सारे पुराने देवता पहले से ही मौजूद हैं. उनको देवी अवतार का जिम्मा सौपा जाये। देवी को ताकतें दी जायें। अवतार के लिये देवी को ही भेजा जाये।
इस पर कुछ देवताओं ने कहा कि पुराने देवता अगर अपना काम ठीक से करते तो पृथ्वी लोक के हाल इतने खराब क्यों होते? वे तो बस मंदिरों में बैठे हैं। चढ़ावा ले रहे हैं। जमीनों में कब्जा करवाने में बाहुबली भक्तों की सहायता कर रहे हैं। देवी को अवतार के रूप में भेजने का रिस्क नहीं लेना चाहिये। देवी अवतार के साथ कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गयी तो बेइज्जती खराब होगी देवलोक की।
इतने में एक देवता जो कि पृथ्वीलोक की खबरों पर निगाह रखता था ने देवसभा को बताया – आपके अवतार की पृथ्वीलोक में कोई जरूरत नहीं है। वे अपना भला करने के लिये अपना अगला प्रधानमंत्री चुनने में लगे हैं।जैसे ही उन्होने अगला प्रधानमंत्री चुन लिया उनके सारे कष्ट खत्म हो जायेंगे। देवलोक के अवतार की वहां कोई आवश्यकता ही नहीं है।
लेकिन अगर प्रधानमंत्री चुने जाने पर भी उनके कष्ट न खतम हुये तो क्या होगा? हम अपने भक्तों को फ़िर क्या जबाब देंगे? –एक जिम्मेदार से देवता ने सवाल किया।
अगर कष्ट न दूर हुये तो वे अपना अगला प्रधानमंत्री फ़िर चुनेंगे। वहां के सारे कष्टों का इलाज वहां का प्रधानमंत्री ही हो सकता है और कोई नहीं।
आगे की चर्चा के पहले ही बहस का संचालन करने वाले उद्घोषक ने “स्वल्पाहार-अंतराल” की घोषणा कर दी. सभागार में लगी स्क्रीन में उन कंपनियों के विज्ञापन चलने लगे जिन्होंने देवलोक में अवतार चर्चा का कार्यक्रम प्रायोजित किया था।
सभी देवगण अपने उत्तरीय, अंगवस्त्र संभाले हुये स्वल्पाहार के लिये हाल में पहुंच गये।
फ़ोटो फ़्लिकर से साभार!
Posted in बस यूं ही, व्यंग्य | 8 Responses
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..दास्तान-ए-इस्तीफ़ा
वैसे हिन्दी ब्लागजगत में इन्द्रपुरी से उबी कई देवियों ने अंतरिम अवतार लिया था मगर यहाँ से भी एक एक कर अन्यान्य कारणों से वापस जा रही हैं -भक्तगण दुखी हैं
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भारतीय समाज की विवशताएँ!
गिरीश बिल्लोरे मुकुल की हालिया प्रविष्टी..अब अन्ना हाशिये पर हैं…….?
ब्लागावतार= ब्लागरावतार
गिरीश बिल्लोरे मुकुल की हालिया प्रविष्टी..अब अन्ना हाशिये पर हैं…….?
Interesting and Entertaining
Panchhi की हालिया प्रविष्टी..Fathers Day Poem in Hindi
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