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बाढ की रिपोर्टिंग के तरीके
By फ़ुरसतिया on June 20, 2013
चैनल गुरु अपने चेलों को बाढ़ की रिपोर्टिंग के तरीके सिखा रहे हैं. वे बता रहे हैं:
किसी भी अन्य न्यूज की तरह चैनलों के लिये बाढ़ भी एक सूचना है. एक घटना है. एक उत्पाद है. अगर कहीं बाढ़ आती है तो अपन को यह देखना है कि कितने प्रभावी तरीके से इसको कवर करते हैं.
सबसे पहले तो यह समझिये कि बाढ़ की गरिमा उसकी भयावहता है में है. जित्ता भयानक दिखाया जा सकता है उतनी ही सफ़ल प्रभावी उसकी रिपोर्टिंग है. इसके लिये कई तरीके हैं. बेस्ट तो ये होगा कि आप लाइव रिपोर्टिंग करिये. सीधे चट्टान, पत्थर, पेड़ तेजी से गिरते दिखाइये, पानी हरहराता हुआ दिखाइये, पेड़ पर लटके लोग दिखाइये, सड़क के बीच भरे पानी में जाते हुये लोग दिखाइये. उनके चेहरे पर फ़ोकस करिये अगर वे डरे, सहमें से दिख सकें, दिखाइये.लोगों को बोलते हुये दिखाइये. किसी की पूरी बात नहीं. बस इत्ता दिखाइये जिससे कि लगे वे फ़ंसे हैं, डरे हैं, भयभीत है. सब तरफ़ भय का संचार कीजिये. आसपास का सब कुछ जल मग्न दिखाइये. हो सके तो दिखाइये कि बाढ़ के पहले वहां इत्ती इमारतें थीं, बाढ में सब डूब गया यह दिखाइये. दोनों फोटुओं को अगर-बगल रखकर चलाइये. कन्ट्रास्ट ज्यादा इफ़ेक्टिव होता है.
इसके बाद फ़ौरन सरकारी अमले को कोसने के काम में लग जाइये. बाढ़ रात को आई. सरकार अभी तक सो रही है. एकाध मंत्री के गैरजिम्मेदाराना बयान दिखा दीजिये. कुछ न हो तो यह बताइये कि बाढ़ के बारे में जिले में कोई सूचना देने वाला नहीं है. सरकार को जित्ता कोसियेगा उत्ता ही ज्यादा विज्ञापन मिलने की गुंजाइश बनेगी.
अगर आपके पास अपने दिखाने के लिये सीन न हों तो दूसरे चैनल से मार लीजिये. न मिले तो अपनी ही दो- तीन साल पुरानी फुटेज लगाकर लाइव बताइए. शर्माइये नहीं, रिपोर्टिंग और शरम साथ-साथ नहीं चल सकते. विदेशों में आई बाढ़ का हवाला दीजिये और बताइये कि वहां सरकार कित्ती जल्दी निपट लेती है बाढ़ से. लेकिन अगर सरकार से विज्ञापन मिल गये हों या मिलने का वायदा मिल गया हो तो इसी सीन को दूसरी तरह से दिखाइये कि अमेरिका में नागरिक नौ दिन तक फ़ंसे रहे लेकिन अपने यहां की नब्बे घंटे में ही निकालने का काम शुरु हो गया. इसी तरह के कई कन्ट्रास्ट निकाले जा सकते हैं.
चैनल से लोग चाहे जैसे खबर सुनायें लेकिन फ़ील्ड से रिपोर्टिंग करने वाले लोग ऐसे लगें जैसे वे खुद बाढ़ में फ़ंसे हैं. थोड़ा बहदवास और चिल्लाते हुये रिपोर्टर का अच्छा असर पड़ता है. अगर बाढ़ के साथ बारिश हो रही हो तो रेनकोट में भीगते हुये कैमरा मोमिया में लपेटे हुये कमेंट्री करते दिखायें. चैनल में ऐसे भी लोग रख सकते हैं जो दर्शकों को डांटते हुये रिपोर्टिंग करे जिससे दर्शक सहम जायें और अपराध बोध में डूब जाये कि हम यहां घरों में बैठे बाढ़ को तमाशे की तरह देख रहे हैं.
शाम को प्राइम टाइम पर बाढ चर्चा करिये. एक ठो पर्यावरणविद, एक ठो सामाजिक कार्यकर्ता,एक बाढ़ पीडित और एक पत्रकार को बैठाकर चर्चा करिये. सब मिलकर पर्यावरण चर्चा करते हुये एक बार फ़िर से तय करिये कि अगर हमने प्रकृति से छेडछाड़ नहीं रोकी तो ऐसे ही बरबाद होते रहेंगे. चर्चा के बीच में सुबह-शाम तक दिखाये सीन फ़िर-फ़िर चलाते रहिये. कोई घपले-घोटाले की खबर आये तो उसको इंटरटेन मत करिये. बता दीजिये कि बाढ कवरेज में बिजी हैं अभी. बहुत कोई हल्ला मचाये तो नीचे वाली पट्टी में चला दीजिये. बाढ़ से फ़ोकस मत शिफ़्ट कीजिये.पूरे चैनल को बाढग्रस्त कर दीजिये. फ़ोकस बहुत जरूरी है. बाढ़ की रिपोर्टिंग करें तो पूरा बाढ़ में डूब जायें.
दो-तीन दिन दनादन इसी तरह बाढ़ की रिपोर्टिंग करते रहिये. लोग एकरस रिपोर्टिंग की खबरें देखकर ऊबने न लगें इसके लिये वैरियेशन दिखाइये. एकाध प्रसिद्ध खिलाड़ी, एक्टर,नेता के बाढ़ में फ़ंसने, निकलने के किस्से दिखाइये.
इस बीच सरकार एक्शन में आ जायेगी. उसके एक्शन दिखाइये. सरकारी सहायता के किस्से दिखाइये. सरकार ने इस बीच राहत की घोषणा कर दी हो तो उसके बारे में बताइये. अगर आपके चैनल को राहत मिल गयी हो तो कायदे से दिखाइये. न मिली हो राहत की खिल्ली उड़ाइये. मंत्री को खाते हुये और जनता को भूख से बिल्लाते दिखाइये. दिल से नहीं दिमाग से काम लीजिये. अपनी स्ट्रेटजी बनाइये. खबर एक उत्पाद है. खबर को भुनाइये.
इसके बाद लोगों के बचने के किस्से दिखाइये. मुसीबत में कैसे लोग सहायक बने बताइये. ईश्वर के चमत्कार गिनाइये. बचे हुये लोगों को मुस्कराते हुये, अपनों से गले लगकर मिलते हुये दिखाइये.
ये तो हमने कुछ तरीके बताये. इनके अलावा आप जब रिपोर्टिंग करेंगे तो खुद आपको नये-नये तरीके निकालेंगे. आपको अपना दिमाग खुला रखना है और हमेशा याद रखना है कि खबर एक उत्पाद है. खबर को भुनाने की कला ही आपको सफ़ल मीडियाकर्मी बनाती है.
बाढ़ से रिपोर्टिंग सीखने की क्लास पूरी हो गयी. गुरुजी अगली कक्षा से निकल लिये. बच्चे अगले पीरियड के इंतजार में कामर्शियल ब्रेक की तरह चहक रहे हैं. अगला पीरियड में ’घपले-घोटाले की रिपोर्टिंग’ के गुर सिखाये जायेंगे.
किसी भी अन्य न्यूज की तरह चैनलों के लिये बाढ़ भी एक सूचना है. एक घटना है. एक उत्पाद है. अगर कहीं बाढ़ आती है तो अपन को यह देखना है कि कितने प्रभावी तरीके से इसको कवर करते हैं.
सबसे पहले तो यह समझिये कि बाढ़ की गरिमा उसकी भयावहता है में है. जित्ता भयानक दिखाया जा सकता है उतनी ही सफ़ल प्रभावी उसकी रिपोर्टिंग है. इसके लिये कई तरीके हैं. बेस्ट तो ये होगा कि आप लाइव रिपोर्टिंग करिये. सीधे चट्टान, पत्थर, पेड़ तेजी से गिरते दिखाइये, पानी हरहराता हुआ दिखाइये, पेड़ पर लटके लोग दिखाइये, सड़क के बीच भरे पानी में जाते हुये लोग दिखाइये. उनके चेहरे पर फ़ोकस करिये अगर वे डरे, सहमें से दिख सकें, दिखाइये.लोगों को बोलते हुये दिखाइये. किसी की पूरी बात नहीं. बस इत्ता दिखाइये जिससे कि लगे वे फ़ंसे हैं, डरे हैं, भयभीत है. सब तरफ़ भय का संचार कीजिये. आसपास का सब कुछ जल मग्न दिखाइये. हो सके तो दिखाइये कि बाढ़ के पहले वहां इत्ती इमारतें थीं, बाढ में सब डूब गया यह दिखाइये. दोनों फोटुओं को अगर-बगल रखकर चलाइये. कन्ट्रास्ट ज्यादा इफ़ेक्टिव होता है.
इसके बाद फ़ौरन सरकारी अमले को कोसने के काम में लग जाइये. बाढ़ रात को आई. सरकार अभी तक सो रही है. एकाध मंत्री के गैरजिम्मेदाराना बयान दिखा दीजिये. कुछ न हो तो यह बताइये कि बाढ़ के बारे में जिले में कोई सूचना देने वाला नहीं है. सरकार को जित्ता कोसियेगा उत्ता ही ज्यादा विज्ञापन मिलने की गुंजाइश बनेगी.
अगर आपके पास अपने दिखाने के लिये सीन न हों तो दूसरे चैनल से मार लीजिये. न मिले तो अपनी ही दो- तीन साल पुरानी फुटेज लगाकर लाइव बताइए. शर्माइये नहीं, रिपोर्टिंग और शरम साथ-साथ नहीं चल सकते. विदेशों में आई बाढ़ का हवाला दीजिये और बताइये कि वहां सरकार कित्ती जल्दी निपट लेती है बाढ़ से. लेकिन अगर सरकार से विज्ञापन मिल गये हों या मिलने का वायदा मिल गया हो तो इसी सीन को दूसरी तरह से दिखाइये कि अमेरिका में नागरिक नौ दिन तक फ़ंसे रहे लेकिन अपने यहां की नब्बे घंटे में ही निकालने का काम शुरु हो गया. इसी तरह के कई कन्ट्रास्ट निकाले जा सकते हैं.
चैनल से लोग चाहे जैसे खबर सुनायें लेकिन फ़ील्ड से रिपोर्टिंग करने वाले लोग ऐसे लगें जैसे वे खुद बाढ़ में फ़ंसे हैं. थोड़ा बहदवास और चिल्लाते हुये रिपोर्टर का अच्छा असर पड़ता है. अगर बाढ़ के साथ बारिश हो रही हो तो रेनकोट में भीगते हुये कैमरा मोमिया में लपेटे हुये कमेंट्री करते दिखायें. चैनल में ऐसे भी लोग रख सकते हैं जो दर्शकों को डांटते हुये रिपोर्टिंग करे जिससे दर्शक सहम जायें और अपराध बोध में डूब जाये कि हम यहां घरों में बैठे बाढ़ को तमाशे की तरह देख रहे हैं.
शाम को प्राइम टाइम पर बाढ चर्चा करिये. एक ठो पर्यावरणविद, एक ठो सामाजिक कार्यकर्ता,एक बाढ़ पीडित और एक पत्रकार को बैठाकर चर्चा करिये. सब मिलकर पर्यावरण चर्चा करते हुये एक बार फ़िर से तय करिये कि अगर हमने प्रकृति से छेडछाड़ नहीं रोकी तो ऐसे ही बरबाद होते रहेंगे. चर्चा के बीच में सुबह-शाम तक दिखाये सीन फ़िर-फ़िर चलाते रहिये. कोई घपले-घोटाले की खबर आये तो उसको इंटरटेन मत करिये. बता दीजिये कि बाढ कवरेज में बिजी हैं अभी. बहुत कोई हल्ला मचाये तो नीचे वाली पट्टी में चला दीजिये. बाढ़ से फ़ोकस मत शिफ़्ट कीजिये.पूरे चैनल को बाढग्रस्त कर दीजिये. फ़ोकस बहुत जरूरी है. बाढ़ की रिपोर्टिंग करें तो पूरा बाढ़ में डूब जायें.
दो-तीन दिन दनादन इसी तरह बाढ़ की रिपोर्टिंग करते रहिये. लोग एकरस रिपोर्टिंग की खबरें देखकर ऊबने न लगें इसके लिये वैरियेशन दिखाइये. एकाध प्रसिद्ध खिलाड़ी, एक्टर,नेता के बाढ़ में फ़ंसने, निकलने के किस्से दिखाइये.
इस बीच सरकार एक्शन में आ जायेगी. उसके एक्शन दिखाइये. सरकारी सहायता के किस्से दिखाइये. सरकार ने इस बीच राहत की घोषणा कर दी हो तो उसके बारे में बताइये. अगर आपके चैनल को राहत मिल गयी हो तो कायदे से दिखाइये. न मिली हो राहत की खिल्ली उड़ाइये. मंत्री को खाते हुये और जनता को भूख से बिल्लाते दिखाइये. दिल से नहीं दिमाग से काम लीजिये. अपनी स्ट्रेटजी बनाइये. खबर एक उत्पाद है. खबर को भुनाइये.
इसके बाद लोगों के बचने के किस्से दिखाइये. मुसीबत में कैसे लोग सहायक बने बताइये. ईश्वर के चमत्कार गिनाइये. बचे हुये लोगों को मुस्कराते हुये, अपनों से गले लगकर मिलते हुये दिखाइये.
ये तो हमने कुछ तरीके बताये. इनके अलावा आप जब रिपोर्टिंग करेंगे तो खुद आपको नये-नये तरीके निकालेंगे. आपको अपना दिमाग खुला रखना है और हमेशा याद रखना है कि खबर एक उत्पाद है. खबर को भुनाने की कला ही आपको सफ़ल मीडियाकर्मी बनाती है.
बाढ़ से रिपोर्टिंग सीखने की क्लास पूरी हो गयी. गुरुजी अगली कक्षा से निकल लिये. बच्चे अगले पीरियड के इंतजार में कामर्शियल ब्रेक की तरह चहक रहे हैं. अगला पीरियड में ’घपले-घोटाले की रिपोर्टिंग’ के गुर सिखाये जायेंगे.
Posted in बस यूं ही | 21 Responses
shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..गृह विज्ञान ..किसके लिए ?
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भई यह पितृ दिवस ही है पितृ विसर्जन दिवस नहीं!
arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..भई यह पितृ दिवस ही है पितृ विसर्जन दिवस नहीं!
इस पर कुछ प्रकाश डालें गुरु जी !!!!
देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..इतिहास में डुबकी और बिजली का टोका !!!
प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..जो है, सो है
kavita verma की हालिया प्रविष्टी..धुंधलका
आपने कमाल का चित्रण किया है . यही तो हो रहा है , मगर अब कुछ अच्छा कम भी हो रहा है . वैसे भी सभी चैनल कमर्शियल हैं , उन्हें तो यह सब करना ही है , भौपूं की तरह . बहहाल साधुवाद .
Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..ब्लॉग की प्रासंगिकता बनाम अभिव्यक्ति की भंगुरता
पत्रकारिता के छात्रों के लिए नायाब !
Ratan Singh Shekhawat की हालिया प्रविष्टी..सामंतवाद : आलोचना का असर कहाँ ?
Kajal Kumar की हालिया प्रविष्टी..कार्टून :- रूपया गिरा ढप्प से
समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..हरे सपने…एक कहानी..मेरी आवाज़ में..
समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..हरे सपने…एक कहानी..मेरी आवाज़ में..
Monika Jain की हालिया प्रविष्टी..Poem on Karma in Hindi
समीर लाल “टिप्पणीकार” की हालिया प्रविष्टी..पहाड़ के उस पार….इस बार मेरी आवाज़ में